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धूमावती जयंती की विचित्र कथा

धूमावती जयंती क्या है -

 

धूमावती जयंती के पर्व पर धूमावती देवी के स्तोत्र पाठ व सामूहिक जाप का अनुष्ठान किया जाता है। देवी को काले कपडे में काले तिल बांधकर भेंट करने से साधक की सभी इच्छायें पूरी होती हैं। परंपरा है कि सुहागिनें देवी धूमावती की पूजा नहीं करती हैं और केवल दूर से ही देवी के दर्शन व आशीर्वाद लेती है। देवी धूमावती के दर्शन मात्र से संतान व सुहाग की रक्षा होती है।

 

मां धूमावती जयंती की विस्तार से चर्चा -

 

पुराणकथाओं के अनुसार एक बार अपनी क्षुधा शांत करने के लिए देवी धूमावती भगवान शंकरजी के पास जाती हैं। परंतु शंकरजी अपने ध्यान में उस समय लीन थे। देवी के बार-बार आग्रह के बाद भी भगवान शंकर ध्यान से नहीं उठते। इससे क्रोधित होकर देवी ने श्वास खींचकर भगवान शिव को निगल गई। शिव के गले में विष होने के कारण देवी के देह से धुंआ निकलने लगा और उनका स्वरूप विकृत और श्रृंगार विहीन हो गाया। इस कारण उनका नाम धूमावती पड़ गया।

 

माँ धूमावती कथा

 

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार एक बार देवी पार्वती को बहुत भूख लगने लगती है और वह भगवान शिव से भोजन लेने को आग्रह करती हैं। उनकी बात सुनकर भगवान शिव, देवी पार्वती जी से कुछ समय प्रतिक्षा करने को कहते हैं ताकी वह भोजन की व्यवस्था कर सकें। समय व्यतीत होने लगता है लेकिन भोजन की व्यवस्था नहीं हो पाती है। देवी पार्वती भूख से अत्यंत व्याकुल हो गई जिस कारण पार्वती जी भगवान शिव को ही निगल गई। महादेव को निगलने पर देवी पार्वती के शरीर से धुआँ निकलने लगाता है। तब भगवान शिव माया द्वारा देवी पार्वती से कहते हैं कि देवी, धूम्र से व्याप्त शरीर के कारण तुम्हारे धूमावती नाम से भी जाना जायेगा। भगवान कहते हैं तुमने जब मुझे खाया तब विधवा हो गई। अत: अब तुम इस वेश में ही पूजी जाओगी। 10 महाविद्यायों में दारुण विद्या कह कर देवी को पूजा जाता है।

 

देवी धूमावती जयंती महत्व –

 

        धूमावती देवी की मूर्ति बड़ी मलिन और भयंकर दिखाई देती है।

        धूमावती देवी का स्वरूप विधवा का है व उनका कौवा वाहन है

        वह श्वेत कपडे धारण किए हुएखुले केश रुप में होती हैं।

        देवी का स्वरूप चाहे जितना उग्र क्यों न हो वह संतान के लिए कल्याणकारी मानी जाती है।

        देवी धूमावती के दर्शन से मात्र से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।

        पापियों को उनके अपराध के लिए इनका अवतार हुआ।

        पापियों को नष्ट व संहार करने की सभी क्षमताएं देवी में निहीत हैं। देवी का ज्येष्ठा नक्षत्र है इस कारण इन्हें ज्येष्ठा भी कहा जाता है।

        ऋषि दुर्वासाभृगुपरशुराम आदि की मूल शक्ति धूमावती हैं। सृष्टि कलह के देवी होने के कारण इनको कलहप्रिय के नाम से भी जाना जाता है।

        देवी की पूजा आर्चना चौमासा समय में करनी चाहिए। माँ धूमावती जी का रूप अत्यंत भयंकर हैं इन्होंने ऐसा रूप शत्रुओं के संहार के लिए ही अवतारित किया था।

ऐसे करें देवी का पूजन:-

 

देवी धूमावती, 10 महाविद्याओं में आखरी विद्या है ज्यादातर गुप्त नवरात्रि में इनकी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। धूमावती जयंती के दिन, ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नहाना लेना चाहिये। पूजा के स्थान को गंगाजल से शुध्द करके जलपुष्पसिन्दूरकुमकुमअक्षतफलधूपदीप तथा नैवैद्य आदि से धूमावतीदेवी का पूजन-अर्चना करनी चाहिए। इस दिन देवी धूमावती की कथा जरूर सुनी चाहिए। पूजा के बाद अपनी इच्छा पूर्ण करने के लिए देवी से निवेदन अवश्य करना चाहिये  देवी धूमावती की कृपा से मनुष्य के समस्त बुरे कर्मों का नाश होता है तथा दु:खकष्ट व गारीबी आदि दूर होकर मन की इच्छायें पूर्ण होती है।

 

मंत्र :

 

"ॐ धूं धूं धूमावत्यै फट्।। धूं धूं धूमावती ठ: ठ:।

देवी धूमावती का तांत्रोक्त मंत्र

"धूम्रा मतिव सतिव पूर्णात सा सायुग्मे। सौभाग्यदात्री सदैव करुणामयि:।।"

रुद्राक्ष माला से इस मंत्र को 108 बार, 21 या 51 माला जाप करना चाहिये।

देवी की विशेष कृपा पाने के लिए उपरोक्त मंत्रों का जाप अवश्य करना चाहिए।