Indian Festivals

भाई दूज तिलक विधि

भाई दूज तिलक विधि 

भाई दूज के पर्व के दिन भाई के माथे पर तिलक कर बहने अपने भाई की हाथों पर पान, सुपारी, सिक्का गोला (सूखा नारियल) रखती है. इसके बाद धीरे-धीरे हाथ पर जल छोड़ते हुए कहती हैं "जैसे गंगा पूजे यमुना को, यमी पूजे यमराज को, सुभद्रा पूजे कृष्ण को गंगा, यमुना नीर बहे मेरे भाई की उम्र बड़े, तत्पश्चात उनका मुँह मीठा कर भाई के पसंद का सात्विक भोजन उन्हें खिलाती हैं| इस दिन संध्याकाल में सभी बहने अपने घर के बाहर यमराज के नाम से चार मुखी दीपक जलाती हैं. मान्यताओं के अनुसार यदि इस वक्त आसमान में चील उड़ता नजर आए तो यह बहुत ही शुभकारी होता है. मान्यताओं के अनुसार यमराज के नाम से दिया जलाते समय यदि आसमान में चील उड़ता नजर आता है तो ऐसा माना जाता है कि यमराज ने आपकी पूजा को स्वीकार कर लिया है

अलग अलग जगहों पर अलग अलग तरीके से मनाया जाता है भाईदूज का पर्व-

भाई दूज का पर्व पूरे देश में बहुत ही धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. वैसे भाई दूज का पर्व अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है. उत्तर भारत में भाई दूज के दिन बहनें अपने भाई को तिलक लगाकर नारियल देती हैं. पूर्व भारत में बहने शंख बजाने के बाद अपने भाई के माथे पर तिलक लगाती हैं और उन्हें उपहार स्वरूप कुछ भेंट देती हैं. मान्यताओं के अनुसार भाई दूज के दिन बहन के घर भोजन करने से भाई की उम्र लंबी होती है. बिहार राज्य में भाई दूज के पर्व के दिन एक अनोखी परंपरा का रिवाज है. बिहार में भाई दूज के दिन सभी बहनें अपने भाइयों को डांटती हैं और उन्हें भला-बुरा कहती हैं. इसके पश्चात उनसे क्षमा मांगती हैं. यह परंपरा भाइयों द्वारा की गई गलतियों की वजह से निभायी जाती है. इस रस्म को निभाने के बाद सभी बहनें अपने भाइयों के माथे पर टीका लगाकर उन्हें मिष्ठान खिलाती हैं

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भाईदूज का पर्व-

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भाई दूज के दिन है भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध किया था और द्वारिका लौटे थे. इसी दिन भगवान कृष्ण की बहन सुभद्रा ने फल, फूल और मिठाई के साथ भगवान श्री कृष्ण का स्वागत सत्कार किया था. सुभद्रा ने अपने भाई श्री कृष्ण के माथे पर तिलक लगाकर उनकी लंबी उम्र की प्रार्थना की थी. इसलिए तभी से भाई दूज के पर्व के दिन सभी बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं.

 

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