Indian Festivals

पौष माह शुरू | Paush Maas Shuru on 05 Dec 2025 (Friday)

महत्व :-
इस महीने में मध्य रात्रि की साधना उपासना त्वरित फलदायी होती है| इस महीने में गर्म वस्त्रों और नवान्न का दान काफी उत्तम होता है| इस महीने में लाल और पीले रंग के वस्त्र भाग्य में वृद्धि करते हैं| इस महीने में घर में कपूर की सुगंध का प्रयोग स्वास्थ्य को खूब अच्छा रखता है|

कब और क्यों मनाई जाती है:-
  • हिंदू पंचाग के अनुसार साल के दसवें महीने को पौष का महीना कहा जाता है। इस महीने में हेमंत ऋतु का प्रभाव रहता है अतः ठंड काफी रहती है। 
  • इस महीने में सूर्य अपने विशेष प्रभाव में रहता है। विक्रम संवत में पौष दसवां महीना होता है। भारतीय महीनों के नाम नक्षत्रों पर आधारित हैं। 
  • जिस मास की पूर्णिमा को चंद्रमा जिस नक्षत्र में रहता है उस मास का नाम उसी नक्षत्र के आधार पर रखा गया है। पौष मास की पूर्णिमा को चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में रहता है इसलिये इस मास को पौष का मास कहा जाता है।
मान्यताए :-
  • मान्यता है कि इस महीने में मुख्य रूप से सूर्य की उपासना ही फलदायी होती है। 
  • ये भी कहा जाता है कि इस महीने सूर्य ग्यारह हज़ार रश्मियों के साथ व्यक्ति को उर्जा और स्वास्थ्य प्रदान करता है। पौष मास में अगर सूर्य की नियमित उपासना की जाए तो वर्षभर व्यक्ति स्वस्थ और संपन्न रहेगा।
  • मान्यता है कि सूर्य देवता के भग नाम से इस माह में उनकी पूजा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। 
  • शास्त्रों में ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य को ही भग कहा गया है और जो इनसे युक्त उन्हें भगवान माना गया है।
  • वहीं मान्यता यह भी है कि इस मास में मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिये क्योंकि उनका शुभ फल नहीं मिलता। 
  • हालांकि विद्वानों का मानना है कि सांसारिक कार्यों को निषिद्ध करने के पिछे ऋषि-मुनियों का उद्देश्य सिर्फ यह था कि लोग कुछ समय धार्मिक कार्यों में रूचि लेकर आध्यात्मिक रूप से आत्मोन्नति कर सकें। इसका एक कारण यह भी है कि पौष मास में सूर्य अधिकतर समय धनु राशि में रहते हैं। 
  • धनु राशि के स्वामी बृहस्पति माने जाते हैं। मान्यता है कि देव गुरु बृहस्पति इस समय देवताओं सहित सभी मनुष्यों को धर्म-सत्कर्म का ज्ञान देते हैं। लोग सांसारिक कार्यों की बजाय धर्म-कर्म में रूचि लें इसी कारण इस सौर धनु मास को खर मास की संज्ञा ऋषि-मुनियों ने दी। 
 
विधि :-
  • पौष पूर्णिमा के दिन सुबह उठ कर किसी पवित्र नदी में स्नान करें और फिर व्रत का संकल्प लें।
  • वरुण देव को प्रणाम कर पवित्र नदी या कुंड में स्नान करें।
  • इसके बाद सूर्य मंत्र के साथ सूर्य देव को अर्घ्य दें। 
  • मंदिर या घर पर ही भगवान कृष्ण की मूर्ति के आगे दीया जलाएं। 
  • फिर उन्हें नैवेद्य और फल चढ़ाएं। 
  • रात के समय भगवान सत्यनारायण की कथा पढ़ें। 
  • उसके बाद चंद्र देव की आरती उतारें। 
  • किसी जरूरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराएं। 
  • ब्राह्मण या गरीब व्यक्ति को तिल, गुड़, कंबल और ऊनी वस्त्र का दान करें। 
Disclaimer: The information presented on www.premastrologer.com regarding Festivals, Kathas, Kawach, Aarti, Chalisa, Mantras and more has been gathered through internet sources for general purposes only. We do not assert any ownership rights over them and we do not vouch any responsibility for the accuracy of internet-sourced timelines and data, including names, spellings, and contents or obligations, if any.