पौराणिक कथाओं के अनुसार उस काल में हैहयवंशीय क्षत्रिय राजाओं के अत्याचार से संसार परेशान था। इस अत्याचार के पीछे कारण था राजा भार्गव और हैहयवंशियों के बीच चली आ रही बहुत ही पुरानी दुश्मनी जिसने उन्हें एक-दूसरे के प्राण का प्यासा बना दिया था । हैहयवंशियों का राजा सहस्रबाहु बहुत ही अत्याचारी था और वह अर्जुन भार्गव आश्रमों के ऋषियों को सताने में कोई कसर नही छोड़ता था। एक बार की बात है कि सहस्बाहु के पुत्रो ने जमदग्नि ऋषि के आश्रम में जबरन घुसकर एक बहुत ही विशेष कामधेनु गाय को चोरी करने का दुस्साहस किया और इसीलिये परशुराम जी से बदला लेने के लिये उनके पिता का वध भी कर दिया। कामधेनु गाय का अपनी महिमा है और वह सदा ही पूज्नीय रही है।
पिता की मृत्यु का वियोग
जब परशुराम जी अपनी कुटिया पहुँचे तो वह बहुत ही दुखी हुए और इस असीम वेदना और क्रोध के कारण उन्होंने हैहयवंशीय क्षत्रियों की पूरी वंश-बेल को खत्म करने की कसम खाई। वह अपने पिता की मृत्यु का दुख सहन ना कर सके। अपने पति की इस प्रकार की हत्या का अंदेशा परशुराम की माता को भी ना था और इसी कारण भगवान परशुराम की माता भी चिता में जल कर सती हो गयीं। अपने माता –पिता से अलगाव ने उनके ह्दय को दुख से भर दिया। उनके पिता का वध बहुत ही निर्ममता से किया गया था और इसी कारण उनके शरीर पर कुल 21 घाव थे जिसे देखकर भगवान परशुराम जी का संयम पूरी तरह से डावाडोल हो गया और उन्होनें प्रतिज्ञा ली कि वह इस पृथ्वी से समस्त क्षत्रिय वंशों का ही पूरी तरह से संहार कर देंगे।
क्षत्रियों के विध्वंस की प्रतिज्ञा
यह प्रतिज्ञा लेने के बाद उन्होनें पूरी पृथ्वी के 21 चक्कर लगाये जो इस बात का प्रतीक थे कि वह अपनी प्रतिज्ञा को अवश्य ही पूरा करेंगे । और अपनी इसी कसम के कारण उन्होने अपने इस वंश के लोगों को बार-बार युद्ध के लिये उकसाया और उन्हें 21 बार पूरी तरह से नाश कर दिया था। और तभी से इस प्रकार की भ्रांतियां भी चलती आ रही है कि भगवान परशुराम ने पृथ्वी पर से क्षत्रियों का पूरी तरह से नाश कर दिया था किंतु कुछ ज्ञानी कहते हैं कि उन्होनें महिलाओं का वध नहीं किया था और इसी की वजह से उनका वंश चलता रहा। और इस बात का प्रतीक है कि भगवान परशुराम महिलाओं का कितना सम्मान करते थे।
क्षत्रियों के रक्त से भरे 5 बड़े कुंड-
भगवान परशुराम जी ने क्षत्रियों के रक्त से कुरुक्षेत्र में पाँच बड़े-बड़े कुंड भर दिये थे और इसी रुधिर से परशुराम जी ने अपने पितरों का तर्पण किया। उनके असीम क्रोध को देखते हुये उस समय ऋचीक ऋषि साक्षात उनके सामने प्रकट हुए और समझाने का प्रयास किया। उन्होंने परशुराम जी को ऐसा ना करने के लिये कहा कोई यह धर्म नहीं था। इसके बाद उन्होनें ऋत्विजों को दक्षिणा में समस्त पृथ्वी प्रदान की। ब्राह्मणों ने कश्यप जी की आज्ञा से ही उस वेदी को विभिन्न खंडों में बाँट लिया और इसी कारण वे ब्राह्मण जिन्होंने वेदी को आपस में बाँट लिया था उनको खांडवायन के नाम से जाना जाने लगा।