सुख समृद्धि धन और मान सम्मान पाने के लिए इन तरीकों से मनाएं गुड़ी पर्व
गुड़ी पर्व का महत्त्व-
गुड़ी पर्व का त्यौहार चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा के दिन मनाया जाता हैं. इसी दिन से हिन्दू नव वर्ष की शुरुआत होती है. गुड़ी का अर्थ होता है विजय पताका. मान्यताओं के अनुसार इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी. गुड़ी पर्व के दिन से ही नए संवत्सर की शुरुआत होती है. इसलिए गुड़ी पर्व को 'नवसंवत्सर' भी कहा जाता हैं. इसी दिन से चैत्र नवरात्रि की भी शुरुआत होती है. चैत्र माह में वृक्ष तथा लताएं फलते-फूलते हैं. शुक्ल प्रतिपदा तिथि को चंद्रमा की कला का पहला दिन माना जाता है. चन्द्रमा जीवन के मुख्य आधार वनस्पतियों को सोमरस प्रदान करता है. चन्द्रमा को औषधियों और वनस्पतियों का राजा माना जाता है है. इसीलिए गुड़ी पर्व के दिन को वर्ष का आरम्भ माना जाता है.
क्यों मनाया जाता है गुड़ी पर्व
• मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीराम ने बाली का अंत करके प्रजा को उसके अत्याचारी शासन से मुक्ति दिलाई थी.
• बाली की मृत्यु के पश्चात् इसी दिन प्रजा ने अपने अपने घरों उत्सव मनाकर ध्वज (गुड़ी) लगाए थे.
• आज भी महाराष्ट्र में घर के आंगन में गुड़ी लगाने की प्रथा चली आ रही है.
• इसीलिए इस दिन को गुड़ी पड़वा कहा जाता है.
• गुड़ी पर्व के दिन महाराष्ट्र में पूरन पोली या मीठी रोटी बनाई जाती है. पूरन पोली में गुड़, नमक, नीम के फूल, इमली और कच्चा आम मिलाया जाता है.
• पूरन पोली मे मिठास के लिए गुड़ , नीम के फूल कड़वाहट को दूर करने के लिए इमली मिलाई जाती है.
गुड़ी पर्व से जुडी विशेष बातें-
• गुड़ी पड़वा के दिन को हिन्दू नववर्ष का आरम्भ माना जाता है,
• इसी वजह से हिन्दू धर्म में सभी लोग इस त्यौहार को अलग-अलग तरह से त्यौहार के रूप में मनाते हैं.
• आम तौर पर गुड़ी पर्व के दिन सभी हिन्दू परिवारों में गुड़ी का पूजन करने के पश्चात् इसे घर के मुख्यद्वार पर लगाया जाता है.
• इस दिन घर के सभी दरवाजों पर आम के पत्तों से बना बंदनवार लगाया जाता है.
• मान्यताओं के अनुसार घर के दरवाजे पर बंदनवार लगाने से घर में सुख, समृद्धि और खुशियां आती हैं.
• गुड़ी पड़वा के दिन मुख्य रूप से हिन्दू परिवारों में पूरनपोली नाम का एक मीठा व्यंजन बनाया जाता है. इस दिन पूरन पोली को घी और शक्कर के साथ खाया जाता है.
• वहीं इस दिन महाराष्ट्र में विशेष रूप से श्रीखंड बनाया जाता है, और अलग अलग प्रकार के व्यंजनों और पूरी के साथ परोसा जाता है.
• गुड़ी पर्व के दिन आंध्रप्रदेश में हर घर में प्रसाद के रूप में पच्चड़ी बनाकर बांटा जाता है.
• इस दिन नीम की कोमल पत्तियों को भी खाने का नियम है.
• गुड़ी पर्व के दिन प्रातःकाल में उठकर नीम के कोमल पत्तो को खाने के पश्चात् गुड़ खाया जाता है.
• नीम के साथ गुड़ खाने को कड़वाहट को मिठास में परिवर्तित करने का प्रतीक माना जाता है.
गुड़ी पर्व पूजन विधि-
• गुड़ी पर्व के दिन पूजा का संकल्प लेने के पश्चात एक लकड़ी की चौकी पर थोड़ा सा गंगाजल छिड़क कर उसे शुद्ध करें.
• अब इसके ऊपर सफेद रंग का कपड़ा बिछाकर उसके ऊपर हल्दी या केसर से रंगे अक्षत से अष्टदल कमल का निर्माण करें.
• अब इसके ऊपर ब्रह्मा जी की सोने की मूर्ति स्थापित करें.
• यदि आप सक्षम नहीं है तो पीतल या तांबे की मूर्ति की स्थापना भी कर सकते हैं.
• अब गणेशअंबिका पूजा करने के बाद नीचे दिए गए मन्त्र का जाप करे.
मन्त्र-
ॐ ब्रम्ह्ने नमः
• इस मन्त्र के द्वारा ब्रह्मा जी का आवाहन और षोडशोपचार द्वारा पूजन करें.
• पूजा करने के पश्चात सभी प्रकार के विघ्नों का नाश और वर्ष के कल्याण कारक तथा शुभ होने के लिए ब्रह्मा जी से प्रार्थना करें.
• पूजा करने के बाद ब्राह्मणों को सात्विक भोजन करवाएं और बाद में स्वयं भोजन ग्रहण करें.
• भोजन करवाने के बाद ब्राह्मणों को अपनी क्षमता अनुसार दान दक्षिणा दें.
• इस दिन घर को बंदनवार पताका और ध्वजा से सुशोभित करना चाहिए.
• गुड़ी पर्व के दिन नीम के पत्तों का चूर्ण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, जीरा, मिश्री और अजवाइन डालकर इसका सेवन करना चाहिए, इससे खून से जुड़ी बीमारियां नहीं होती हैं.