प्रदोष का अर्थ है "भारी दोष"| चन्द्रमा को क्षय रोग होने के कारण चंद्र देव अंतिम साँसे गिन रहे थे| तभी भगवान् शंकर ने चन्द्रमा को पुनर्जीवन देकर मस्तक पर धारण किया| चंद्र मृत्यु के निकट जाकर भी भगवान् शिव की कृपा से जीवित रहे और पूर्णमाशी के दिन तक पूर्णता स्वस्थ हो प्रकट हुए|
प्रदोष व्रत महत्व
जीवन में शारीरिक मानसिक एवं आधयात्मिक रूप से मज़बूत होने के लिए प्रदोष व्रत कारगर मन गया है| प्रदोष व्रत एक ऐसा व्रत है जो मृत्यु के निकट पोहोंचे हुए मनुष्य को जीवन दान देता है| प्रदोष व्रत हर माह के दोनों पक्षों की त्रयोदशी को मनाया जाता है| भगवान् शिव की विशेष और अनंत कृपा पाने के लिए यह व्रत कारगर है| हिन्दू धर्म शास्त्रों में इस व्रत का विशेष महत्व बताया गया है| इस व्रत को हर माह के दोनों पक्षों को करने से व्यक्ति के जीवन के सब कष्टों का निवारण होजाता है| प्रदोष व्रत काअपना महत्व है, परन्तु दिन के अनुसार पड़ने वाले प्रदोष व्रत का अपना अलग महत्व होता है|
1. व्रत रखने वाले व्यक्ति को व्रत के दिन सूर्य उदय होने से पहले उठना चाहिये।
2. स्नान आदिकर भगवान् शिव का नाम जपते रहना चाहिए|
3. सुबह नहाने के बाद साफ और नारंगी वस्त्र पहनें।
4. इस व्रत में दो वक्त पूजा करि जाती है एक सूर्य उदय के समय और एक सूर्यास्त के समय प्रदोष काल में|
5. व्रत में अन्न का सेवन नहीं करेंगे, फलाहार व्रत करेंगे|
6. इस व्रत में नमक का सेवन नहीं किया जाता|
7. फिर उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और गौरी शंकर भगवान् का सयुंक्त पूजन करें।
8. इस दिन मंगला गौरी की कथा पढ़ना उत्तम रहता है|
9. साथ ही भगवान् शिव के सामने बैठ के हनुमान चालीसा का पाठ करें
10. भगवान् शिव माँ गौरी को सफ़ेद व् लाल फूलों की माला अर्पित करें. बेल पत्र अर्पित करें|
11. सफ़ेद मिठाई (पताशे,रसगुल्ले) फल का भोग लगाएं साथ ही बूंदी के लड्डू का भी भोग लगाएं|
12. घी व् तिल के तेल का दीपक लगाएं, धुप अगरबत्ती भी लगाएं.
13. भगवान् शिव को चन्दन की सगंध अर्पित करें|
14. दूर्वा अर्पित करें भगवान् गणश और शिव जी को|
15. भगवान् गणेश का पूजन कर अपनी पूजा प्रारम्भ करे|
16. पूजा में 'ऊँ नम: शिवाय' का जाप करें और जल चढ़ाएं।
भौम प्रदोष व्रत विधि
1. व्रत रखने वाले व्यक्ति को व्रत के दिन सूर्य उदय होने से पहले उठना चाहिये।
2. स्नान आदिकर भगवान् शिव का नाम जपते रहना चाहिए|
3. सुबह नहाने के बाद साफ और नारंगी वस्त्र पहनें।
मंगल प्रदोष व्रत कथा
एक नगर में एक वृद्धा निवास करती थी । उसके मंगलिया नामक एक पुत्र था । वृद्धा की हनुमान जी पर गहरी आस्था थी । वह प्रत्येक मंगलवार को नियमपूर्वक व्रत रखकर हनुमान जी की आराधना करती थी । उस दिन वह न तो घर लीपती थी और न ही मिट्टी खोदती थी । वृद्धा को व्रत करते हुए अनेक दिन बीत गए । एक बार हनुमान जी ने उसकी श्रद्धा की परीक्षा लेने की सोची । हनुमान जी साधु का वेश धारण कर वहां गए और पुकारने लगे -"है कोई हनुमान भक्त जो हमारी इच्छा पूर्ण करे?’ पुकार सुन वृद्धा बाहर आई और बोली- ‘आज्ञा महाराज?’ साधु वेशधारी हनुमान बोले- ‘मैं भूखा हूं, भोजन करूंगा । तू थोड़ी जमीन लीप दे। वृद्धा दुविधा में पड़ गई । अंततः हाथ जोड़ बोली- "महाराज! लीपने और मिट्टी खोदने के अतिरिक्त आप कोई दूसरी आज्ञा दें, मैं अवश्य पूर्ण करूंगी । साधु ने तीन बार प्रतिज्ञा कराने के बाद कहा- ‘तू अपने बेटे को बुला । मै उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाउंगा । वृद्धा के पैरों तले धरती खिसक गई, परंतु वह प्रतिज्ञाबद्ध थी । उसने मंगलिया को बुलाकर साधु के सुपुर्द कर दिया । मगर साधु रूपी हनुमान जी ऐसे ही मानने वाले न थे । उन्होंने वृद्धा के हाथों से ही मंगलिया को पेट के बल लिटवाया और उसकी पीठ पर आग जलवाई । आग जलाकर, दुखी मन से वृद्धा अपने घर के अन्दर चली गई । इधर भोजन बनाकर साधु ने वृद्धा को बुलाकर कहा- ‘मंगलिया को पुकारो, ताकि वह भी आकर भोग लगा ले। इस पर वृद्धा बहते आंसुओं को पौंछकर बोली -‘उसका नाम लेकर मुझे और कष्ट न पहुंचाओ। लेकिन जब साधु महाराज नहीं माने तो वृद्धा ने मंगलिया को आवाज लगाई । पुकारने की देर थी कि मंगलिया दौड़ा-दौड़ा आ पहुंचा । मंगलिया को जीवित देख वृद्धा को सुखद आश्चर्य हुआ । वह साधु के चरणों मे गिर पड़ी । साधु अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए । हनुमान जी को अपने घर में देख वृद्धा का जीवन सफल हो गया । सूत जी बोले- "मंगल प्रदोष व्रत से शंकर (हनुमान भी रुद्र हैं) और पार्वती जी इसी तरह भक्तों को साक्षात् दर्शन दे कृतार्थ करते हैं।