अटला टड्डी
अटला टड्डी का पर्व आंध्र प्रदेश में मनाये जाने वाला महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लम्बी उम्र व् स्वस्थ जीवन के लिए व्रत रखती है। इसे आश्विन पूर्णिमा की तीसरी रात को किया जाता है। उत्तर भारत में जिस प्रकार औरतें करवा चौथ का व्रत करतीं हैं ठीक उसी प्रकार आंध्र प्रदेश में महिलाएं अटला टड्डी का व्रत करतीं हैं। कुंवारी कन्याएं भी इस व्रत को विधिवत करतीं हैं अपने मनचाहे पति को पाने की कामना को पूर्ण करने के लिए। अटला टड्डी दो शब्दो से आया है अतलु अर्थात डोसा व् ताड़ी अर्थात तीसरा दिन। वैवाहिक महिलाएं इस व्रत को पति की लम्बी आयु, सुखद दाम्पत्य जीवन पाने के लिए करतीं है और अविवाहित कन्याएं इस व्रत को शीघ्र विवाह व् मनचाहे वर की कामना के लिए करते हैं। कुछ महिलाएं इस व्रत को निर्जल भी करतीं है व् कुछ फलाहार ग्रहण कर के। इस दिन महिलाएं पूरे दिन उपवास कर रात को चंद्र उदय के समय चंद्र दर्शन कर के उन्हें अर्घ्य देकर व् उनकी उपासना कर व्रत का पारण करतीं है।
क्यों किया जाता है यह उपवास?
एक वैज्ञानिक कारण के अनुसार, नौ ग्रहो में से मंगल ग्रह को डोसे बहुत पसंद है। इसीलिए अगर मंगल ग्रह को डोसा नवैद्य के रूप में भोग लगाया जाये तो कुजा दोष ख़तम होता है अथवा पति पत्नी के बीच प्रेम बना रहता है। चावल व् काले चने से यह डोसा बनाया जाता है, क्यूंकि यह चन्द्रमा व् राहु को दर्शाता है। ऐसा भी कहा जाता है पीले चावल कुजा / मंगल दोष का बुरा प्रभाव कम करदेता है।
व्रत विधि:
•इस दिन महिलाएं सूर्य उदय के पूर्व उठ स्नान आदि कर खुद को शुद्ध कर लेती हैं।
•भगवान् के आगे हाथ जोड़ व्रत का संकल्प लें।
•सूर्य उदय के पूर्व व्रती महिलाएं पीले चावल व् दही ग्रहण करतीं हैं।
•सूर्य उदय होने पर स्नान करके भगवान् की पूजा उपासना करें।
•मंदिर जाएं शिवलिंग पर जल अर्पित करें।
•मंदिर में ही महादेव व् माता पार्वती की पूजा उपासना करें।
•इस दिन महिलाएं पूर्ण सोलह श्रृंगार करतीं हैं व् मेहँदी भी लगतीं है।
•पूरा दिन व्रत के नियमो का पालन करें।
•पूरा दिन भगवान् का नाम लेते रहे।
•चंद्र उदय के समय चन्द्रमा को अर्घ्य दें।
•अब देवादि देव महादेव व् माँ गौरी की पूजा उपासना करें।
•अब माँ गौरी को दस डोसे का भोग लगाएं व् इससे बाकी वैवाहिक महिलाओं में वितरण करें।
व्रत कथा:
पौराणिक कथाओं के अनुसार, अटला टड्डी एक ऐसी रस्म है जिसे देवी गौरी ने सभी युवा अविवाहित लड़कियों द्वारा एक उपयुक्त दूल्हे के लिए उनका आशीर्वाद लेने का अभ्यास करने का सुझाव दिया था। प्राचीन समय में, एक बड़े राज्य की एक राजकुमारी ने अटला टड्डी का व्रत रखकर देवी को प्रसन्न करना चाहा, लेकिन प्यास और भूख से बेहोश होकर वह इसे पूरा नहीं कर सकीं। उसकी हालत देखकर, उसके भाइयों ने उसे बचाने का फैसला किया और एक पूर्णिमा के सदृश एक आग के प्रतिबिंब के साथ उसे एक दर्पण दिखाया।
कई साल बाद, जब राजकुमारी बड़ी हो गई और उसके लिए एक उपयुक्त पति की तलाश की जा रही थी, तो किसी भी युवा दूल्हे का पता नहीं लगाया जा सका। आखिर में, उसके भाइयों ने एक बूढ़े व्यक्ति से उसकी शादी तय कर दी। निराशा और गुस्से से भरी, राजकुमारी जंगल में भाग गई और एक बरगद के पेड़ के नीचे रोने लगी। उसकी स्थिति को देखकर, भगवान शिव और देवी पार्वती उसके सामने प्रकट हुए और समझाया कि चूंकि उन्होंने अटला टड्ढी का अनुष्ठान पूरा नहीं किया था, इसलिए वह इस स्थिति में थीं। इस घटना के बाद, राजकुमारी वापस चली गई और त्योहार के अनुष्ठानों को पूरा किया और जल्द ही उसने अपनी पसंद के एक सुंदर, युवक से शादी कर ली।
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