नरसिम्हा द्वादशी के दिन इन तरीको से करें भगवान् नरसिंह की पूजा
शास्त्रों में बताया गया है की फाल्गुन मॉस की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन नृसिंह द्वादशी का पर्व मनाया जाता है. नरसिम्हा द्वादशी के बारे में वेदों और पुराणों में भी किया गया है. आज हम आपको नरसिम्हा द्वादशी के महत्व और पूजन विधि के बारे में बताने जा रहे है.
नरसिम्हा द्वादशी का महत्व-
• शास्त्रों में भगवान विष्णु के बारह अवतारों के बारे में बताया गया है.
• मान्यताओं के अनुसार नरसिम्हा द्वादशी के दिन भगवान् विष्णु के अवतार भगवान नरसिंह एक खंभे को चीर कर प्रकट हुए थे.
• भगवान् नरसिम्हा के अवतार में उनका आधा शरीर मनुष्य का है और आधा शेर का.
• भगवान् विष्णु ने यही रूप धारण करके असुरों के राजा हिरण्यकशिप का संघार किया था.
• उसी दिन से इस दिन ये पर्व मनाया जाता है.
• शास्त्रों के अनुसार नरसिंह द्वादशी का व्रत करने से ब्रह्महत्या का पाप भी मिट जाता है.
• नरसिंह द्वादशी का व्रत करने से मनुष्य को सांसारिक सुख, भोग और मोक्ष तीनों की प्राप्ति होती है.
• जो भी मनुष्य सच्चे मन से नृसिंह द्वादशी के दिन भगवान् नरसिंह का व्रत करता है उसके सात जन्मों के पाप खत्म हो जाते है और वो अपार धन-संपत्ति का मालिक होता है.
• भगवान विष्णु ने नरसिम्हा अवतार धारण करके अपने परम भक्त प्रहलाद को भी वरदान दिया कि, जो भी मनुष्य नरसिम्हा द्वादशी के दिन शुद्घ मन से उनका व्रत और पूजा करेगा उसकी सभी मनोकामनायें पूरी होंगी.
नरसिंह द्वादशी से जुडी विशेष बातें-
• शास्त्रों में बताया गया है की नरसिंह द्वादशी के दिन जो भी मनुष्य सच्चे मन से भगवान नृसिंह की पूजा -अर्चना करता है उसके जीवन से धन की कमी दूर हो जाती है और सुख -समृद्धि की प्राप्ति होती है.
• भगवान् नृसिंह की पूजा करने से शत्रुओं का भी नाश होता है.
• जो भी मनुष्य सच्चे मन से भगवान नृसिंह की आराधना करता है उसके जीवन के सभी दुःख दूर हो जाते हैं.
नृसिंह द्वादशी पूजन विधि
• नृसिंह द्वादशी के दिन भगवान् विष्णु के अवतार नरसिंह भगवान् की पूजा अर्चना की जाती है.
• इस दिन लोग भगवान् नरसिंह की पूजा करके व्रत करते हैं.
• नृसिंह द्वादशी के दिन प्रातः काल ब्रह्म मुहर्त (4 बजे) उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत होने के पश्चात् स्नान करें.
• अब स्वच्छ वस्त्र धारण करके विधि विधान से भगवान नृसिंह की पूजा करे.
• भगवान नृसिंह की पूजा करने के लिए अपने घर के पूजा कक्ष में पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएँ.
• अब अपने सामने एक लकड़ी की चौकी रखे. अब इस चौकी पर थोड़ा सा गंगाजल छिड़ककर इसे शुद्ध कर ले. अब इस चौकी पर पीले रंग का वस्त्र बिछाएं.
• अब इसके ऊपर भगवान् नरसिंह की तस्वीर की स्थापना करें.
• अब फल, फूल, धुप, दीप, अगरबत्ती, पंचमेवा, कुमकुम, केसर, नारियल, अक्षत एवम पीतांबर से भगवन नरसिंह की पूजा करें.
• अब भगवान् नरसिंह के सामने घी का दीपक जलाएं और नीचे दिए गए मन्त्र का श्रद्धा पूर्वक जाप करे.
ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्.
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम्.
• नरसिंह द्वादशी के दिन घर में शंख नाद अवश्य करें. ऐसा करने से घर में मौजूद किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा खत्म हो जाती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.
• इस दिन अपने घर के मुख्य द्वार पर और घर के सभी दरवाजो पर रोली से तिलक लगाना चाहिए और मन ही मन भगवान् विष्णु को और उनके द्वारा प्रदान की गयी अपने जीवन में कृपा के लिए धन्यवाद भी देना चाहिए.
• भगवन नरसिंह की पूजा के संपन्न करने के बाद किसी निर्धन या किसी ब्राह्मण को अपनी क्षमता अनुसार दान अवश्य करें.
• भगवान् नरसिंह के इन मंत्रो के जाप करने से मनुष्य के सभी प्रकार के कष्टों का निवारण होता है और भगवान नृसिंह की कृपा से जीवन में सबकुछ मंगल होता है.
• भगवान नृसिंह अपने भक्तो की हमेशा रक्षा करते है.
नरसिंह द्वादशी कथा :
प्राचीन मान्यता के अनुसार, ऋषि कश्यप एवं उनकी पत्नी दिती की दो संतानें हुईं. ऋषि पुत्र होने के बावजूद दोनो ही संतानों में राक्षसी गुण की मात्रा प्रचुर भारी हुई थी. ऐसे में श्री हरी भगवान नारायण ने अपने वराह अवतार में उनके बड़े पुत्र हरिणयाक्ष का वध किया. अपने ज्येष्ठ भ्राता का वध देख कर हिरण्यकशिपु ने अपने को अजय बनाने की ठानी एवं सृष्टि के रचियता भगवान ब्रह्मा की तपस्या में लीं हो गया. घोर तप से प्रसन्न होकर हिरण्यकाशपु की इच्छा अनुसार ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दिया की उनके द्वारा रची गयी सृष्टि की किसी भी रचना से उसका वध नहीं होगा, ना वह पृथ्वी में मरेगा, ना ही आकाश में, ना ही पाताल में, ना मनुष्य द्वारा ना ही किसी जानवर द्वारा उसका वध हो पाएगा. ऐसा वरदान प्राप्त कर हिरयाणकशपु अपने को अजय समझ तीनो लोकों में त्राहि त्राहि मचाने लगा.
हिरण्यकाशपु की संतान के रूप में प्रह्लाद ने जन्म लिया. प्रह्लाद भगवान हरी की पूजा में लीन रहता एवं हर समय उन्ही का नाम जपता रहता. हिरण्यकाशपु अपने पुत्र की इस भक्ति से परेशान होकर उस पर भी कई अत्याचार करने लगा. अत्याचार की कोई सीमा नहीं रही एवं अपने ही पुत्र को कई तरह से समाप्त करने को भी हिरण्यकाशपु ने कोशिश की, लेकिन हर बार प्रह्लाद उन विपत्तियों से बच कर बाहर निकल जाता. प्रजा ने जब प्रह्लाद की भक्ति का ऐसा असर देखा तो वह भी नारायण की पूजा में लीन होने लगी. अब हिरण्यकाशपु के क्रोध की सभी सीमाएं पार हो गयीं. पास ही लगे एक खम्बे की तरफ देख कर हिरण्यकाशपु ने भक्त प्रह्लाद को ललकारा और कहा, अगर तुम्हारे भगवान सभी जगह व्याप्त हैं तो सामने क्यों नहीं आते, क्या तुम्हारे भगवान इस खम्बे से भी बाहर निकल कर तुम्हें बचा सकते हैं.
भक्त प्रह्लाद ने नारायण का नाम लेते हुए कहा की वह सब जगह व्याप्त हैं एवं इस खम्बे में भी व्याप्त हैं. ऐसा सुनते ही, हिरण्यकाशपु क्रोधित होकर, प्रह्लाद को मारने के लिए आगे बड़ा, एवं खम्बे पर ज़ोर से अपना गदा मारा. ऐसा होते ही अचानक खम्बे के टूटने की आवाज आयी एवं उसमें से श्री हरी नरसिह के रूप में प्रकट हुए. उनका भयानक शरीर आधे मनुष्य एवं आधे सिंह के रूप में था. उन्होंने ज़ोर से चिंघाड़ मरते हुए हिरयाणकशपु को उठाया एवं अपनी जांघ में रखा, और अपने तेज़ नाखूनों से उसके शरीर को फाड़ दिया. अजय हिरयाणकशपु का भगवान विष्णु ने अपने नरसिह अवतार के द्वारा वध किया. ब्रह्मा जी की किसी भी रचना से परे उन्होंने नरसिह का रूप धारा, ना ही वह मनुष्य थे और ना ही जानवर, जंघा में वध ना ही पृथ्वी पर था, ना ही आकाश पर और ना ही पाताल पर. भक्त प्रह्लाद की तरह जो भी व्यक्ति इस दिन भगवान विष्णु के नरसिह अवतार का पूजन करता है, भगवान उसे हर परेशानी से मुक्त करने के लिए किसी भी रूप में सामने आते हैं एवं उसकी समस्याओं का निदान होता है.