Indian Festivals

अष्टाह्निका विधान शुरू | Ashatahnika Vidhan Start on 08 Nov 2024 (Friday)

महत्व:-
वर्ष में तीन बार आने वाले अष्टाह्निक पर्व के बारे में जैन मतावलंबियों की मान्यता है कि इस दौरान स्वर्ग से देवता आकर नंदीश्वर द्वीप में निरंतर आठ दिन तक धर्म कार्य करते हैं। कार्तिक, फाल्गुन, और  आषाढ़ इन तीन महीनों के शुक्ल पक्ष में मनाये जाने इस पर्व पर जो भक्त नंदीश्वर द्वीप तक नहीं पहुंच सकते वे अपने निकट के मंदिरों में पूजा आदि कर लेते हैं। ये विधान हिंदी तिथि के अनुसार किया जाता है यानि, यदि तिथियां घट बढ़ जाती है तो सप्तमी अथवा नवमी से पर्व मनाया जाता है। जैसे तिथि घट जाये तो सप्तमी से और बढ़ जाए तो नवमी से व्रत रखे जाते है। कहते हैं कि छह महीने की पूजा से मिलने वाले लाभ से कई  गुना अधिक फल इन आठ दिनों की पूजा भक्ति से मिल जाता है।


कब और क्यों मनाई जाती है:-
आठ दिन मनाया जाने वाला अष्टाह्निक पर्व जैन धर्म में विशेष स्थान रखता है। आठ दिन का यह उत्सव, साल में तीन बार मनाया जाता है। इस अवधि में जैन मत को मानने वाले रोज मंदिरों में विशेष पूजा, सिद्धचक्र मंडल विधान, नन्दीश्वर विधान और मंडल पूजा सहित कर्इ प्रकार के अनुष्ठान करते हैं। अष्टमी से पूर्णिमा तक मनाया जाता है। भगवान महावीर स्वामी को समर्पित उत्सव जैन धर्म के सबसे पुराने पर्वों में से एक है। ये साल में तीन बार कार्तिक, फाल्गुन और आषाढ़ के महीनों में मनाया जाता है। इसे शाश्वत पर्व भी कहा जाता है यह एक तीर्थ यात्रा का पर्व है। भगवान महावीर को समर्पित यह पर्व जैन धर्म के सबसे पुराने त्योहारों में से एक है।  इस पर्व के दौरान कई जगहों पर मंदिर जी में सिद्धचक्र विधान भी आयोजित किये जाते हैं।

मान्यताए:-
ऐसा कहा जाता है कि इस पर्व की शुरुआत मैना सुन्दरी द्वारा अपने पति श्रीपाल के कुष्ठ रोग निवारण के लिए किए गए प्रयासों से हुयी थी। पति को निरोग करने के लिए उन्होंने आठ दिनों तक सिद्धचक्र विधान मंडल और तीर्थंकरो के अभिषेक जल के छीटे देने तक साधना की थी। इसका जैन ग्रथों में भी उल्लेख मिलता है। तभी से आठ दिनों में जैन धर्म का पालन करने वाले, ध्यान और आत्मा की शुद्धि के लिए कठिन तप व व्रत आदि करते हैं। इस समय हर प्रकार की बुरी आदतों और बुरे विचारों से अपने को मुक्त करने का प्रयास किया जाता है। ऐसा भी माना गया है इस दौरान नियम धर्म का पालन करने से जीवन की बड़ी से बड़ी आपदा भी चुटकियों में समाप्त हो जाती है। पद्मपुराण में भी इस पर्व वर्णन करते हुए कहा गया है कि सिद्ध चक्र का अनुसरण करने से कुष्ठ रोगियों को भी रोग से मुक्ति मिल गयी थी।

विधि:-
इस दौरान आठ दिन तक व्रत करके कुछ विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है। जैसे 
  • अष्टमी उपवास में "ॐ ह्रीं नंदीश्वर संज्ञाय नम:" का जाप,
  • नवमी एकासन में "ॐ ह्रीं अष्टमहविभूतिसंज्ञाय नम:" का जाप, 
  • दशमी में जल और पके चावल का आहार के साथ, ॐ ह्रीं त्रिलोकसार संज्ञायनम:" का जाप,
  • एकादशी में अवमौर्द्य और एक समय भूख से कम भोजन के साथ "ॐ ह्रीं चतुर्मुखसंज्ञाय नम:" का जाप,
  • 'द्वादशी में बारह सिद्धि (एकासन) के साथ "ॐ ह्रीं पंचमहालक्षण संज्ञाय नम:" का जाप,
  • त्रयोदशी को पके चावल और इमली के साथ "ॐ हरिम स्वर्गसोपानसंज्ञाय नम: का जाप",
  • चतुर्दशी को जल आैर चावल के साथ "ॐ ह्रीं सिद्ध चक्रायनम:" का जाप और 
  • पूर्णमासी  के उपवास में "ॐ ह्रीं इन्द्रध्वज संज्ञाय नम:" का जाप किया जाता है।
 Disclaimer: The information presented on www.premastrologer.com regarding Festivals, Kathas, Kawach, Aarti, Chalisa, Mantras and more has been gathered through internet sources for general purposes only. We do not assert any ownership rights over them and we do not vouch any responsibility for the accuracy of internet-sourced timelines and data, including names, spellings, and contents or obligations, if any.