Indian Festivals

आश्विन मॉस को भरलें खुशियों से on 03 Sep 2020 (Thursday)

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है जिसका बहुत ही खास महत्व हैं। इस पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार ये माना जाता है कि पूरे साल में सिर्फ इसी दिन चंद्रमा सोलह कलाओं का होता है और अपने आप में काफी अद्भूत होता है। चंद्रमा की सुदंरता देखते ही बनती है । इसके अलावा इससे निकलने वाली किरणें अमृत के समान मानी जाती है।

आश्विन मास और चंद्रमा की सुंदरता -

शरद ऋतु में मौसम भी काफी अच्छा और एकदम साफ हो जाता है। इस समय में आकाश में न तो बादल दिखाई देते हैं और ना ही धूल के गुबार। ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात्त में चांदनी में बैठना बहुत ही शुभ होता है और इसके अपने फायदे भी होते है।

उत्तर और मध्य भारत में शरद पूर्णिमा बहुत ही धूमधाम से मनाई जाती है और इसमें पूरा परिवार हिस्सा लेते है। इस प्रकार के त्यौहार हमें प्रकृति के समीप ले आते हैं। इस दिन रात को दूध की खीर बनाकर चांद की रोशनी में रख दी जाती है ताकि उसमें चाद की रोशनी की शीतलता ठहर जायें।

शरद पूर्णिमा का महत्व

शरद पूर्णिमा के शुभ दिन से ही स्नान और व्रत शुरु हो जाते हैं। इस दिन माताएँ अपनी संतान की लंबी आयु के लिये ईश्वर से कामाना करती है और पूजा भी करती है । यही नहीं बल्कि इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के बेहद करीब भी आ जाता है। और यह अपने आप में अदभुत होता है। इस विशेष दिन पर भगवान शिव-पार्वती और भगवान कार्तिकेय की पूजा भी भक्त पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ करते है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि चंद्रमा की किरणें जब रखी हुयी खीर में पड़ती हैं तों इससे यह और भी कई गुना गुणकारी और लाभकारी बन जाती है। इसके अलावा वैज्ञानिक भी इसकी महत्ता से सहमत हैं।

आश्विन पूर्णिमा व्रत और पूजा विधि

शरद पूर्णिमा पर मंदिरों में भक्तों की विशेष भीड़ देखी जा सकती है। इस दिन विशेष सेवा-पूजा का आयोजन भी किया जाता है। इस दिन होने वाली व्रत और पूजा की विधि कुछ इस प्रकार है –

सुबह जल्दी उठकर व्रत करने का संकल्प लेना चाहिये। ईश्वर को और पूजा के स्थान की भली भांति सफाई कर उन्हें विशेष सुंदर आभूषण पहनाने चाहिये। पूजा के लिये इन सभी सामग्री को एकत्तित करें जैसे कि

  • गंध,
  • अक्षत,
  • पुष्प,
  • धूप,
  • वस्त्र,
  • दीप,
  • नैवेद्य,
  • तांबूल,
  • आवाहन,
  • आसन,
  • आचमन,
  • सुपारी और
  • दक्षिणा आदि।

चंद्र देव का पूजन -

  • रात्रि के समय गाय के दूध से बनी खीर में घी और चीनी मिलाकर ईश्वर को इसका भोग आधी रात के समय लगाएँ।
  • रात्रि में चांद के आकाश के बीच में स्थित हो उसके बाद ही चंद्र देव का पूजन करें और उन्हें खीर का भोग लगायें।
  • इसके बाद खीर के बर्तन को रात भर चांदनी में रखने के बाद उसे दूसरे दिन प्रसाद के रुप में बांटे।
  • पूर्णिमा का व्रत करके कथा का पाठ करें लेकिन उससे पहले एक लोटे में पानी और गिलास में निम्नलिखित चीजों को होना आवश्यक है जैसे गेहूं, पत्ते के दोने में रोली व चावल इन सभी को रखकर कलश की वंदना करें और दक्षिणा चढ़ाएँ।