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पापांकुशा एकादशी | Papankusha Ekadashi on 03 Oct 2025 (Friday)

पापांकुशा एकादशी
 
सब व्रतों में सर्वश्रेष्ठ व्रत है एकादशी का व्रत।  एक साल में कुल चौबीस एकादशी होतीं हैं परन्तु अधिक मास में दो एकादशी और आ जाने से कुल छबीस एकादशियाँ हो जाती है।  एकादशी एक मात्र ऐसा व्रत है जो मनुष्य के सब पापो का नाश कर उसकी बुद्धि को सत्मार्ग पर चलने के लिए दिशा देता है।  मनुष्य को एकादशी के व्रत से मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।  एकादशी एक मात्र ऐसा व्रत है जिस से मनुष्य सभी देवी देवताओं को प्रसन्न कर उनकी कृपा पा लेता है। 

आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी  को "पापांकुशा एकादशी" कहते है।  ऐसी मान्यता है की इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के जीवन में जाने-अनजाने किये गए  सारे पाप नष्ट होजाते है। 

पापांकुशा एकादशी का महत्‍व 

मान्‍यताओं के अनुसार हजारों अश्वमेघ यज्ञों और सैकड़ों सूर्य यज्ञों के बाद भी इस व्रत का 16वां भाग जितना फल भी नहीं मिलता जितना इस व्रत को करने से मिलता है अर्थात एकादशी व्रत सभी व्रतों में श्रेष्ठ है।   इस एकादशी का व्रत करने से मैं व् आत्मा दोनों की शुद्धि होती है।  ऐसा कहा जाता है की एकादशी व्रत के समान अन्य कोई व्रत नहीं है। एकादशी की रात्रि की जागरण करने से मनुष्य को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।  इस एकादशी पर विष्णु भगवान् के पद्मनाभ स्वरुप की पूजा की जाती है। 

पापांकुशा व्रत व् पूजन विधि। 

एकादशी के दिन सूर्य उदय के पूर्व उठे और स्नान आदि कर खुद को शुद्ध करें। 
सबसे पहले भगवान् सूर्य को जल अर्पित करें। 
अब भगवान् के आगे हाथ जोड़ कर व्रत का संकल्प लें। 
अब एक चौकी लें उसपे पीला वस्त्र बिछाएं। 
चौकी पर भगवान् विष्णु जी की मूर्ति या चित्र इस्थापित करें। 
साथ में माँ लक्ष्मी जी की मूर्ति भी रखें। 
अब भगवान् को जल का छींटा दें।  
भगवान् को पीले वस्त्र अर्पित करें। 
उनको तिलक करें व् पीले फूल भी अर्पित करें। 
अब भगवान् की पूजा अर्चना करें। 
भगवान् के आगे धुप दीप भी लगाएं। 
संभव हो तो विष्णु सहस्त्र नाम का पाठ करें अन्यथा बहगवां विष्णु के मन्त्र ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का क्षमता अनुसार जाप करें। 
पापांकुशा एकादशी की व्रत कथा भी अवश्य पढ़े। 
अब पूरा दिन व्रत करें इस व्रत की निर्जल व् फलाहार खा कर भी किया जा सकता है। 
 

पापांकुशा व्रत कथा। 

धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! आश्विन शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? अब आप कृपा करके इसकी विधि तथा फल कहिए। भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे युधिष्ठिर! पापों का नाश करने वाली इस एकादशी का नाम पापांकुशा एकादशी है। हे राजन! इस दिन मनुष्य को विधिपूर्वक भगवान पद्‍मनाभ की पूजा करनी चाहिए। यह एकादशी मनुष्य को मनवांछित फल देकर स्वर्ग को प्राप्त कराने वाली है।

मनुष्य को बहुत दिनों तक कठोर तपस्या से जो फल मिलता है, वह फल भगवान गरुड़ध्वज को नमस्कार करने से प्राप्त हो जाता है। जो मनुष्य अज्ञानवश अनेक पाप करते हैं परंतु हरि को नमस्कार करते हैं, वे नरक में नहीं जाते। विष्णु के नाम के कीर्तन मात्र से संसार के सब तीर्थों के पुण्य का फल मिल जाता है। जो मनुष्य शार्ङ्‍ग धनुषधारी भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं, उन्हें कभी भी यम यातना भोगनी नहीं पड़ती।

 

पौराणिक कथा के अनुसार एक समय विध्‍यांचल पर्वत पर क्रोधना नाम का एक शिकारी रहता था।  उसने अपनी पूरी जिंदगी गलत कामों में जैसे कि हिंसा, लूट-पाट, मद्यपान और झूठे भाषणों में व्यतीत कर दी।  कई गलत कर्म और बेजुबान जीवों को मारकर वह पाप का भागी बन चुका था।  जब उसका अंतिम समय आया तो मृत्यु के डर से वह सहमा हुआ अंगिरा ऋषि के पास पहुंचा।  क्रोधना ने महर्षि से बोला कि उसने जीवन में अनेक पाप किए हैं जिससे मृत्यु के बाद उसे निश्चित ही नर्क मिलेगा।  भयभीत क्रोधना ने ऋषि से इन पापों का पार्यश्चित करने का उपाय जाना। 

अंगिरा ऋषि को उस पर दया आ गई  और उन्होंने उसे पापांकुशा एकादशी के महत्व के बारे में बताया और इस व्रत को रखने की बात कही।  ऋषि के कहे अनुसार उसने व्रत रखकर विधि विधान से श्रीहरि की आराधना की।  व्रत के प्रभाव से उसे समस्त पाप कर्म से छुटकारा मिल गया और उसे बैकुंठ लोक में स्थान मिला।

 

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, हे राजेन्द्र! यह एकादशी स्वर्ग, मोक्ष, आरोग्यता, सुंदर स्त्री तथा अन्न और धन की देने वाली है। एकादशी के व्रत के बराबर गंगा, गया, काशी, कुरुक्षेत्र और पुष्कर भी पुण्यवान नहीं हैं। हरिवासर तथा एकादशी का व्रत करने और जागरण करने से सहज ही में मनुष्य विष्णु पद को प्राप्त होता है। हे युधिष्ठिर! इस व्रत के करने वाले दस पीढ़ी मातृ पक्ष, दस पीढ़ी पितृ पक्ष, दस पीढ़ी स्त्री पक्ष तथा दस पीढ़ी मित्र पक्ष का उद्धार कर देते हैं। वे दिव्य देह धारण कर चतुर्भुज रूप हो, पीतांबर पहने और हाथ में माला लेकर गरुड़ पर चढ़कर विष्णुलोक को जाते हैं।

हे नृपोत्तम! बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था में इस व्रत को करने से पापी मनुष्य भी दुर्गति को प्राप्त न होकर सद्‍गति को प्राप्त होता है। आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की इस पापांकुशा एकादशी का व्रत जो मनुष्य करते हैं, वे अंत समय में हरिलोक को प्राप्त होते हैं तथा समस्त पापों से मुक्त हो जाते हैं। सोना, तिल, भूमि, गौ, अन्न, जल, छतरी तथा जूती दान करने से मनुष्य यमराज को नहीं देखता।

 

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