दूर्वा अष्टमी एक विशेष तरह का त्यौहार है जो कि दूर्वा घास को समर्पित होता है। दूर्वा घास को हिन्दु धर्म में केवल घास नहीं माना जाता है बल्कि इसका एक विशेष महत्व है। दूर्वा घास को सभी तरह के हिन्दु अनुष्ठानों में प्रयोग किया जाता है। इसका प्रयोग बहुत ही शुद्ध माना जाता है।
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क्या है दूर्वा अष्टमी
दूर्वा अष्टमी को शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है और इसीलिये दूर्वा अष्टमी भी कहा जाता है। यह शुभ दिन अगस्त और सितंबर के बीच पड़ता है। दूर्वा अष्टमी को एक ऐसे त्यौहार के रुप में माना जाता है जो सुख और स्मृद्धि लाता है। यह विशेष त्यौहार पूरी सच्चाई व सौहाद्र के साथ बड़े स्तर मनाया जाता है।
किस प्रकार के अनुष्ठान किये जाते है दूर्वा अष्टमी के दिन –
आइये जानते है कि किस प्रकार के अनुष्ठान करना दूर्वा अष्टमी के दिन आवश्यक माने जाते हैं -
क्या है दूर्वा घास का महत्तव-
दूर्वा घास अपने आप में एक खास महत्तव रखती है। दूर्वा घास को पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। इसकी पूजा पूरी श्रद्धा के साथ की जाती है। हिन्दु धर्म में काफी सारी पूजा बिना दूर्वा घास के अधूरी मानी जाती है। इसके अलावा यह त्यौहार हमें प्रकृति को सहेजने की ओर भी ले जाता है।
पुरानी कहानियों के अनुसार भगवान विष्णु सिर से कुछ बाल गिर गये थे और इन्हें दूर्वा घास माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान इस पर अमृत की कुछ बुंदे गिर गयी थी और इसी कारण इसे काफी शुद्ध माना जाता है। ऐसा माना जाता भक्तों की सभी मुरादें पूरी हो जाती है जब कोई भी दूर्वा घास की पूजा करता है। दूर्वा घास का महत्व कृष्ण जी द्वारा युधिष्ठर को भी बताया गया है।
दूर्वा घास को घर में भी बहुत ही आसानी से लगाया जा सकता है। इसे उगाने के लिये विशेष मेहनत की आवश्यकता नहीं पड़ती है। सबसे बड़ी बात यह है कि दूर्वा घास को घर में लगाने से शुद्धता और पवित्रता का आगमन होता है।
दूर्वा अष्टमी और पर्यावरण से संबंध -
दूर्वा अष्टमी कहीं ना कहीं हमें पर्यावरण को सहेजने का भी संदेश देती है। यह हमें बताती है कि प्रकृति से जुड़ी हरेक चीज बहुत मह्त्वपूर्ण है। पेड़-पौधे लगाना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि इनके बिना जीवन की कल्पना करना असंभव है।