महत्व:-
गोपाष्टमी के दिन गायों की पूजा की जाती है। कुछ लोग गऊशाला में जाकर गायों की विधिवत पूजा- अर्चना करते हैं।इसके लिए पहले गायों का तिलक किया जाता है। फिर गंगाजल छिड़ककर उन्हें फूलों की माला पहनाई जाती है। उसके बाद उन्हें गुड़, केले और लड्डूओं का प्रसाद खिलाया जाता है और धूप व दीप से उनकी आरती उतारी जाती है। इस दिन महिलाएं पहले भगवान श्री कृष्ण की पूजा करती है और फिर गायों की पूजा करती हैं। गाय के अंदर सभी देवी-देवताओं का वास माना जाता है और गाय की पूजा भगवान श्री कृष्ण को अत्याधिक प्रिय है। वैसे भी गाय को विश्व की माता माना जाता है और गाय की सेवा से मोक्ष प्राप्त होता है।
कब और क्यों मनाई जाती है:-
दिवाली के बाद कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को गोपाष्टमी मनाई जाती है। इस दिन भगवान श्री कृष्णा ने गौ-चारण लीला आरम्भ की थी।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी तिथि पर माता यशोदा ने भगवान कृष्ण को पहली बार गायों को चराने के लिए जंगल भेजा था। यशोदा माता भगवान कृष्ण को नहीं भेजना चाहती थी लेकिन भगवान कृष्ण जिद करने लगे। तभी से कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तो गोपाष्टमी मनाई जाने लगी। इस दिन गायों की विशेष रूप से पूजा की जाती है। गाय पूजन से सभी देवी देवतागण प्रसन्न होते हैं।
मान्यताए:-
मान्यताओं के अनुसार गाये में ३३ करोड़ देवताओं का वास होता है। हिन्दू धर्म में गए को माता का दर्जा दिया गया है और इसक पूजा भी की जाती है। गोपाष्टमी के दिन गए और गोविन्द की विशि अनुसार पूजा अर्चना करने से धन और सुख समृद्धि से वृद्धि होती है। इस दिन को लेकर मान्यता है की इस दिन कृष्ण जी गौ चरण के लिए पहेली बार घर से निकले थे। वैसे माता यशोदा श्री कृष्णा को प्रेमवश कभी गौ चरण के लिए नहीं देती थी। लेकिन इस दिन कन्हइया के जिद्द का गे चरण के लिए जाने को कहा, तब यशोदा जी ने ऋषि शांडिल्य से कहकर मुहूर्त निकलवाया और पूजन के लिए अपने श्री कृष्णा को गौ चरण के लिए भेजा था। तभी से गोपाष्टमी को गईया और गोविन्द की पूजा का विधान मन गया है।
विधि:-
गोपाष्टमी के दिन प्रात: काल जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और साफ वस्त्र धारण करने चाहिए।
इसके बाद गाय और बछड़े को भी स्नान कराएं। यदि आप ऐसा न कर सकें तो गाय और बछड़े पर गंगाजल छिड़क दें।
इसके बाद गाय का हल्दी से लेप करना चाहिए और गाय को सजाना चाहिए।
इसके बाद गाय की सींग पर भी हल्दी लगानी चाहिए। इसके बाद गाय के बछड़े को भी इसी प्रकार से सजाना चाहिए।
इसके बाद गाय और बछड़े का तिलक करके उन्हें फूलों की माला पहनानी चाहिए और उन्हें फल, नैवेद्य, चने की दाल आदि अर्पित करनी चाहिए और दोनों के गले में घंटी बांधनी चाहिए।
इसके बाद गाय और बछड़े का धूप व दीप से विधिवत पूजन करना चाहिए।
इसके बाद गाय और उसके बछड़े को फल, गुड़,चने की दाल और लड्डू आदि खिलाना चाहिए।
इसके बाद गाय की परिक्रमा करनी चाहिए और भगवान श्री कृष्ण का ध्यान करना चाहिए।
गाय की परिक्रमा करने के बाद कुछ दूर तक गाय के साथ चलना चाहिए या फिर गाय को आगे चलाकर आप उनसे पीछे चलें।
गोपाष्टमी के दिन अन्नकूट भंडारा भी किया जाता है। इसलिए इस दिन अन्नकूट भंडारा भी अवश्य करें।
द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने जब अपने छठे वर्ष की आयु में प्रवेश किया तब उन्होंने अपनी माता यशोदा से कहा कि मां मैं अब बड़ा हो गया हुं। तब उनकी माता ने उनसे पूछा हां लल्ला तुम बड़े हो गए हो तब हमें क्या करना चाहिए। तब श्री कृष्ण ने कहा कि मां मैं अब बछड़ों के साथ- साथ गायों की भी सेवा करना चाहता हूं। मां यशोदा ने कहा ठीक है तुम नंद बाबा से पुछ लो। मैय्या के यह कहते ही भगवान श्री कृष्ण तुरंत नंद बाबा के पास पहुंच गए और नंद बाबा से सब बात कह डाली। इस पर नंद बाबा ने कहा कि लल्ला अभी तुम बहुत छोटे हो। इसलिए तुम अभी बछड़े ही चराओ। तब श्री कृष्ण ने कहा कि बाबा अब मैं बछड़े नहीं चराऊंगा गायों को ही चराने के लिए ले जाऊंगा। जब भगवान श्री कृष्ण नहीं माने तो नदं बाबा ने थक हारकर कहा ठीक है लल्ला तुम शांडिल्य ऋषि को बुला लाओ। वह गो चराने का मुहूर्त देखकर बता देंगे। श्री कृष्ण तुरंत ही शांडिल्य ऋषि को बुला लाए। इसके बाद यशोदा जी ने शांडिल्य ऋषि से एक अच्छा सा मुहूर्त निकलवाकर भगवान श्री कृष्ण को गाय चराने की अनुमति दे दी। वह दिन गोपाष्टमी का ही दिन था। भगवान श्री कृष्ण गायों को प्रणाम करके उनकी पूजा करते हैं और उसके बाद गायों को चराने के लिए जंगल में लेकर जाते हैं।
कथा 2:-
एक पौराणिक कथा अनुसार बालक कृष्ण ने माँ यशोदा से गायों की सेवा करनी की इच्छा व्यक्त की कृष्ण कहते हैं कि माँ मुझे गाय चराने की अनुमति मिलनी चाहिए। उनके कहने पर शांडिल्य ऋषि द्वारा अच्छा समय देखकर उन्हें भी गाय चराने ले जाने दिया जो समय निकाला गया, वह गोपाष्टमी का शुभ दिन था। बालक कृष्ण ने गायों की पूजा करते हैं, प्रदक्षिणा करते हुए साष्टांग प्रणाम करते हैं।
गोपाष्टमी के अवसर पर गऊशालाओं व गाय पालकों के यहां जाकर गायों की पूजा अर्चना की जाती है इसके लिए दीपक, गुड़, केला, लडडू, फूल माला, गंगाजल इत्यादि वस्तुओं से इनकी पूजा की जाती है। महिलाएं गऊओं से पहले श्री कृष्ण की पूजा कर गऊओं को तिलक लगाती हैं। गायों को हरा चारा, गुड़ इत्यादि खिलाया जाता है तथा सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।
गोपाष्टमी पर गऊओं की पूजा भगवान श्री कृष्ण को बेहद प्रिय है तथा इनमें सभी देवताओं का वास माना जाता है। कईं स्थानों पर गोपाष्टमी के अवसर पर गायों की उपस्थिति में प्रभातफेरी सत्संग संपन्न होते हैं। गोपाष्टमी पर्व के उपलक्ष्य में जगह-जगह अन्नकूट भंडारे का आयोजन किया जाता है। भंडारे में श्रद्धालुओं ने अन्नकूट का प्रसाद ग्रहण करते हैं। वहीं गोपाष्टमी पर्व की पूर्व संध्या पर शहर के कई मंदिरों में सत्संग-भजन का आयोजन भी किया जाता है। मंदिर में गोपाष्टमी के उपलक्ष्य में रात्रि कीर्तन में श्रद्धालुओं ने भक्ति रचनाओं का रसपान करते हैं। इस मौके पर प्रवचन एवं भजन संध्या में उपस्थित श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।गो सेवा से जीवन धन्य हो जाता है तथा मनुष्य सदैव सुखी रहता है।
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