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शनैश्चर जयंती पर ऐसे करें शनिदेव की पूजा on 03 Jun 2019 (Monday)

शनिदेव की पूजा प्रमुख देवताओं के रूप में की जाती है. भगवान शनिदेव का जन्म वैशाख अमावस्या के दिन 12:00 बजे हुआ था. इसीलिए हमेशा अमावस्या के दिन शनैश्चर जयंती मनाई जाती है. शनि देव भगवान सूर्य और छाया के पुत्र हैं. सूर्य के अन्य पुत्रों की अपेक्षा शनिदेव हमेशा से ही उग्र स्वभाव के थे.शनि देव को मकर और कुंभ राशि का स्वामी माना जाता है और इन की महादशा 19 वर्षों तक चलती है. शनिदेव का रंग सांवला होता है और इनका वाहन गिद्ध है. शनि देव एक राशि में 30 महीने रहते हैं. शनिदेव को बहुत ही क्रूर ग्रह माना जाता है. यदि किसी व्यक्ति पर शनिदेव की कुदृष्टि पड़ जाए तो उस व्यक्ति का विनाश शुरू हो जाता है. 

शनिदेव पूजन विधि :- 

1- शनि जयंती के दिन शनि देव के निमित्त विधि विधान से पूजा-पाठ और व्रत करने का नियम माना जाता है. शनि जयंती के दिन दान पुण्य और पूजा पाठ करने से शनि संबंधी कष्ट दूर हो जाते हैं. 

2- शनि जयंती के दिन प्रातः काल नहाकर सबसे पहले नवग्रहों को नमस्कार करें. अब शनिदेव की लोहे की मूर्ति की स्थापना करें और सरसों या तिल के तेल से शनिदेव का अभिषेक करें. 

3- अब शनि मंत्र बोलते हुए शनिदेव की श्रद्धा पूर्वक पूजा करें.  यदि आप शनिदेव को प्रसन्न करना चाहते हैं तो हनुमान जी की पूजा भी करें. 

4- शनिदेव की कृपा और शांति पाने के लिए तेल, उड़द, कालीमिर्च, मूंगफली का तेल, लोंग, तेजपत्ता, काला नमक आदि का इस्तेमाल पूजा में किया जा सकता है. 

5- शनि जयंती के दिन काले कपड़े, जामुन, काली उड़द, काले जूते, तेल, लोहा, तेल  आदि का अपनी क्षमता अनुसार दान करें. 

शनि देव की जन्म कथा :–

शनिदेव के जन्म के संदर्भ में एक पौराणिक कथा प्रचलित है. मान्यताओं के अनुसार शनि सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं. सूर्य देव का विवाह दक्ष प्रजापति की पुत्री संज्ञा के साथ संपन्न हुआ था. विवाह के कुछ समय पश्चात संज्ञा को तीन संतानों की प्राप्ति हुई. इनकी संतान के नाम- मनु, यम और यमुना थे. संज्ञा ने सूर्य देव के साथ अपना रिश्ता निभाने का बहुत प्रयत्न किया, पर वह सूर्य के तेज को ज्यादा समय तक बर्दाश्त नहीं कर पायी, जिसके कारण वह अपनी छाया को सूर्यदेव के पास छोड़कर वहां से चली गई. कुछ समय पश्चात सूर्यदेव की पत्नी संज्ञा की छाया के गर्भ से शनिदेव का जन्म हुआ.

शनि जयंती का महत्व :- 
  • पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शनि देव का जन्म जेष्ठ मास की अमावस्या तिथि को हुआ था. अपने जन्म के समय शनिदेव लंबे शरीर बड़ी बड़ी आंखों वाले बड़े केश वाले और श्याम वर्ण के थे.
  • शनि देव शनि जयंती के दिन सभी शनि मंदिरों में पूजा अर्चना की जाती है और शनि से जुड़ी चीजों का दान किया जाता है. ऐसा करने से कुंडली में शनि की अशुभ स्थिति का असर खत्म हो जाता है.
  • शनि जयंती के दिन शनि देव की पूजा करने से या उनसे जुड़ी चीजों का दान करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं. जो भी व्यक्ति इस दिन शनि देव की भक्ति पूर्वक पूजा-अर्चना करता है. वह पाप की ओर जाने से बच जाता है. जिसके कारण उसे शनि की दशा और कष्ट नहीं भोगना पड़ता है. 
  • शनिदेव की पूजा करने से अनजाने में किए गए पाप कर्मों और दोष से भी मुक्ति मिलती है
शनिदेव से जुडी खास बातें :- 
  • भगवान श्री राम जी शनि देव की दृष्टि से नहीं बच पाए थे. जब श्रीराम पर शनि की साढ़ेसाती शुरू हुई तब उन्हें 14 वर्षों का वनवास भोगना पड़ा.
  • जब रावण पर शनिदेव की साढ़ेसाती शुरू हुई तब राम लक्ष्मण ने लंका पर आक्रमण करके उनके कुल का विनाश कर दिया.
  • ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है की शनिदेव दुख अंधकार कष्ट के ग्रह माने जाते हैं. निर्बल शनि हमेशा पीड़ादायक होता है. 
  • यदि मकर और कुंभ राशि पर राहु की स्थिति और दृष्टि पड़ जाए तो शनि की साढ़ेसाती का सामना करना पड़ता है. 
  • यदि आप शनि की साढ़ेसाती से बचना चाहते हैं तो शनैश्चर जयंती के दिन शनिदेव की पूजा अर्चना करके इच्छित फल प्राप्त कर सकते हैं.