बहुत समय पहले रंतिदेव नाम के एक प्रतापी राजा राज्य करते थे. राजा रंतिदेव का स्वभाव बहुत ही शांत और मृदुल था. यह हमेशा सभी लोगों का भला चाहते थे और गलती से भी कभी किसी का बुरा नहीं करते थे. जब इनका अंत समय आया तब यमदूत राजा के पास उनके प्राण हरने के लिए आए और तब इन्हें पता चला कि इन्हें मृत्यु के बाद मोक्ष की जगह नरक की प्राप्ति होगी. तब उनके मन में यह सवाल आया कि जब मैंने कभी भी किसी का बुरा नहीं किया या कभी कोई पाप नहीं किया तो मुझे नरक की यातना और कष्ट क्यों सहनी पड़ेगी. तब राजा रंतिदेव ने अपने मन की दुविधा को दूर करने के लिए यमदूत से नरक भोगने का कारण पूछा. तब यमदूत ने राजा रंतिदेव की शंका का समाधान करते हुए राजा को बताया कि एक बार आपके दरवाजे पर एक ब्राम्हण आया था पर आपकी गलती के कारण वह ब्राम्हण आपके दरवाजे से भूखा लौट गया. जिसकी वजह से आपको नर्क की यातना झेलनी पड़ेगी. तब राजा रंतिदेव को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने यमदूत से प्रार्थना की कि उन्हें अपनी गलती सुधारने का एक मौका और दिया जाए. राजा रंतिदेव के अच्छे स्वभाव को देखते हुए यमदूत ने उन्हें अपनी गलती सुधारने का मौका दिया. तब राजा रंतिदेव ने अपने गुरु से सारी बातें बता कर उपाय पूछा. तब उनके गुरु ने यह आज्ञा दी कि अगर वह नरक यातना से मुक्ति पाना चाहते हैं तो एक हजार ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उनसे क्षमा याचना करें. राजा रंतिदेव ने अपने गुरु की आज्ञा का पालन किया और 1000 ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उनसे क्षमा याचना की. ब्राम्हण राजा रंतिदेव से बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया. ब्राह्मणों के आशीर्वाद के प्रभाव से राजा रंतिदेव को उनके किए गए पाप से मुक्ति मिली और मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त हुआ. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चौदस थी. इसलिए इसे नरक निवारण चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है.
हमारे धर्म पुराणों में नरक चौदस को लेकर एक और कथा बहुत ही प्रचलित है
ऐसा बताया जाता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी तिथि के दिन श्री कृष्ण ने नरकासुर नाम के राक्षस का वध किया था. नरकासुर राक्षस ने 16000 कन्याओं को बंदी बनाकर रखा था. श्री कृष्ण ने नरकासुर का अंत कर के 16000 कन्याओं को उसकी कैद से मुक्त करवाया था. तब कन्याओं ने श्री कृष्ण से कहा कि अब हमें समाज स्वीकार नहीं करेगा. इसलिए आप ही कोई रास्ता दिखाएं. श्री कृष्ण ने समाज में इन कन्याओं को सम्मान दिलाने के लिए सत्यभामा के सहयोग से 16000 कन्याओं से विवाह कर लिया. इस दिन नरकासुर का संघार और 16000 कन्याओं के बंधन मुक्त होने के कारण नरक चतुर्दशी के दिन दीपदान करने की प्रथा शुरू की गई. एक दूसरी मान्यता के अनुसार नरक चौदस के दिन सुबह सूर्योदय से पूर्व नहाकर यमराज की पूजा करने और शाम के समय दीपदान करने का नियम है. जो भी व्यक्ति ऐसा करता है उसे कभी भी नर्क की यातना और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है. इसी वजह से नरक चतुर्दशी के दिन दीपदान और पूजा करना बहुत महत्वपूर्ण होता है.