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जानिए एकादशी तिथि पर क्यों वर्जित है चावल खाना

जानिए एकादशी तिथि पर क्यों वर्जित है चावल खाना

• शास्त्रों में बताया गया है की एक बार महर्षि मेधा ने माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए अपने शरीर का त्याग कर
दिया था और उनका अंश पृथ्वी के अंदर समा गया था.
• फिर उसी जगह से चावल और जौ के रूप में महर्षि मेधा की उत्पत्ति हुई.
• इसलिए हमारे शास्त्रों में चावल और जौ को जीव माना गया है.
• जिस तिथि को महर्षि मेधा का अंश पृथ्वी के अंदर समाया था उस दिन एकादशी तिथि थी, इसलिए चावल और जौ
को जीव स्वरूप मानते हुए एकादशी तिथि के दिन भोजन के रूप में ग्रहण नहीं किया जाता है,
• जिससे सम्पूर्ण सात्विक रूप से भगवान् विष्णु को प्रिय एकादशी का व्रत पूरा हो सके.
अगर उपवास करना न संभव हो तो...
• अगर आप किसी कारणवश एकादशी का वपवस नहीं कर सकते हैं तो भगवान् विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा
पाने के लिए एकादशी तिथि के दिन अपने खान-पान और व्यवहार में सात्विकता का पालन करें.
• एकादशी के लहसुन, प्याज, मांस, मछली, अंडे का सेवन ना करें.
• एकादशी तिथि को कभी भी किसी से झूठ या अप्रिय वचन न बोलें और पूरा दिन भगवान् विष्णु का ध्यान करें.
पापमोचनी एकादशी पूजन विधि-
• पापमोचनी एकादशी के दिन प्रातःकाल में स्नान करने के पश्चात् स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
• अब अपने घर के पूजा कक्ष में पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएँ.
• अब अपने सामने एक लकड़ी की चौकी रखे और इसके ऊपर थोड़ा सा गंगाजल छिड़क कर इसे शुद्ध कर ले.
• अब इस चौकी पर पीले रंग का कपडा बिछाएं. अब इसके ऊपर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें और व्रत करने का संकल्प लें.

• जो भी व्यक्ति पापमोचनी एकादशी का व्रत करता है उसे दिन भर अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए, अगर आप पूरा दिन व्रत करने में सक्षम नहीं हैं तो आप एक समय फलाहार कर सकते हैं.
• अब विधि विधान से भगवान विष्णु की करें.
• आप इस पूजा को किसी ब्राह्मण के द्वारा भी करवा सकते है.
• सबसे पहले भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं. पंचामृत से स्नान करवाने के पश्चात् चरणामृत ग्रहण करें.
• अब भगवान् विष्णु के मन्त्र का 108 बार जाप करें.

ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः

• अब भगवान विष्णु को फूल, धूप, नैवेद्य आदि अर्पित करें.
• अब भगवान् के सम्मुख गाय के घी का दीपक जलाएं.
• अब विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें और पापमोचनी एकादशी के व्रत की कथा सुनें.
• अगले दिन अर्थात द्वादशी तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें.
पापमोचनी एकादशी पर करें ये शुभ काम
• अपने जीवन के सभी कष्टों को दूर करने के लिए और अपने द्वारा किये गए पाप कर्मो से मुक्ति पाने के लिए इस
दिन किसी मंदिर में जाकर ध्वज यानी झंडे का दान करें.
• पापमोचनी एकादशी के दिन भगवान् शिव के सामने घी का दीपक जलाएं और भगवान् श्रीराम के नाम का जाप
108 बार करें.
• इस दिन शिवलिंग पर जल अर्पित करें और काले तिल चढ़ाएं.
• पापमोचनी एकादशी के दिन सूर्यास्त के पश्चात् हनुमानजी के समक्ष घी का दीपक जलाएं और 108 बार सीताराम
का जाप करें.

• पापमोचनी एकादशी तिथि पर सुबह तुलसी को जल अर्पित करें और संध्याकाळ में तुलसी के पास दीपक जलाएं.

• इस दिन भगवान् विष्णुजी साथ ही माता महालक्ष्मी का भी पूजन करें.

• पापमोचनी एकादशी के दिन भगवन विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा में गोमती चक्र, पीली कौड़ी, दक्षिणावर्ती शंख अवश्य रखें.

पापमोचनी एकादशी व्रत की कथा

बहुत समय पहले मांधाता नाम के एक पराक्रमी राजा थे। राजा मांधाता ने एक बार लोमश ऋषि से पूछा कि मनुष्य जो जाने-अनजाने में पाप करता है, उससे कैसे मुक्त हो सकता है? तब लोमश ऋषि ने राजा को एक कहानी सुनाई कि चैत्ररथ नामक सुन्दर वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या में लीन थे। इस वन में एक दिन मंजुघोषा नामक अप्सरा की नजर ऋषि पर पड़ी, तो वह उन पर मोहित हो गई और उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करने लगी। कामदेव भी उस समय उधर से गुजर रहे थ। तभी उनकी नजऱ अप्सरा पर गई और उसके मनोभाव को समझते हुए उसकी सहायता करने लगे। अप्सरा अपने प्रयास में सफल हुई और ऋषि की तपस्या भंग हो गई। ऋषि शिव की तपस्या का व्रत भूल गए और अप्सरा के साथ रमण करने लगे। कई वर्षों के बाद जब उनकी चेतना जागी तो उन्हें आभास हुआ कि वह शिव की तपस्या से विरक्त हो चुके हैं। उन्हें तब उस अप्सरा पर बहुत क्रोध आया और तपस्या भंग करने का दोषी जानकर ऋषि ने अप्सरा को श्राप दे दिया कि तुम पिशाचिनी बन जाओ। श्राप से दु:खी होकर वह ऋषि के पैरों पर गिर पड़ी और श्राप से मुक्ति के लिए प्रार्थना करने लगी। ऋषि ने तब उस अप्सरा को विधि सहित चैत्र कृष्ण एकादशी (पापमोचिनी एकादशी) का व्रत करने के लिए कहा। भोग में डूबे रहने के कारण ऋषि का तेज भी लोप हो गया था। ऋषि ने भी एकादशी का व्रत किया, जिससे उनका पाप भी नष्ट हो गया। उधर अप्सरा भी इस व्रत के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हो गई और उसे सुन्दर रूप प्राप्त हुआ तब वह पुन: स्वर्ग चली गई।

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