श्री लक्ष्मी पंचमी को हिंदु धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस व्रत का लक्ष्मी प्राप्ति के संबंध में भी बहुत ही विशेष स्थान है।श्री पचंमी का त्यौहार पूरी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है । यह त्यौहार विद्या, ज्ञान, कला और संगीत की देवी मां सरस्वती जी को पूरी तरह समर्पित है।
कैसे मनाते है श्री लक्ष्मी पंचमी -
इस दिन शुभ दिन लोग पीले और चटख रंग के कपड़े पहनते है जो जीवन और प्रकृति की जीवंतता की ओर इंगित करता है। इस दिन भक्त जल्दी उठते है । घरों को फूलों से सजाया जाता है। इस दिन देवी सरस्वती जी की पूजा करना बहुत ही शुभ माना जाता है। दुनिया भर के अनुयायियों के बीच यह बहुत ही प्रसिद्ध है। देवी सरस्वती जी की मूर्तियों को भी बहुत ही खूबसूरती के साथ पीले और रंग-बिरंगे फूलों के साथ सजाया जाता है। मां सरस्वती जी को इस दिन भोग में आटे, मेवे, चीनी और इलायची पाउडर से बने 'केसर हलवा' का भोग लगाया जाता है। इस दिन हवन और अन्य तरीके के पूजा अनुष्ठान करना बहुत ही शुभ माना जाता है।
कैस करें पूजा –
सुबह जल्दी उठकर उपवास के प्रण लेना चाहिये । इस दिन साफ सुथरे कपड़े पहनने चाहिये। ऐसा कहा जाता है कि रात के समय दही और भात का सेवन करना चाहिये।
इसके बाद पंचमी के दिन प्रातः स्नान करने के बाद देवी जी की मूर्ति को एक मंच पर विराजमान करना चाहिये।
मूर्ति को पंचामृत से स्नान करना चाहिये । लक्ष्मी जी को कमल का फूल चढाते हुये उनकी पूजा पूरी श्रद्धा के साथ करनी चाहिये।
मंत्रों का जाप करना चाहिये।
चंदन, केले के पत्ते, फूलों की माला, चावल, दूर्वा, लाल धागा, सुपारी, नारियल और अन्य पवित्र चीजों से देवी जी के चरणों में समर्पित करना चाहिये। इसके साथ देवी लक्ष्मी जी को नीचे दी गयी वस्तुओं का भोग लगाना चाहिये - अनाज, हल्दी, गुड़, अदरक
ऐसा भी कहा जाता है कि देवी लक्ष्मी जी को कमल का फूल, घी, बेल के टुकड़े आदि से हवन आहवान भी करना चाहिए।
देवी जी की पूजा समाप्त होने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये और दान में सामर्थ्य अनुसार धन भी देना चाहिये।
इस व्रत के दौरान भक्त को अन्न नहीं खाना चाहिये।
श्री लक्ष्मी पंचमी व्रत कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसारमाँ लक्ष्मी सभीदेवताओं से रूठश्री सागर मेंखुद को समालिया। माँ लक्ष्मीके चले जानेसे सभी देवगनश्री विहीन होगए।तब देव इंद्रने माँ लक्ष्मीको प्रसन्न करनेके लिए कड़ीतपस्या करि, उपवासकरे। देव इंद्रको देख अन्यदेवी देवता, दैत्यगणआदि भी माँलक्ष्मी को प्रसन्नकरने के लिएतपस्या व् व्रतउपवास करने लगे।सबकी तपस्या सेप्रसन्न हो माँलक्ष्मी जी चैत्रशुक्ल पक्ष कीपंचमी तिथि कोफिर से प्रकटहुई और भगवान्विष्णु के साथउनका विवाह हुआ।इसीकारण इस दिनको श्री पंचमीके रूप मेंमनाया जता है।