गंगा सागर स्नान
गंगासागर बंगाल की खाड़ी में स्थित एक बहुत ही प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है । यहा कोलकाता से तकरीबन 100 कि.मी. दूर है और न केवल अपनी सुंदरता बल्कि अपनी धार्मिक महत्ता के लिये भी जाना जाता है। यहां पर कपिल मुनि जी का एक विशेष मंदिर है।
क्या है गंगा सागर स्नान -
गंगा सागर स्नान को 'गंगा सागर मेला' या 'गंगा सागर यात्रा' के नाम से पूरे भारत में विशेष रुप से जाना जाता है। 'मकर संक्रांति' के शुभ समय के दौरान हिंदू तीर्थयात्री गंगा स्नान को बहुत ही पवित्र मानते हैं। गंगा सागर स्नान के लिये भक्त देश के कोने-कोने से यहां आत हैं और इसीलिये यहां बड़े मेले को आयोजन भी किया जाता है। गंगा सागर मेला संक्राति से कुछ दिन पहले शुरु होता है और संक्राति के बाद खत्म हो जाता है।
क्या करे –
●इस दिन सुबह जल्दी उठकर भक्त सूर्योदय के समय पवित्र डुबकी लगाते है।
●उसके बाद उगते हुये सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
●सूर्य देवता से स्वच्छ मन से प्रार्थना की जाती है।
●पवित्र डुबकी लगाते हुए भक्त मां गंगा के प्रति आभार व्यक्त करते हुये उनसे सदैव उन पर कृपा बनाये रखने का आशीर्वाद मांगते हैं।
●इस दिन पौराणिक कपिल मुनि की पूजा अर्चना करने के लिए सभी भक्त पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ लगभग 3 बजे एकत्रित होते हैं। पूरी श्रदधा के साथ कपिल पूजा की जाती है और उसके बाद, यज्ञ और महा पूजा का भी बहुत अधिक महत्व है।
गंगा सागर स्नान का महत्व -
गंगा सागर स्नान हिंदू धर्म में एक विशेष महत्व रखती है। यह विशेष दिन देवी गंगा और सूर्य देव जी की पूजा के लिय़े बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त मकर संक्रांति के दिन गंगा सागर स्नान करना भी बहुत ही अधिक फलदायी माना जाता है। इस दिन भगवान सुर्य की पूजा करने का विशेष महत्तव है। इस शुभ दिन पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है और यह अच्छे समय की ओर इशारा करता है।
अंत में –
हिंदू किंवदंतियों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि पवित्र गंगा सागर स्नान करने से आपको सभी पापों और दुखों से मुक्ति मिल जाती है।
भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं कपिल मुनि
भागवत पुराण में वर्णन है कि कपिल मुनि भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। कपिल मुनि की माता का नाम देवहूति व पिता का नाम कर्दम ऋषि था। देवहूति को ब्रह्म जी की पुत्री बताया जाता है। कपिल मुनि ने अपनी मां देवहूति को बाल्यावस्था में सांख्य-शास्त्र का ज्ञान दिया था। उनकी मां मनु व शतरूपा की पुत्री भी कहा जाता है। शास्त्र ग्रंथ बताते हैं कि जब प्रजापति ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की तो उन्होंने अपने शरीर के आधे हिस्से से नारी का निर्माण किया। इन्हें मनु तथा शतरूपा कहा गया। देवहूति के पति थे ऋषि कर्दम। कपिल मुनि अपने माता-पिता की दसवीं संतान थे। उनसे पहले उनकी नौ बहनें थीं। कपिल मुनि महाराज ने जब सांख्य शास्त्र की रचना की थी तब बाल्यावस्था में ही कपिल मुनि महाराज ने अपनी माता को सृष्टि व प्रकृति के चौबीस तत्वों का ज्ञान प्रदान किया था। कहते हैं कि सांख्य दर्शन के माध्यम से जो तत्व ज्ञान मुनि महाराज ने अपनी माता देवहूति के सामने रखा था वही श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता के उपदेश के रूप में सुनाया था। कपिल मुनि का श्रीमद्भगवत गीता में वर्णन इस प्रकार से है-
अक्षत्थ: अश्रृत्थ: सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारद:। गन्धर्वाणां चित्ररथ: सिद्धानां कपिलो मुनि:॥
अर्थात् भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को बता रहे हैं कि हे अर्जुन जितने भी वृक्ष हैं उनमें सबसे उत्तम वृक्ष पीपल का है और वो मैं हूं, देवों में नारद मैं हूं, सिद्धों में कपिल मैं हूं, ये मेरे ही अवतार हैं। मुनि महाराज ने माता को बताया था कि मनुष्य का शरीर देवताओं की भांति ही होता है।