परशुराम द्वादशी
क्या है परशुराम द्वादशी-
परशुराम द्वादशी व्रत, भगवान विष्णु के छठे अवतार, भगवान परशुराम को समर्पित है. परशुराम द्वादशी व्रत वैशाख मास में शुक्ल पक्ष के बारहवें दिन मनाया जाता है. इस दिन भक्त एक कठोर व्रत का पालन करते हैं. मोहिनी एकादशी के अगले दिन परशुराम व्रत मनाया जाता है. कभी-कभी दोनों व्रत एक ही दिन पड़ सकते हैं. शास्त्रों में इस व्रत को बहुत ही फलदायी माना गया है शास्त्रों के अनुसार अगर कोई वैवाहिक दंपत्ति संतान की कामना रखते हैं तो उन्हें परशुराम द्वादशी का व्रत करना चाहिए
परशुराम द्वादशी का महत्व-
भगवान् परशुराम को भगवान विष्णु के छठे अवतार के रूप में जाना जाता है. इनकी माता का नाम रेणुका था. भगववान परशुराम त्रेता युग और द्वापर युग के दौरान रहे. शास्त्रों के अनुसार भगवान् परशुराम को चिरंजीवी या अमर माना जाता हैं. भगवान् परशुराम ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान् शिव ने उन्हें दर्शन दिए और परशु प्रदान किया. भगवान् शिव ने परशुराम को कलारीपयट्टु नामक कला का भी प्रशिक्षण दिया. दो विशाल महाकाव्य महाभारत और रामायण ने भीष्म, द्रोण और कर्ण के गुरु के रूप में उनकी महत्वपूर्ण भूमिकाओं को परिभाषित किया है . परशुराम एक महान योद्धा थे. वो हमेशा भगवा वस्त्र धारण करते थे. उन्होंने भगवान शिव से भार्गवस्त्र अर्जित किया था. परशुराम ने भगवान शिव से युद्ध के गुर भी सीखे थे. मान्यताओं के अनुसार परशुराम द्वादशी के दिन किये गए पुण्य का प्रभाव कभी खत्म समाप्त नहीं होता है. विशेष रूप से ब्राह्मणों के लिए परशुराम द्द्वादशी का बहुत महत्व होता है.
भगवान परशुराम से जुडी विशेष बातें