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गोवत्स द्वादशी | Gowats Dwadashi on 17 Oct 2025 (Friday)

हिन्दू धर्म में कई प्रकार के व्रत और त्यौहार मनाये जाते हैं जिनका हमारे रोज़मर्रा के जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है।  आज हम आपको एक बहुत ही महत्वपूर्ण ,प्रमुख और पूजनीय व्रत के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे करने से आपके जीवन के सभी संकट दूर हो जायेंगे, आपके जीवन में कभी भी धन की कमी नहीं होगी और आपके घर में हमेशा खुशहाली बनी रहेगी। 

गौवत्स द्वादशी का महत्व 

गोवत्स द्वादशी का व्रत कार्तिक कृष्ण द्वादशी के दिन मनाया जाता है। 
गोवत्स द्वादशी को बछ बारस त्योहार के नाम से भी जाना जाता है। 
गुजरात में इस त्यौहार को बाघ बरस के नाम से मनाया जाता है। 
गोवत्स द्वादशी एकादशी के अगले दिन मनाई जाती है। इस दिन गाय माता और उसके बछड़े की पूजा करने का नियम है। 
इस पूजा को सुबह के समय गोधूलि बेला में किया जाता है, जिस वक्त सूर्य उदय होता है. गोवत्स पूजा के दिन सभी महिलाएं व्रत रखती हैं। 
गोवत्स पूजा खासतौर से पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है। 
यह व्रत महिलाओं के लिए बहुत ही मंगलकारी होता है। 
गोवत्स द्वादशी का व्रत महिलाएं पुत्र की लंबी उम्र और उनकी मंगल कामना के लिए करती हैं। 

सर्वश्रेष्ठ योनि कौन सी?

शास्त्रों में बताया गया है कि मनुष्य योनि सभी योनियों में श्रेष्ठ होती है. ऐसा इसलिए माना जाता है कि गौमाता की निर्मल छाया में अपने मनुष्य जीवन को धन्य किया जा सके। 
गौ माता के शरीर के हर रोम में देवी देवताओं और तीर्थ स्थानों का वास होता है। 
इसलिए धर्म पुराणों में बताया गया है कि अगर आप देवी देवताओं और पितरों को एक साथ प्रसन्न करना चाहते हैं तो गौ भक्ति, गौ सेवा से बढ़कर कोई रास्ता नहीं है। 
गौ माता को एक निवाला खिलाने से वह सभी देवी देवताओं तक स्वयं पहुंच जाता है। 
भविष्य पुराण में बताया गया है कि गौ माता के पिछले हिस्से में ब्रह्मा जी का वास होता है, गौ माता के गले में विष्णु का, मुख में शिव जी का और मध्य स्थान में सभी देवी देवता निवास करते हैं। 
गौ माता के रोम कूपों में महर्षि गण पूछ में अनंत नाग खुरो में सभी पर्वत और गोमूत्र में पवित्र नदियां निवास करती हैं, इसीलिए बछ बारस, गोवत्स द्वादशी के दिन सभी महिलाएं अपने पुत्रों की लंबी उम्र सलामती और परिवार की खुशहाली के लिए व्रत करती हैं। 
गोवत्स द्वादशी के दिन सभी घरों में बाजरे की रोटी बनाई जाती है।  बाजरे की रोटी के साथ अंकुरित अनाज की सब्जी बनाई जाती है।  इस दिन गाय के दूध की जगह भैंस या बकरी के दूध का इस्तेमाल किया जाता है। 

गौवत्स द्वादशी पर बरसेगा धन :-

हमारे शास्त्रों में बताया गया है कि बछ बारस के दिन जो भी महिला गौमाता की पूजा-अर्चना करती है और उन्हें रोटी हरी घास खिलाती है उनके घर में हमेशा माँ लक्ष्मी निवास करतीं हैं और उनके परिवार में कभी भी किसी व्यक्ति की अकाल मृत्यु नहीं होती है। 
गोवत्स द्वादशी का व्रत करने से परिवार पर आने वाले सभी प्रकार के संकट टल जाते हैं। 
कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की द्वादशी को मनाया जाने वाला गोवत्स द्वादशी का व्रत गाय और उनके बछड़ों की सेवा का पर्व होता है। 
इस दिन सुबह के समय नित्य कर्म सेनिवृत्त होकर स्नान करने के बादगाय और उसके बछड़े की पूजा की जाती है। 
इस व्रत में प्रदोष व्यापनी तिथि को ग्रहण करने का नियम है। 
अगर आपको घर के आस पास गाय या बछड़ा नहीं मिलते हैं तब आप गीलीमिट्टी से गाय और बछड़े की मूर्ति बनाकर उनकी पूजा कर सकते हैं। 
गोवत्स द्वादशी के व्रत में गाय के दूध या गाय के दूध से बने खाद्य पदार्थों का सेवन वर्जित होता है। 
गौ माता श्रीकृष्ण को सर्वाधिक प्रिय है। 
गाय को पृथ्वी का प्रतीक माना जाता है।  गौमाता में सभी देवी देवता निवास करते हैं। 
गौ माता से मिलने वाले खाद्य पदार्थ जैसे- दूध घी दही सभी चीजों का इस्तेमाल भगवान की पूजा और हवन में किया जाता है। 
पंचामृत में भी गाय माता के दूध, गाय के दूध से  बना दही और गाय के घी आदि का इस्तेमाल किया जाता है। 

गौवत्स द्वादशी के नियम :-

गोवत्स द्वादशी के दिन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए पृथ्वी पर सोना चाहिए। 
इस दिन पूरे मन से भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा अर्चना करनी चाहिए। 
जो भी व्यक्ति पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ गोवत्स द्वादशी का व्रत करता है उसे सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है और उसके जीवन में कभी भी कोई कमी नहीं होती है। 
गोवत्स द्वादशी के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर किसी पवित्र नदी या तालाब में स्नान करने के बाद साफ-सुथरे वस्त्र धारण करने चाहिए। 
इसके बाद पूरे सच्चे हृदय से व्रत का संकल्प लेना चाहिए.गोवत्स द्वादशी के व्रत में सिर्फ एक समय भोजन करने का नियम है। 
इस दिन गाय और उसके बछड़े को किसी नदी या सरोवर में स्नान कराने के बाद नए वस्त्र पहनाए जाते हैं। 
गाय और उसके बछड़े के गले में फूलों की माला पहनाने के बाद चंदन से तिलक करते हैं। 
इसके बाद तांबे के बर्तन में सुगंध, अक्षत, तिल,जल और फूलों को मिलाकर नीचे बताए गए मंत्र का उच्चारण करते हुए गाय की पूजा करते हैं। 

क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते|  सर्वदेवमयेमातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:॥

 इस मंत्र को पढ़ने के बाद गाय को उड़द की दाल से बना भोजन खिलाएं और नीचे दिए गए मंत्र को पढ़ते हुए गौमाता से प्रार्थना करें

सुरभि त्वम् जगन्मातर्देवी विष्णुपदे स्थिता सर्वदेवमये ग्रासंमय दत्तमिमं ग्रस ततः सर्वमये देवी सरदेवैरलङ्कृते मातमरमाभिलाषितम सफलम कुरु नंदिनी


इस मंत्र का जाप करके पूजा करने के बाद गोवत्स की कथा सुनी जाती है.

पूरा दिन व्रत करने के बाद रात के समय अपने इष्ट देव और गौ माता की आरती करने के बाद भोजन किया जाता है। 

गौवत्स द्वादशी की कथा :-

गोवत्स द्वादशी के विषय में हमारे धर्म पुराणों में कई प्रकार की बातें बताई गई हैं।  गोवत्स द्वादशी की एक कथा बहुत ही प्रचलित है।  इस कथा के अनुसार सबसे पहले राजा उत्तानपाद ने पृथ्वी पर इस व्रत को करने की शुरुआत की थी।  उत्तानपाद की पत्नी सुनीति ने जब इस व्रत को किया था तब उन्हें इस व्रत के प्रभाव से पुत्र के रूप में ध्रुव की प्राप्ति हुई थी।  इसलिए जो भी दंपत्ति संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं उन्हें गोवत्स द्वादशी का व्रत जरूर करना चाहिए।  संतान प्राप्ति की कामना रखने वाले लोगों के लिए यह बहुत ही शुभ होता है।  जो लोग गोवत्स द्वादशी का व्रत करते हैं उन्हें इस दिन सात्विक गुणों का पालन जरूर करना चाहिए।  गोवत्स द्वादशी के दिन गौमाता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए गाय माता का विधिपूर्वक पूजा पूजन किया जाता है।  जो व्यक्ति सच्चे ह्रदय और सेवाभाव से गौमाता का पूजन करता है उसके ऊपर भगवान विष्णु की कृपा सदैव बनी रहती है।  अगर आप भी संतान प्राप्ति की कामना रखते हैं या अपने घर में सुख शांति और धन लाना चाहते हैं तो पुरे विधि विधान से गोवत्स द्वादशी का व्रत करें। 
 
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