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ज्येष्ठ पूर्णिमा और इससे जूडी मान्याताएँ on 24 Jun 2021 (Thursday)

हिंदू धर्म में हर महीने की पूर्णिमा का बड़ा महत्व माना जाता है परंतु ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा सबसे अधिक शुभ माना जाता है। ज्येष्ठ पूर्णिमां को वट पूर्णिमा व्रत के रूप में भी जाना जाता है। परौणिक कथाओं के अनुसार ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन स्नानदान का सर्वधिक महत्व माना जाता है। इसलिये इस दिन भारतवर्ष में लोग बडी संख्या में गंगा स्नान करते है।

 

ज्येष्ठ पूर्णिमा और इससे जूडी मान्याताएँ -

 

मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान के बाद पूजा पाठ करके दान दक्षिणा करने पर समस्त इच्छाएं पूर्ण होती हैं। पूर्णिमा के इस व्रत को सावित्री व्रत के समान ही मान्यता दी जाती है। सावित्री व्रत सुहागनी स्त्रियों अपने पति की लंबी आयु के मानती है।  कुछ पौराणिक कथाओं में जैसे स्कंद पुराण व भविष्योत्तर पुराण में वट सावित्रि उपवास ज्येष्ठ माहिने की पूर्णिमा को रखा जाता है। गुजरातमहाराष्ट्र व दक्षिण भारत में विशेषरूप से स्त्रियां ज्येष्ठ पूर्णिमा को वट सावित्रि व्रत रखती हैं। जबकि उत्तर भारत में यह व्रत ज्येष्ठ अमावस्या को रखा जाता है।

 

2019 में ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत -

 

2019 में ज्येष्ठ मास में पूर्णिमा तिथि 16 जून को मानयी जायेगी। पूर्णिमा तिथि यदि चतुर्दशी के दिन दोपहर से पहले व सूर्योदय के बाद शुरू हो रही हो तो पूर्णिमा उपवास इसी तिथि को रखा जाता है जबकि पूर्णिमा तिथि अगले दिन यानि सूर्योदय के समय जो तिथि है वह मानी जाता है।

 

क्या है ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत पूजा विधि इस व्रत को रखने के कई फायदे हैं और इसीलिये यह बहुत जरुरी है कि सही तरीके से रखा जाये। आइये जानते है ज्येष्ठ व्रत माने की पूजा विधि -

 

        पूरे मन से करें वट वृक्ष की पूजा - ज्येष्ठ पूर्णिमा पूजा विधि के अनुसार ही वट पूर्णिमा का व्रत किया जाता है। इस दिन वट वृक्ष की पूजा करने का विधान है। वट वृक्ष के नीचे ही सुहागिन स्त्रियां सत्यवान और सावित्री की कथा भी सुनती हैं। पुजा करने के लिये दो टोकरी बांस की लें एक टोकरी में 7 किस्म के अनाज को कपड़े से बंध कर रखें।

        सभी प्रकार का पूजन का सामान- दूसरी टोकरी में देवी सावित्री की मुर्ति और धूप बत्तीदीपकचावलकुमकुमकलावा इत्यादि पूजा सामग्री रखें।

        वट वृक्ष के 7 फेरे -देवी सावित्री की पूजा करने के बाद वट वृक्ष के 7 फेरे लगाते हुए कलावा को वटवृक्ष पर बांधें। उसके बाद वट वृक्ष की पूजा अर्चना करें उसके बाद कथा सुनें। फिर दूसरी टोकरी वटवृक्ष को अर्पित करें।

        जरूरतमंद व्यक्ति को दान-दक्षिणा देने आवश्यक - पूजा समाप्त करने के बाद किसी ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को दान-दक्षिणा (भोजन, कपडा या मुद्रा) दें और प्रसाद के रूप में चने व गुड़ का बांटे। कुछ लोग इस दिन सत्यनारायण भगवान की पूजा अर्चना भी करते है। पुजा के बाद प्रासद ग्रहण करने पर उचित लाभ मिलता है।

 

ज्येष्ठ पूर्णिमा का महत्व – आइये जानते है कि क्या है इस व्रत-त्यौहार का महत्तव और यह हमें क्या संदेश देता है-

 

        पुण्य कर्म करने का विशेष महत्व – हिन्दू धर्म में ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन स्नानध्यान और पुण्य कर्म करने का विशेष महत्व है। इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाएं पुर्ण होती है। साथ ही साथ यह ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत एक खास बात के लिये भी जानी जाती है।

 

        अमरनाथ यात्रा की ओर प्रस्थान – इस दिन से भक्त भगवान शिव के लियें गंगाजल लेकर अमरनाथ यात्रा की ओर प्रस्थान करते है। हिन्दू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह को हिन्दू वर्ष का तीसरा महीना माना जाता है।

 

        जल का महत्व – इस समय से पृथ्वी गर्म होना शुरू हो जाती है जिस कारण भारत में भंयनाक गर्मी पडती है जिससे नदी, ताल व तालाब, जलास्य आदि सूखे की कागर पर आ जाते हैं या उनमें पानी का स्तर न्युनतम होता जाता है। इसलिए ज्येष्ठ माह में जल का महत्व अन्य महीनों की तुलना में अधिक हो जाता है।

 

        गंगा दशहरानिर्जला एकादशी का उद्देश्य - इस महिने में आने वाले कुछ उत्सव जैसे- गंगा दशहरानिर्जला एकादशी के द्वारा हमारे ऋषि-मुनियों यह संदेश ने चाहते थे कि जल के महत्व को पहचानें और इसका सदुपयोग करें। जल को व्यर्थ में न बहें।