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शनि त्रयोदशी on 04 Aug 2021 (Wednesday)

शनि-त्रयोदशी

शनि-त्रयोदशी शिव और शनि जी की पूजा करने के लिए एक बहुत ही शुभ दिन है। यह त्यौहार शिव जी के भक्तों के लिये विशेष महत्व रखता है।

महत्व - 

ऐसे बहुत से लोग है जो शनि जी को अपने जीवन में शांत करने के लिये इस व्रत त्यौहार को मनाते है। शनि त्रयोदशी को शनि पूजा के लिए बहुत शुभ माना जाता है। इस विशेष व्रत त्यौहार को लोग शांति और समृद्धि का आशीर्वाद लेने के लिये भी बहुत ही महत्तवपूर्ण मानते हैं। इस व्रत को करने से आपके जीवन से जोखिम और दुर्घटनाओं का निवारण हो जाता है। यदि आप उन लोगों में से एक है जो लोग अपनी जन्म कुंडली में शनि जी के प्रतिकूल प्रभावो से पीड़ित हैं तो यह व्रत त्यौहार आपके लिये काफी लाभ दायी सिद्ध हो सकता है। शानि त्रयोदशी को भगवान शनि को प्रसन्न करने के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है।

क्या करें 

01.इस दिन सुबह के समय जल्दी उठें।
02.नहा-धोकर शनि मंदिर जाएं और शनि जी का अभिषेक करें
03.घर लौटने के बाद शाम को एक ही बार भोजन का सेवन करे
04.इस मंत्र का जाप करे  "नीलांजन सम्बसम रबी पुटरम यमराजम चया मार्तण्ड सम्भुतम् तं नमामि संस्कारचरण"
05.भगवान शनि के नकारात्मक प्रभावों से खुद को मुक्त करने के लिए, उन्हें प्रार्थनाएं अर्पित करें।
06.शनि दोष पूजा करें।
07.शनि शांति पूजा करें।
08.शनिवार को गरीब लोगों को काले कपड़े बांटें।
09.कौवे को भोजन सामग्री अर्पित करें।
10.जरूरतमंद लोगों को भोजन कराएं।


क्या ना करें –

काले रंग का भोजन ना ग्रहण करें

मान्याताएँ -

ऐसा माना जाता है कि यह व्रत त्यौहार करने से भक्तों के पापों का निवारण होता है। यह व्रत शनि जी के नकारात्मक प्रभाव को पूर्ण रुप से खत्म कर देता है। इस व्रत को पूरे नियम पालन करने से जीवन से नकारात्मकता दूर हो जाती है। भक्त के जीवन में स्वास्थ्य और धन क संचार होता है। यह व्रत बीमारियों को ठीक करने के लिये भी उपयोगी सिद्ध होता है।
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पूजा विधि 
1.      व्रत रखने वाले व्यक्ति को व्रत के दिन सूर्य उदय होने से पहले उठना चाहिये।
2.      स्नान आदिकर भगवान् शिव का नाम जपते रहना चाहिए|
3.      सुबह नहाने के बाद साफ और आसमानी वस्त्र पहनें।
4.      इस व्रत में दो वक्त पूजा करि जाती है एक सूर्य उदय के समय और एक सूर्यास्त के समय प्रदोष काल में|
5.      व्रत में अन्न का सेवन नहीं करेंगे, फलाहार व्रत करेंगे|
6.      फिर उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और गौरी शंकर भगवान् का सयुंक्त पूजन करें।
7.      शनि देव का पूजन भी करें|
8.      भगवान् शिव माँ गौरी को सफ़ेद व् लाल फूलों की माला अर्पित करें. बेल पत्र अर्पित करें|
9.      भगवान् गणेश दूर्वा अर्पित करें|
10.   सफ़ेद मिठाई (पताशे,रसगुल्ले) फल का भोग लगाएं|
11.   शनि देव को सरसो का तेल अर्पित करें व् मीठे का भोग लगाएं|
12.   शाम के समय पीपल के नीचे सरसो के तेल का दीपक लगाएं|
13.   घी व् तिल के तेल का दीपक लगाएं, धुप अगरबत्ती भी लगाएं.
14.   भगवान् शिव को चन्दन की सुगंध अर्पित करें|
15.   पूजा में 'ऊँ नम: शिवाय' का जाप करें और जल चढ़ाएं।
16.   भगवान शिव की पूजा उपासना में केतकी के फूल व् तुलसी का प्रयोग कभी न करें|


अंत में  - 

यह व्रत त्यौहार बहुत ही शुभ है और भक्तों को जीवन में सुखा और समृद्धि लाता है। भक्तों से जीवन से बाधाओं को दूर करता है।

शनि-त्रयोदशी कथा

प्राचीन समय की बात है । एक नगर सेठ धन-दौलत और वैभव से सम्पन्न था । वह अत्यन्त दयालु था । उसके यहां से कभी कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता था । वह सभी को जी भरकर दान-दक्षिणा देता था । लेकिन दूसरों को सुखी देखने वाले सेठ और उसकी पत्नी स्वयं काफी दुखी थे । दुःख का कारण था- उनके सन्तान का न होना । सन्तानहीनता के कारण दोनों घुले जा रहे थे । एक दिन उन्होंने तीर्थयात्र पर जाने का निश्चय किया और अपने काम-काज सेवकों को सोंप चल पडे । अभी वे नगर के बाहर ही निकले थे कि उन्हें एक विशाल वृक्ष के नीचे समाधि लगाए एक तेजस्वी साधु दिखाई पड़े । दोनों ने सोचा कि साधु महाराज से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा शुरू की जाए । पति-पत्नी दोनों समाधिलीन साधु के सामने हाथ जोड़कर बैठ गए और उनकी समाधि टूटने की प्रतीक्षा करने लगे । सुबह से शाम और फिर रात हो गई, लेकिन साधु की समाधि नही टूटी । मगर सेठ पति-पत्नी धैर्यपूर्वक हाथ जोड़े पूर्ववत बैठे रहे । अंततः अगले दिन प्रातः काल साधु समाधि से उठे । सेठ पति-पत्नी को देख वह मन्द-मन्द मुस्कराए और आशीर्वाद स्वरूप हाथ उठाकर बोले- ‘मैं तुम्हारे अन्तर्मन की कथा भांप गया हूं वत्स! मैं तुम्हारे धैर्य और भक्तिभाव से अत्यन्त प्रसन्न हूं।’ साधु ने सन्तान प्राप्ति के लिए उन्हें शनि प्रदोष व्रत करने की विधि समझाई और शंकर भगवान की निम्न वन्दना बताई|