Indian Festivals

अशून्य शयन व्रत | Ashunya Shunya Vrat on 22 Jul 2024 (Monday)

चातुर्मास के चारों महीनो के कृष्ण पक्ष की द्वितीय तिथि को अशून्य शयन मनाया जाता है| इस व्रत में भगवान् विष्णु व् माँ लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है| यह व्रत समस्त मनोकामनाओ की पूर्ति करता है| इस व्रत को करने से वैवाहिक जोड़े को सुखद वैवाहिक जीवन का वरदान मिलता है| इस व्रत को विधिवत करने से स्त्री वैध्वय व् पुरुष विधुर होने के पाप से मुक्त होजाता है|इस व्रत को करने से सुखद दाम्पत्य जीवन व्यतीत कर मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है| इस व्रत का अनुष्ठान श्रावण मास के कृष्णपक्ष की द्वितीया से शुरू होकर कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की द्वितीया तक करने का विधान है | चातुर्मास के चार महीनों में शेषनाग की शैयापर श्रीहरि शयन करते हैं | इसीलिए इस व्रत को अशून्य शयन व्रत कहते हैं| जिस प्रकार माँ लक्ष्मी व् विष्णु जी का साथ एकदूसरे के साथ निरंतर अनादि काल से बना हुआ है ठीक उसी प्रकार, पति पत्नी के बीच सात जन्मो का रिश्ता बनाये रखने के लिए यह व्रत किया जाता है| यह व्रत पति का शयन पत्नी के साथ व् पत्नी का शयन पति के साथ बनाये रखने में कारगर होता हैदोनों का ही साथ जीवनपर्यंत बना रहता है|दोनों में कभी वियोग नहीं होता| जिस प्रकार स्त्रियां अपने जीवनसाथी की लंबी उम्र के लिये करवाचौथ का व्रत करती हैं, ठीक उसी तरह पुरूषों को अपने जीवनसाथी की लंबी उम्र के लिये यह व्रत करना चाहिए। क्योंकि जीवन में जितनी जरूरत एक स्त्री को पुरुष की होती है, उतनी ही जरूरत पुरुष को भी स्त्री की होती है।

अशून्य शयन व्रत की विधि:

1.      यह व्रत पति पत्नी दोनों ही एकदूसरे के लिए रखें तो बहुत ही उत्तम होगा अन्यथा पुरुष अपनी धर्मपत्नी के लिए अवश्य ही रखें|

2.      सूर्य उदय के पूर्व उठ स्नान आदि कर खुद को शुद्ध करलें|

3.      एक चौकी पर पीला कपडा बिछाएं और गंगाजल का छींटा भी दें|

4.      अब भगवान् विष्णु व् माँ लक्ष्मी की मूर्ति स्थापना करें|

5.      अब भगवान् का षोडशोपचार पूजन भी करें|

6.      इस दिन व्रती को चाहिए की माता लक्ष्मी एवं श्रीहरि की स्तुति करे |

7.      भगवान्म विष्णु व्न्त्र माँ लक्ष्मी के मंत्रो का जाप भी करें:-

लक्ष्म्या शून्यं वरद यथा ते शयनं सदा।

शय्या ममाप्य शून्यास्तु तथात्र मधुसूदन।।

अन्यथा:

विष्णुदेवाय नम;

महालक्ष्म्ये  नम:

8.      भगवान् को लड्डू, केले, व् नवैद्य का भी भोग लगाएं|

9.      संध्या काल में चंद्र उदय के समय चन्द्रमा को अर्घ्य दें|

10.     उनकी पूजा उपासना करें व् भजन कीर्तन भी करें|

11.     अगले दिन किसी भ्रामण को भोजन करें वस्त्र आदि दान दें|

12.     अपने व्रत का परायण करें|

कथा

एक समय राजा रुक्मांगद ने जन रक्षार्थ वन में भ्रमण करते-करते महर्षि वामदेवजी के आश्रम पर पहुंच महर्षि के चरणों में साष्टांग दंडवत् प्रणाम किया। राजा ने कहा, ‘महात्मन! आपके युगल चरणारविंदों का दर्शन करके मैंने समस्त पुण्य कर्मों का फल प्राप्त कर लिया।वामदेव जी ने राजा का विधिवत सत्कार कर कुशल क्षेम पूछी। तब राजा रुक्मांगद ने कहा- ‘भगवन ! मेरे मन में बहुत दिनों से एक संशय है। मैं उसी के विषय में आपसे पूछता हूं, क्योंकि आप सब संदेहों का निवारण करने वाले ब्राह्मण शिरोमणि हैं।

मुझे किस सत्कर्म के फल से त्रिभुवन सुंदर पत्नी प्राप्त हुई है, जो सदा मुझे अपनी दृष्टि से कामदेव से भी अधिक सुंदर देखती है। परम सुंदरी देवी संध्यावली जहां-जहां पैर रखती हैं, वहां-वहां पृथ्वी छिपी हुई निधि प्रकाशित कर देती है। वह सदा शरद्काल के चंद्रमा की प्रभा के समान सुशोभित होती है। विप्रवर ! बिना आग के भी वह षड्रस भोजन तैयार कर लेती है और यदि थोड़ी भी रसोई बनाती है तो उसमें करोड़ों मनुष्य भोजन कर लेते हैं।

वह पतिव्रता, दानशीला तथा सभी प्राणियों को सुख देने वाली है। उसके गर्भ से जो पुत्र उत्पन्न हुआ है, वह सदा मेरी आज्ञा के पालन में तत्पर रहता है। द्विजश्रेष्ठ ! ऐसा लगता है, इस भूतल पर केवल मैं ही पुत्रवान हूं, जिसका पुत्र पिता का भक्त है और गुणों के संग्रह में पिता से भी बढ़ गया है। वह बड़ा ही वीर, पराक्रमी, साहसी, शत्रु राजाओं को परास्त करने वाला है। उसने सेनापति होकर छः माह तक युद्ध किया और शत्रुपक्ष के सैनिकों को जीतकर सबको अस्त्रहीन कामनाओं को प्राप्त किया।

  • ऋतू के मीठे फलों का भोग लगाएं खट्टे फ  ल व् जिन खाद्य पदार्थ स्त्रीलिंग का हो जैसे इमली, नारंगी आदि का भोग लगाएं|
  • चातुर्मास में भगवान् विष्णु समुद्र में विराजित होने वाले देव हैं| जब सावन में नदियां सरोवर उफान पर होते हैं और जल स्तर बढ़ने से तबाही हो सकती है| भगवान् विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है|
  • इस दिन भगवान् लक्ष्मी नारायण की मूर्ति पर पीपल के पत्तों की माला चढ़ाएं|
Disclaimer: The information presented on www.premastrologer.com regarding Festivals, Kathas, Kawach, Aarti, Chalisa, Mantras and more has been gathered through internet sources for general purposes only. We do not assert any ownership rights over them and we do not vouch any responsibility for the accuracy of internet-sourced timelines and data, including names, spellings, and contents or obligations, if any.