महत्व :-
हिंदू धर्म में सूर्य पंचांग के अनुसार धनु संक्रांति के दिन से ही हिन्दु पंचांग के नौवें महीने का आरंभ हो जाता है। धनु संक्रांति के दिन सूर्य देव की आराधना का बहुत महत्व है। हिन्दू पंचांग के अनुसार माना जाता है की पौष माह की धनु संक्रांति से पौष संक्रांति का आरम्भ हो जाता है। इस माह की संक्रांति के दिन गंगा यमुना स्नान का महतवा मन जाता है। इस दिन पवित्र नदियों के जल में स्नान करने से मनुष्यों के द्वारा किये गये बुरे कर्म या पापों से मुक्ति मिलती है। पौष संक्रांति के दिन श्रद्धालु नदी किनारे जाकर सूर्य को अधर्य देते है। इस दिन सूर्यदेव की पूजा करना बहुत शुभ माना जाता है। माना जाता है की इस विधि को करने से स्वयं के मन की शुद्धि होती है। बुद्धि और विवेक की प्राप्ति के लिए भी इस दिन सूर्य पूजन किया जाता है। इस दिन सूर्य किसी विशेष राशि में प्रवेश करता है, इसी कारन से इसे संक्रांति के नाम से जाना जाता है।
कब और क्यों मनाई जाती है:-
धनु संक्रांति पारंपरिक हिंदू त्योहार है और यह एक शुभ दिन है जब सूर्य धनु राशी में प्रवेश करता है। जिस भी महीने में ऐसा होता है उस महीने को "शुभमाह” या "धनुमाह” भी कहा जाता है। वर्ष की आखिरी संक्रांति पर सूर्य ग्रह वृश्चिक राशि से निकलकर अपने मित्र ग्रह गुरु की राशि धनु में पहुंच जाते है। यह विशिष्ट अवधि मकर संक्रांति दिवस पर समाप्त होती है यह त्योहार धनुर मास की शुरुआत भी करता है। धनु संक्रांति उड़ीसा में बहुत महत्व है और इस दिन भगवान जगन्नाथ की पूजा की जाती है व मुआन, भगवान जगन्नाथ को विशेष मिठाई दी जाती है। इसीलिए हम आपको धनु संक्रांति के बारे में जानकारी देते है की इस संक्रांति का क्या महत्व है व किस तरह से पूजा करनी चाहिए |
मान्यताए:-
इस दिन के लिए मान्यता है की इस दिन को पवित्रा माना जाता है। इस दिन जो लोग विधि के साथ पूजन करते है उनके सभी संकट दूर होते है और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। इस काल में सभी शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं। इस महीने में शुद्ध सात्विक भोजन करना और पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करने के साथ दान, हवन आदि विशेष फलदायी होता है। शास्त्रों में कहा जाता है कि सूर्य के संक्रमण काल में जो मनुष्य स्नान नहीं करता है वह सात जन्मों तक रोगी, निर्धन तथा दुख भोगता है।
विधि:-
- इस दिन, सूर्य भगवान की पूजा की है।
- भक्त पवित्र गंगा, यमुना, गोदावरी, यमुना जैसे नदियों में डुबकी लेते हैं क्योंकि यह बहुत शुभ अनुष्ठान माना जाता है।
- धनु संक्रांति के दिन भगवन सत्यनारायण की कथा का पाठ किया जाता है।
- भगवन विष्णु की पूजा में केले के पत्ते, फल, सुपारी, पंचामृत, तुलसी, मेवे आदि का भोग तैयार किया जाता है।
- सत्यनारायण की कथा के बाद देवी लक्ष्मी, महादेव और भ्रममा जी की आरती की जाती है और चरणामृत का प्रसाद दिया जाता है।
- इस दिन भगवान जगन्नाथ की भी पूजा करनी चाहिए।
- भगवान जगन्नाथ को विशेष भोग "मीठाभात” चढ़ाना चाहिए और बाद में सभी भगतों को प्रसाद के रूप में बाँटना चाहिए।
कथा:-
संस्कृत में गधे को खर कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों में खरमास की कथा के अनुसार भगवान सूर्यदेव सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर लगातार ब्रह्मांड की परिक्रमा करते रहते हैं। उन्हें कहीं पर भी रूकने की इजाजत नहीं है। मान्यता के अनुसार उनके रूकते ही जन-जीवन भी ठहर जाएगा। लेकिन जो घोड़े उनके रथ में जुड़े होते हैं वे लगातार चलने और विश्राम न मिलने के कारण भूख-प्यास से बहुत थक जाते हैं।
उनकी इस दयनीय दशा को देखकर सूर्यदेव का मन भी द्रवित हो गया। वे उन्हें एक तालाब के किनारे ले गए, लेकिन उन्हें तभी यह ध्यान आया कि अगर रथ रूका तो अनर्थ हो जाएगा। लेकिन घोड़ों का सौभाग्य कहिए कि तालाब के किनारे दो खर मौजूद थे। भगवान सूर्यदेव घोड़ों को पानी पीने और विश्राम देने के लिए छोड़े देते हैं और खर अर्थात गधों को अपने रथ में जोत देते हैं।
अब घोड़ा-घोड़ा होता है और गधा-गधा, रथ की गति धीमी हो जाती है फिर भी जैसे-तैसे एक मास का चक्र पूरा होता है तब तक घोड़ों को विश्राम भी मिल चुका होता है, इस तरह यह क्रम चलता रहता है और हर सौर वर्ष में एक सौर खर मास कहलाता है।
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