हिंदू धर्म में दो बार नवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। पहला शारदीय नवरात्रि और दूसरा चैत्र नवरात्रि… चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवरात्रि का त्योहार शुरू होता है और रामनवमी तक मां दुर्गा की पूजा उपासना की जाती है। चैत्र नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा के साथ-साथ कन्या पूजन का भी बहुत महत्व होता है। चैत्र नवरात्रि में भक्तगण प्रतिपदा के दिन मां दुर्गा की स्थापना और जौ बोने की विधि करते हैं। इसके अलावा नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का भी नियम है। चैत्र नवरात्रि में 9 दिन पूजा पाठ करने के साथ-साथ हवन और ब्राह्मण भोजन भी कराया जाता है।
चैत्र नवरात्री पूजन विधि:-
1- चैत्र नवरात्रि के पहले दिन घट स्थापना की जाती है. इसके बाद 9 दिनों तक लगातार देवी के नौ रूपों की खास पूजा और आराधना की जाती है.
2- नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करने के बाद नवरात्र पर सभी दिव्य शक्तियों का आवाहन किया जाता है, और उन्हें सक्रिय किया जाता है.
3- कलश स्थापना करने के लिए एक लकड़ी के पटरे पर नया लाल कपड़ा बिछाकर इसके ऊपर ताम्बे या पीतल का कलश रखें. अब कलश के ऊपर मौली बांधकर नारियल रखें. अब रोली से कलश पर स्वास्तिक का निर्माण करें. कलश में शुद्ध जल भरे.
4- अब चंदन, फूल, दूर्वा, अक्षत, सुपारी और सिक्के को कलश में रखें.
कथा:-
हमारे शास्त्रों में बताया गया है कि पुराने समय में एक सुरथ नाम का राजा था। जिसका राज्य बहुत ही विशाल और संपन्न था। परंतु धीरे-धीरे लोगों ने उसके सीधे पन का फायदा उठाकर उनके राज्य पर हमला कर दिया। राजा के कुछ खास लोग शत्रुओं से मिल गए। जिसकी वजह से राजा युद्ध में हार गए और वह बहुत ही दुखी होकर वन में तपस्या करने चले गए। वन में सुरथ राजा को समाधि नामक वैश्य मिला। जो अपने परिवार वालों से दुखी और अपमानित होकर जंगल में रहने आ गया था। समाधी नामक वैश्य ने राजा सुरथ को बताया कि जिन लोगों ने उसे अपमानित करके घर से निकाल दिया है वह आज भी उनके मोह में फंसा हुआ है। राजा सुरथ भी अपने राज्य के मोह से बाहर नहीं आ पा रहे थे। तब वह दोनों मेधा मुनि के आश्रम गए।
आश्रम जाकर वैश्य और राजा ने मेधा मुनि से अपने मन की बात कही। राजा ने कहा कि हम दोनों को हमारे परिवार जनों ने अपमानित करके घर से निकाल दिया है। फिर भी हम उन्हीं के प्रति मोह में पड़े हुए हैं। तब मेधा मुनि ने बताया कि मनुष्य का मन शक्ति के अधीन होता है। मेधा मुनि ने कहा कि मां दुर्गा के दो रूप होते हैं। विद्या और अविद्या…।। विद्या ज्ञान का स्वरूप होती है और अविद्या मनुष्य के अंदर अज्ञान पैदा करती है। अविद्या किसी भी मनुष्य के अंदर मोह का निर्माण करती है, पर जो लोग मां दुर्गा को संसार का आधार मानकर उनकी पूजा उपासना करते हैं उन्हें जीवन से मुक्ति मिलती है और मोक्ष प्राप्त होता है। तब राजा सुरथ ने मेधा मुनि से पूछा कि यह देवी कौन है और उनका प्राकट्य धरती पर कैसे हुआ। तब मेधा मुनि ने कहा कि आप जिस देवी के बारे में पूछ रहे हैं वह देवी नित्यस्वरूप और विश्वव्यापी है।
मधु कैटभ वध –
• महा प्रलय के दौरान जब भगवान विष्णु क्षीर सागर में अपनी अनंत शैया पर लेट कर निद्रा में विलीन थे। तभी उनके दोनों कानों के मैल से मधु और कैटभ नामक असुर का जन्म हुआ।
• मधु और कैटभ विष्णु जी की नाभि में मौजूद कमल पर विराजमान ब्रह्मा जी को मारने जा रहे थे।
• मधु और कैटभ का आक्रामक रूप को देखकर ब्रह्माजी ने विष्णु भगवान को जगाने का प्रयत्न किया, पर उनके लाख प्रयत्नों के बाद भी विष्णु भगवान नींद से नहीं जागे।
• तब ब्रह्मा जी ने विष्णु भगवान को जगाने के लिए उनके नेत्रों में रहने वाली योग निद्रा देवी का ध्यान किया। तब महादेवी योगनिद्रा भगवान विष्णु के आंख, नाक, मुख और हृदय से निकलकर ब्रह्मा जी के सामने प्रकट हुई।
• योग निद्रा के बाहर आते ही भगवान विष्णु ने निद्रा त्याग दी। भगवान विष्णु ने मधु और कैटभ को देखा और उनके साथ 5000 वर्षों तक युद्ध किया।
• भगवान विष्णु की वीरता से प्रसन्न होकर राक्षसों ने भगवान विष्णु से वरदान मांगने को कहा।
• भगवान विष्णु ने कहा कि यदि तुम मुझसे प्रसन्न हो तो मुझे यह वरदान दो कि तुम दोनों मेरे हाथों मारे जाओ।
• तब राक्षस चारों और देख कर बोले की ठीक है पर तुम हमें वही मारना जहां पर जल ना हो। उस समय पृथ्वी पर चारों तरफ जल ही जल विराजमान था।
• असुरों की बात सुनकर भगवान विष्णु ने मधु और कैटभ को अपनी जंघाओं पर लिटा कर उनका अंत किया।
महिषासुर वध :-
• मेधा मुनि बोले जिस प्रकार ब्रह्मा जी की प्रार्थना करने से योग माया देवी प्रकट हुई थी। उसी प्रकार जब देवताओं के स्वामी इंद्र और असुरों के स्वामी महिषासुर में युद्ध हुआ तो उस युद्ध में स्वर्ग के स्वामी इंद्र की पराजय हुई।
• देवताओं और असुरों का युद्ध 100 वर्षों तक लगातार हुआ। इसके पश्चात असुरों का अत्याचार बढ़ता जा रहा था। तब इंद्र और अन्य देवता भगवान विष्णु, ब्रह्मा और शिव की शरण में गए।
• जब देवताओं ने त्रिदेव को असुरों के अत्याचारों के बारे में बताया तो ब्रह्मा विष्णु और महेश क्रोधित हुए और उनके शरीर से एक विशाल ज्योतिपुंज निकला। जिससे सभी दिशाएं प्रकाशमान हो गए।
• अंत में ब्रह्मा विष्णु महेश के शरीर से निकला ज्योतिपुंज एक विशाल देवी के रूप में बदल गया। सभी देवताओं ने देवी की स्तुति करके उन्हें शक्ति, आभूषण प्रदान किए।
• देवी की आवाज इतनी तेज थी कि उससे चारों दिशाएं गूंज उठी। महिषासुर देवी की गर्जना सुनकर उनकी तरफ आक्रमण करने दौड़ा।
• देवी की चमक से तीनों लोग प्रकाशित हो रहे थे। महिषासुर ने अपनी पूरी शक्ति के साथ देवी के साथ युद्ध किया। परंतु अंत में देवी ने महिषासुर का वध कर दिया।
• भविष्य में यही देवी शुंभ और निशुंभ नामक राक्षसों का संघार करने के लिए गौरी देवी के शरीर से प्रकट हुई। इसी तरह सारे असुरों का अंत हुआ और पूरे संसार में मां शक्ति के की वजह से शांति व्याप्त हो गई और सभी देवता हर्ष और उल्लास के साथ देवी की महिमा का गुणगान करने लगे।
मेधा मुनि ने राजा और वैश्य दोनों से मां दुर्गा की तपस्या करने के लिए कहा। तब दोनों ने मां दुर्गा की तपस्या की और मां दुर्गा ने प्रकट होकर दोनों को मनचाहा वरदान दिया। मां दुर्गा के वरदान के कारण वैश्य को ज्ञान प्राप्त हुआ और वह सांसारिक मोह से मुक्त हो गए, और राजा ने अपना खोया हुआ राज्य पाठ वैभव दोबारा प्राप्त कर लिए।