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बुध अष्टमी | Budh Ashtami on 15 May 2025 (Thursday)

बुध अष्टमी, महत्व और पूजनविधि

क्या है बुधअष्टमी-

हिंदू धर्म में बताया गया है कि जो भी मनुष्य पूरी श्रद्धा पूर्वक बुध अष्टमी का व्रत करता है उसे मृत्यु के पश्चात नरक नहीं जाना पड़ता है. लोक कथाओं के अनुसार बुध अष्टमी का उपवास करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं.

बुध अष्टमी कामहत्व-

हमारे शास्त्रों में अष्टमी तिथि को बहुत ही महत्वपूर्ण बताया गया है. जिस बुधवार के दिन अष्टमी तिथि पड़ती है उसे बुध अष्टमी कहा जाता है. बुध अष्टमी के दिन सभी लोग विधिवत बुद्धदेव और सूर्य देव की पूजा अर्चना करते हैं. मान्यताओं के अनुसार जिन लोगों की कुंडली में बुध कमजोर होता है उनके लिए बुध अष्टमी का व्रत बहुत ही फलदाई होता है.

बुध अष्टमी पूजनविधि-

 

• बुध अष्टमी का व्रत करने के लिए व्यक्ति को प्रातः काल उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करने के पश्चात् पूजा का संकलप लेना चाहिए.

• अगर आपके घर के आस पास कोई नदी नहीं है तो अपने नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर स्नान करें. ऐसा करने से आपको गंगा स्नान जितना ही पुण्य प्राप्त होगा.

• अब एक कलश में गंगाजल भर कर अपने घर के पूजा कक्ष स्थापित करें.

• बुधाष्टमी के दिन बुध देव की पूजा के साथ बुधाष्टमी की कथा भी अवश्य सुननी चाहिए.

• व्रत का संकल्प लेने के पश्चात् बुध ग्रह की विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए.

• बुधाष्टमी के दिन भगवान् को भोग लगाने के लिए 8 प्रकार के पकवान बनाने चाहिए और इन्हे बांस के पत्तों में रखकर भगवान को भोग लगाना चाहिए.

• इस भोग को फल, फूल, धूप आदि के साथ बुध देव को चढ़ाना चाहिए. पूजा खत्म होने के पश्चात् भगवान् पर चढ़ाये गए भोग को परिवार के सभी लोगों के साथ मिलकर ग्रहण करना चाहिए.

• कई जगहों पर बुध अष्टमी के दिन भगवान शिव और पार्वती की पूजा का भी नियम है.

• बुध अष्टमी के दिन आपके घर को अच्छी तरह से साफ सुथरा करके अपने इष्ट देव की पूजा करनी चाहिए.

• शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान गणेश की भी पूजा की जाती है.

• बुध अष्टमी के दिन भगवान गणेश की पूजा करना भी शुभ माना जाता है.

बुध अष्टमी व्रतके लाभ-

• जो भी मनुष्य पूरे विधि विधान से बुध अष्टमी का व्रत करता है उसके सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं.

• बुध अष्टमी का व्रत करने से धन-धान्य पुत्र और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.

• बुध अष्टमी का व्रत करने से मनुष्य धरती पर सभी सुखों को भोग कर मृत्यु के पश्चात स्वर्ग को प्राप्त होता है.

बुधाष्टमी के दिनकरें इनमंत्रो काजाप- 

बुद्ध अष्टमी के बुध देव की पूजा करते वक़्त नीचे दिए गए मत्रों का उच्चारण करना चाहिए:

ऊं बुधाय नमः,  ऊं सोमामात्मजायनमः

ऊं दुर्बुद्धिनाशनाय,  ऊं सुबुद्धिप्रदायनमः

ऊं ताराजाताय,ऊं सोम्यग्रहाय नमः

ऊं सर्वसौख्याप्रदाय नम:।

बुद्ध दोष दूरकरने केलिए बुद्धअष्टमी केदिन करेंये उपाय-

अगर आपकी कुंडली में बुध दोष है और आप अपनी कुंडली से बुद्ध दोष को दूर करना चाहते हैं तो ,बुद्ध अष्टमी के दिन ये छोटे-छोटे उपाय करके इस दोष से छुटकारा पा सकते हैं.

• भगवान् गणेश को मोदक बहुत प्रिय है, अगर आप बुद्ध दोष से छुटकारा पाना चाहते हैं तो बुद्ध अष्टमी के दिन भगवान् गणेश को मोदक का प्रसाद चढ़ाये.

• अपनी कुंडली से बुध दोष के प्रभाव को दूर करने के लिए बुद्ध अष्टमी के दिन अपने हाथ की सबसे छोटी उंगली में पन्न रत्न धारण करें. पन्ना रत्न धारण करने से पहले किसी ज्योतिषी से सलाह जरूर लें.

• बुधवार के दिन गाय को हरी घास खिलाने से भी भगवान् गणेश प्रसन्न होते हैं और बुध दोष का असर कम होता है.

• कुंडली से बुद्ध दोष को दूर करने के लिए बुद्ध अष्टमी के दिन भगवान् गणेश को सिंदुर अर्पित करें.

• बुद्ध अष्टमी के दिन स्नान करने के पश्चात् किसी मंदिर में जाकर गणेश जी को दूर्वा चढ़ाएं. अगर आप भगवान गणेश को दूर्वा की 11 या 21 गांठ चढ़ाते है तो इससे आपको बहुत जल्द फल प्राप्त होगा.

बुधाष्टमी व्रत कथा-

 मिथिला नाम की एक नगरी में निमि नाम का एक राजा रहते थे । वह एक लड़ाई में मारे गये।   उनकी पत्नी जिनका नाम उर्मिला था अपने पति के बिना राज्य से निराश्रित हो इधर उधर भटकने लगी , तब अपने दो बच्चो को लेकर वह अवन्ति देश चली गई और वहाँ एक ब्राह्मण के घर में में गेहू पीसने का काम करती थी और  गेहु पिसते समय वह थोड़े से गेहु चुराकर रख लेती और उसे से अपने भूखे बच्चो का पालन करती थी ।  कुछ समय बाद उर्मिला का निधन हो गया पर उसके बच्चे बड़े हो चुके थे।  उसका पुत्र बड़ा होकर, मिथिला आया और पिता के राज्य को वापिस प्राप्त कर शासन करने लगा।   उसकी बहन श्यामला भी विवाह योग्य हो गई थी।   वह अत्यंत रूपवती थी व उसका विवाह अवन्ति देश के राजा धर्मराज से हो गया।  

 



एक दिन धर्मराज ने अपनी पत्नी से  श्यामला से कहा – " हे प्रिये ! तुम सभी काम करना , परन्तु ये सात स्थानों जिनमे तालें बंद हैं , इनमे तुम कभी मत जाना. " श्यामला ने ‘ बहुत अच्छा ‘ कह कर पति की बात मान ली , उसके मन में उत्सुकता बनी रहे।   
एक दिन जब धर्मराज अपने किसी कार्य में व्यस्त थे , तब श्यामला ने एक मकान का ताला खोलकर वहां देखा कि उसकी माता उर्मिला को अति भयंकर यमदूत बांध कर तप्त तेल के कडाह में बार – बार डाल रहे हैं. लज्जित होकर श्यामला ने वह कमरा बंध कर दिया , फिर दुसरा कमरा खोला तो देखा कि वहाँ भी उसकी माता को यमदूत शिला के ऊपर रखकर पिस रहें हैं और माता चिल्ला रही हैं इसी प्रकार तीसरा कमरा खोला देखा की यमदूत उसकी माता के मस्तक में किले ठोक रहे हैं ,इसी तरह चौथे में अति भयंकर श्रवान उसका भक्षण कर रहें हैं , पांचवे में लोहे के स्न्दंश उसे पीड़ित कर रहे हैं. छठे में कोल्हू के बिच ईख के समान पेरी जा रही हैं और सातवे को खोलकर देखा तो वहाँ भी उसकी माता को हजारो कृमि भक्षण कर रहे हैं और वह रुधिर आदि से लथपथ हो रही हैं.


यह देख कर श्यामला ने विचार किया कि मेरी माता ने ऐसा कौन – सा पाप किया , जिससे वह इस दुर्गति को प्राप्त हुई. वह सोचकर उसने सारा वृतांत अपने पति धर्मराज को बताया.
धर्मराज बोले – प्रिये ! मैंने इसलिए कहा था की ये सात ताले कभी न खोलना , नही तो तुम्हे वहां पश्चाताप होगा. तुम्हारी माता ने सन्तान के स्नेह से ब्राह्मण के खेत से गेहु चुराये थे , क्या तुम इस बात को नही जानती जों तुम इस बात को मुझसे पूछ रही हो ? यह सब उसी कर्म का फल हैं. ब्राह्मण का धन स्नेह से भी भक्षण करे तो भो सात कुल अधोगति को प्राप्त होते हैं और चुराकर खाए तो जब तक सूर्य और चन्द्रमा और तारें हैं , तबतक नरक से उद्धार नही होता. जों गेहु इसने चुराये थे , वे ही कृमि बनकर इसका भक्षण कर रहे हैं.


श्यामला ने कहा – महाराज ! मेरी माता ने जों कुछ भी पहले किया वह सब मैं जानती हूँ फिर भी अब आप कोई ऐसा उपाय बतलाये , जिससे मेरी माता का नरक से उद्दार हो जाय. इस पर धर्मराज ने कुछ समय विचार किया और कहने लगे — प्रिये ! आज से सात जन्म पूर्व ब्राह्मणी थी. उस समय तुमने अपनी सखियों के साथ जों बुधाष्टमी का व्रत किया था , यदि उसका फल तुम संकल्प पूर्वक अपनी माता को दे दो तो इस संकट से उसके मुक्ति हो जायेगी. यह सुनते ही श्यामला सी स्नानकर अपने व्रत का पुण्य फल संकल्प पूर्वक माता के लिए दान कर दिया. व्रत के फल के प्रभाव से उसकी माता भी उसी क्षण दिव्य देह धारण कर विमान में बैठकर अपने पति सहित स्वर्ग लोक की चली गई और बुध ग्रह के समीप हो गई.यह व्रत अपनी सन्तान को अपनी माता के लिए रखना चाहिये. इस व्रत को रखने से धन , धान्य , पुत्र , पौत्र , दीर्घ आयु और एश्वर्य मिलता हैं.

 

बुधअष्टमी की दूसरी कथा

भविष्यपुराण की एक कथा के अनुसार इल नाम के राजा रहा करते थे। एक बार वह हिरण का पीछा करते हुए, उस वन में जा पहुंचे जहां भगवान शिव और पार्वती जी भ्रमण कर रहे थे। उस समय शिव जी का आदेश था कि वन में पुरुष प्रवेश करते ही स्त्री में बदल जाए।

इसलिए जैसे ही राजा इल ने वन में प्रवेश किया वह स्त्री बन गए। इल के उत्तम स्वरूप को देख बुध देव उन पर मोहित हो गए तथा उनसे विवाह कर लिया। जिस दिन इल और बुध का विवाह हुआ उस दिन अष्टमी तिथि थी, तभी से बुधाष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा।

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