गुप्त नवरात्रि दूसरे दिन मां तारा की पूजा
गुप्त नवरात्रि के दूसरे दिन मां तारा की पूजा करने का नियम है. मां तारा जीवन में आने वाली सभी विपत्तियों आकर्षण और संकटों से छुटकारा दिलाती हैं. मां तारा की साधना पूर्ण रूप से अघोरी साधना होती है. माँ तारा की साधना करने से मनुष्य को लौकिक सुख के साथ साथ शांति और समृद्धि भी प्राप्त होती है. देवी तारा अपने सभी भक्तो और उपासकों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करती हैं. इसके अलावा मां तारा धन से जुडी समस्याओं को भी दूर करती हैं, साथ ही वो मुक्ति प्रदान करने वाली देवी हैं. बौद्ध धर्म में भी मां तारा की उपासना को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है. मान्यताओं के अनुसार भगवान बुद्ध ने भी मां तारा की आराधना की थी और साथ ही भगवान श्रीराम के गुरु वशिष्ठ ने भी पूर्णता को प्राप्त करने के लिए मां तारा की उपासना की थी.
माँ तारा की पूजा का महत्व -
शास्त्रों में बताया गया है की भगवान शिव और महापण्डित रावण भी माँ तारा की उपासना की थी. मान्यताओं के अनुसार जिसका उद्धार भगवान शिव भी नहीं कर पाते है मां तारा उनका भी उद्धार करती हैं.जिस जगह पर भगवान आनंद भैरव ने गुरु वशिष्ठ जी को मां तारा के उपदेश प्रदान किये थे वो जगह आज के समय में भी तारा पीठ के नाम से मशहूर है. मां तारा की साधना एक विशेष प्रकार से की जाती है जिसमें कोई विशेष नियम नहीं होता है, परन्तु अगर कोई मनुष्य पूरी श्रद्धा के साथ माँ तारा की पूजा करता है तो वो भक्त की पुकार ज़रूर सुनती हैं. माँ तारा की साधना करने से धन सम्बन्धी सभी समस्याए दूर हो जाती हैं. और साथ ही दिव्य सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं.
माँ तारा का स्वरुप-
• शास्त्रों में मां तारा को दस महाविद्याओं की दूसरी विद्या बताया गया है.
• ऐसा माना जाता है की मां तारा का स्वरूप मां काली के सामान होता है.
• अगर कोई व्यक्ति तांत्रिक शक्तियां प्राप्त करना चाहता है तो उसे माँ तारा की विशेष साधना करनी चाहिए.
मां तारा की पूजा ज़्यादातर अघोरी, तांत्रिक और साधू करते है. माँ तारा के तीन स्वरूप हैं. इनका रंग नीला है. इसलिए इन्हें नील सरस्वती भी कहा जाता है.इसके अलावा मां तारा को उग्रतारा के नाम से भी जाना जाता है. मां अपना उग्र रूप धारण करके अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करती हैं और अपने भक्तों को मोक्ष प्रदान करती है. मां तारा की पूजा करने से काम, क्रोध, मोह और लोभ से छुटकारा मिलता है.माँ तारा के तीसरे स्वरूप का नाम है एकजटा….
उग्र तारा-
माँ तारा का पहला रूप है उग्र तारा… ये अपने भयानक और उग्र ऊर्जा की वजह से विश्व में विख्यात हैं. माँ उग्र तारा के अंदर समस्त तामसिक गुण मौजूद हैं और ये अपने भक्त की कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सहायता करती है. उग्र तारा किसी भी प्रकार के संकटो का नाश करती है और साथ ही बुद्धि बल विवेक को जाग्रत करके अपने भक्तों को विनाशकारी परिस्थितियों में भी पथ प्रदर्शन करती हैं और उनकी सहायता करती हैं.
नील सरस्वती-
माँ तारा के इस स्वरुप में पूरे ब्रह्मांड का ज्ञान समाहित है. माँ नील सरस्वती आयुर्वेद, ज्योतिष, विज्ञान या कुछ और भी अज्ञात ज्ञान जो कि सामान्य बुद्धि के व्यक्ति की समझ से परे हैं इन सभी चीजों को एकत्र करने के पश्चात् जो स्वरूप बनेगा और जो ऊर्जा उत्पन्न होगी वह है देवी नील सरस्वती. देवी नील सरस्वती राजसिक गुणों से संपन्न है. नील सरस्वती अपने ज्ञान और ऊर्जा से ज्वलन्त शव को भी शिव का रूप देने में सक्षम है
एकजटा
माँ तारा का तीसरा स्वरुप है एकजटा. देवी एकजटा मोक्ष प्रदान करने वाली देवी हैं. माँ का यह स्वरूप सत्व गुनी है. देवी एकजटा शिव को अपनी जटाओं में धारण करके उन्हें मोक्ष प्रदान करने वाली देवी है. देवी एकजटा अपने अभी भक्तों को मृत्यु के पश्चात् अपनी जटा में स्थान देती हैं और साथ ही मोक्ष प्रदान करती हैं.
ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट्
मां तारा की पूजा विधि –
• मां तारा की पूजा हमेश रात्रि के समय ही की जाती है. इसलिए अगर आप मां तारा की पूजा कर रहे हैं तो इसे हमेशा अर्धरात्रि में ही करें.
• माँ तारा की पूजा हमेशा एकांत कक्ष में ही करें जहाँ आपके अलावा और कोई उपस्थित न हो.
• माँ तारा की पूजा करने से पहले स्नान करें. इसके पश्चात् एक सफेद रंग की धोती धारण करें.
• मां तारा की पूजा में कभी भी सिले हुए वस्त्र नहीं पहनने चाहिए .
• अब पश्चिम दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएँ.
• अब अपने समक्ष एक चौकी रखे और उस पर गंगाजल छिड़ककर उसे शुद्ध लें.
• अब चौकी पर गुलाबी रंग का कपड़ा बिछाएं. अब एक प्लेट में गुलाब के फूल रखें.
• अब चौकी पर तारा यंत्र की स्थापना करें. अब इस यंत्र के चारो तरफ चावल की चार ढेरियां रखें.
• चावल की चारो ढेरियों पर एक- एक लौंग रखें. इसके पश्चात् तारा यंत्र के सामने घी का दीपक प्रज्वलित करें.
• दीपक जलाने के पश्चात् विधिवत मां तारा के मंत्रों का जाप करें. मंत्र जाप करने के पश्चात् श्रद्धा पूर्वक मां तारा की कथा सुने.
• माँ तारा की कथा सुनने के बाद मां तारा की आरती उतारे.
• पूजा करने के पश्चात् पूजा में इस्तेमाल की गयी सभी सामग्री को किसी बहती हुई नदी में प्रवाहित कर दें या इन चीजों को पीपल के पेड़ के नीचे जमीन में गहरा गड्डा खोदकर दबा दें.
मां तारा की कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार देवी तारा का जन्म मेरु पर्वत के पश्चिम भाग में चोलना नदी के किनारे पर हुआ थास्वतंत्र तंत्र के अनुसार, देवी तारा की उत्पत्ति , तट पर हुई। हयग्रीव नाम के दैत्य के वध हेतु देवी महा-काली ने ही, नील वर्ण धारण किया था। महाकाल संहिता के अनुसार, चैत्र शुक्ल अष्टमी तिथि में 'देवी तारा' प्रकट हुई थीं, इस कारण यह तिथि तारा-अष्टमी कहलाती हैं, चैत्र शुक्ल नवमी की रात्रि तारा-रात्रि कहलाती हैं। सबसे पहले स्वर्ग-लोक के रत्नद्वीप में वैदिक कल्पोक्त तथ्यों तथा वाक्यों को देवी काली के मुख से सुनकर, शिव जी अपनी पत्नी पर बहुत प्रसन्न हुए।
शिवजी ने मां पार्वती को बताया की आदि काल में भयंकर रावण का विनाश किया तब आपका वह स्वरूप तारा नाम से विख्यात हुआ। उस समय आपका रूप बहुत विकराल था आपका यह रूप देखकर सभी देवता भयभीत हो गए थे। अपने इस विकराल रूप में आप नग्न अवस्था में खी इसलिए आपकी लज्जा के लिए ब्रह्मा जी न आपको व्याघ्र चर्म प्रदान किया था। इसी कारण से आप लम्बोदरी नाम से विख्यात हुई थी। तारा-रहस्य तंत्र के अनुसार, भगवान राम केवल निमित्त मात्र ही थे, वास्तव में भगवान राम की विध्वंसक शक्ति देवी तारा ही थी, जिन्होंने लंका पति रावण का वध किया।