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श्रीगणेश चतुर्थी

श्रीगणेश चतुर्थी बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत है इस तिथि के स्वामी श्री गणेश भगवान है। जो सभी तरह के विध्नों को नाश करने वाले सुख समृद्धि प्रदान करने वाले है। श्री गणेश प्रथम पूज्य व विघ्नों का नाश करने वाले और ऋद्धि- सिद्धि के दाता हैं। जिन्हें धर्मशास्त्रों में एकमत से प्रथम पूज्य माना गया है, जिन धर्म व शुभ कार्यो में श्री गणे की प्रथम पूजा की जाती वह निर्विघ्न और बहुत ही सुखद तरीके से सम्पन्न होते हैं। श्रीगणे चतुर्थी के व्रत से पारिवारिक कलह, मतभेद, मनमुटाव, सामाजिक समस्याएं, बड़ी से बड़ी बाधाएं, शारीरिक कष्टों से छुटकारा मिलता है।

श्री गणे पुराण में श्री गणे के बारे में बहुत ही रोचक व वर्णन मिलता है। श्री गणे के प्रथम पूज्य होने के बारे कई जनश्रुतियां प्रचलित हैं। जैसे देवताओं मे प्रथम पूज्य होने को लेकर विवाद छिड़ गया तब सभी भगवान शिव के निकट इस समाधान के लिए पहुंचे और आजन्मा, अविनाशी प्रभु शिव ने सभी देवताओं को यह आदे दिया कि जो सर्वप्रथम इस सम्पूर्ण पृथ्वी का चक्कर लगाकर मेरे पास उपस्थिति होगा वही प्रथम पूज्य होने का अधिकारी होगा। ऐसा सुनते ही सभी देवगण अपने उपलब्ध वाहनों से पृथ्वी का चक्कर लगाने हेतु बड़ी तीव्रता से दौड़ने लगे। किन्तु प्रभु श्रीगणे अपने वाहन चूहे मे सवार हो सर्वव्याप्त अन्नत प्रभु शिव और माता पार्वती को सर्वभौम मानकर उनकी बड़ी श्रद्धा से परिक्रमा की और सबसे पहले उन अन्नत प्रभु के पास जा पहुंचे।
 
तत्पष्चात् परिक्रमा कर देव समुदाय वहां उपस्थिति हुआ और प्रथम पूज्य होने की मांग करने लगा, तभी गणे बोले सबसे पहले मै आया हूँ, इसीलिए मेरी पूजा पहले होनी चाहिए। किन्तु देवगणों ने इस बात का विरोध किया कि श्रीगणे तो कही पूरी परिक्रमा मे दिखें ही नहीं किन्तु सर्वप्रभु ने बड़े विश्वास के साथ कहा मैनें सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा कर ली है। श्रीगणे के ऐसा कहने पर देवगणों यह निर्णय लिया कि अपने गनतब्य पर चलकर हमें अपने वाहन चूहे के पदचिन्ह दिखाओं। सभी ने सम्पूर्ण पृथ्वी मे घूमकर देखा तो प्रत्येक जगह उनके परम प्रिय वाहन चूहे के पदचिन्ह मिलें और सर्वसम्मत्ति से श्रीगणे को प्रथम पूज्य माना गया। जिससे प्रत्येक कार्यो मे प्रथम गणे पूज्य और मासिक गणे चतुर्थी का व्रत वर्णित है।

व्रत में श्री मंगलमूर्ति गणे जी का पूजन अर्चन किया जाता है। पूजन से पहले नित्यादि क्रियाओं से निवृत्त होकर शुद्ध आसन में बैठकर सभी पूजन सामग्री को एकतित्र कर पुष्प, धूप, दीप, कपूर, रोली, मौली लाल, चंदन, मोदक आदि एकत्रित कर क्रमशः पूजा करें। गणे स्त्रोत से विषे फल की प्राप्ति होती है। श्रीगणे सहित प्रभु शिव व भगवती मां गौरी, नन्दी कार्तिकेय सहित सम्पूर्ण शिव परिवार की पूजा षोड़षोपचार विधि से करना चाहिए। व्रत व पूजा के समय किसी प्रकार का क्रोध व गुस्सा न करें। यह हानिप्रद सिद्ध हो सकता है, श्रीगणे का ध्यान करते हुए सात्त्विक चित्त से प्रसन्न रहना चाहिए।