जानिए क्या है मासी मागम का महत्व और पूजन विधि
मासी मागम का त्यौहार मुख्य रूप से तमिलनाडु और केरल में मनाया जाने वाला एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है. मासी मागम का त्यौहार मासी (फरवरी - मार्च) के तमिल महीने में मनाया जाता है. मागम को ज्योतिष प्रणाली में सत्ताईस सितारों में से एक माना जाता है. यह त्यौहार मासी महीने में आमतौर पर पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. इसी वजह से इसे दक्षिण भारत में विशेष रूप से तमिलनाडु, पॉन्डिचेरी और केरल में शुभ माना जाता है. मासी मागम का त्यौहार बारह वर्षों में एक बार आता है. जिस वक़्त बृहस्पति मासी मग दिवस पर सिंह राशि में प्रवेश करता है तब मासी मागम का त्यौहार बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है. मासी मागम पर्व के दिन सभी प्रकार के अनुष्ठान, पवित्र कार्य और पूजा की जा सकती है.
मासी मागम का महत्व:
• मासी मागम माघ के साथ संरेखित होने के बाद से साल का सबसे शक्तिशाली पूर्ण चंद्र दिवस माना जाता है.
• यह राजाओं और पूर्वजों का जन्म सितारा है.
• यह घटना साल में सिर्फ एक बार ही घटती है और पृथ्वी पर रहने वाले स्वर्गीय प्राणियों के वंश का संकेत देती है.
• मासी मागम के दिन पड़ने वाली पूर्णिमा के दिन श्रद्धा और आस्था के साथ पूजा करने से सुख और समृद्धि प्राप्त होती है.
• जो भी मनुष्य इस दिन पूजा अर्चना करता है उसे शक्ति और ऊर्जा प्राप्त होती है और साथ ही उसके अंदर का अहंकार भी नष्ट हो जाता है.
मासी मागम पूजन विधि-
• मासी मागम के दिन मूर्तियों को समुद्र के किनारे या तालाबों में ले जाया जाता है.
• इस त्योहार को पवित्र स्नान समारोह के रूप में भी जाना जाता है.
• इस दिन लोग अलग अलग मंदिरों से भगवान विष्णु और भगवान शिव की मूर्तियों की झांकी के साथ समुद्र में पहुंचते हैं. मासी मागम के दिन माँ शक्ति की मूर्तियों को भी समुद्र के किनारे ले जाया जाता है.
• भगवान् की मूर्तियों को समुद्र के किनारे ले जाकर उनकी पूजा और अन्य अनुष्ठान किए जाते हैं.
• मासी मागम के दिन भक्त हजारों की संख्या में प्रार्थना करने के लिए समुद्र के तट पर आते हैं.
• इस दिन मंदिर की मूर्तियों को पारंपरिक अनुष्ठानों के अनुसार समुद्र, तालाब या झील में स्नान कराया जाता है.
• इस पर्व के दिन मंदिरों में पूजा की जाने वाली देवी-देवताओं की मूर्तियों को एक बड़े जुलूस में ले जाया जाता है.
• मासी मागम के पर्व के दिन कुछ मंदिरों में, गजा-पूजा (हाथी की पूजा) और अश्व पूजा (घोड़ा) भी की जाती है. इस दिन सभी भक्त इस विश्वास के साथ समुद्र में स्नान करते हैं कि समुद्र का पवित्र जल उनके द्वारा किये गए सभी पापों को धो देता है.
• दक्षिण भारत में मासी मागम का त्योहार बहुत ही धूमधाम और दिव्य तरीके से मनाया जाता है.
मासी मागम कथा-
मासी मकम से संबंधित बहुत सी किंवदंतियाँ मशहूर हैं. प्रत्येक मंदिर में मासी मागम का त्यौहार मनाने की एक अलग कहानी है. एक किंवदंती के अनुसार भगवान शिव ने तिरुवन्नमलाई के राजा वल्लला से पहले एक बालक के रूप में अवतार लिया था जो भगवान् शिव के परम भक्त थे राजा की कोई संतान नहीं थी. तब भगवान शिव ने राजा को ये वरदान दिया की वो स्वयं उनका अंतिम संस्कार करेंगे. फिर मासी मगाम के पर्व के दिन उस राजा की मृत्यु हो गयी और वादे के अनुसार भगवान शिव ने उसका अंतिम संस्कार किया. तब भगवान शिव ने राजा को वरदान दिया कि जो भी मनुष्य मासी मागम के दौरान समुद्र में स्नान करेगा, उसे मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होगी. मान्यताओंके अनुसार हर वर्ष भगवान राजा वल्लाह का अंतिम संस्कार करने के लिए समुद्र का दौरा करने आते हैं.
एक दूसरी कथा के अनुसार प्राचीन काल में, बहुत सारे ऐसे ऋषि थे जो बहुत ही अभिमानी थे. ये ऋषि ज्ञान प्राप्त करते हुए देवताओं की उपेक्षा करते थे. ऋषियों का अहंकार बहुत बढ़ गया. ऋषियों को ये विश्वास था कि वे इंसानों का मार्गदर्शन कर सकते हैं. उन्हें अब किसी भी देवताओं के आशीर्वाद की आवश्यकता नहीं थी. ऋषियों की ऐसी सोच देखकर भगवान् शिव को बहुत क्रोध आया और भगवान शिव ने ऋषियों को सबक सिखाने का फैसला किया. तब भगवान् शिव ने भिखारी का रूप धारण किया. भगवान् शिव ऋषियों के सामने प्रकट हुए तो ऋषियों ने उन्हें नहीं पहचाना और मान लिया कि वह शैतान है. ऋषियों ने अपनी शक्ति और मंत्रों का दुरुपयोग किया. ऋषियों ने भगवान शिव पर हमला करने के लिए एक पागल हाथी भेजा. जैसे ही हाथी भगवान शिव पर हमला करने वाला था, वह तुरंत गायब हो गया. देवी पार्वती यह सब देखकर बहुत ही चिंतित थीं. उन्हें लग रहा था की भगवान शिव के गायब होने से पूरी दुनिया का अंत हो जायेगा.
भगवान शिव ने हाथी को मार दिया और उसी हाथी की खाल को पहन लिया. तबसे इस दिन को गज संहार के रूप में जाना जाता है. तब ऋषियों को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने भगवान शिव से माफी मांगी. कुंभकोणम और कुंभेश्वर मंदिर में मासी मागम को बहुत महत्व पूर्ण माना जाता है.यहाँ पर महा महाम नामक पवित्र सरोवर भी है.