- महर्षि वेदव्यास जी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है.
- इनका जन्म आषाढ़ पूर्णिमा के दिन हुआ था.
- इसी वजह से आषाढ़ पूर्णिमा के दिन व्यास पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है.
- महर्षि वेदव्यास ऋषि वशिष्ठ के प्रपौत्र, शक्ति ऋषि के पुत्र थे.
- इनके पिता का नाम महर्षि पराशर था.
- महर्षि वेदव्यास के पुत्र का नाम महाभागवत शुक्र देव था.
- वेदव्यास जी महाशाल, शौनकादिक, महर्षि शंकराचार्य, गोविंदाचार्य और गौडपादाचार्य जैसे महान ऋषियों के गुरु थे.
- भगवान वेदव्यास जी का जन्म यमुना नदी के तट पर हुआ था.
- इसी वजह से उन्हें द्वैपायन भी कहा जाता है.
- वेदव्यास जी व्रणीय कुल के थे जिसकी वजह से उन्हें वेदव्यास कृष्ण द्वैपायन के नाम से भी जाना जाता है.
- वेदव्यास जी ने वेदों का संकलन किया था जिसकी वजह से वह पूरी दुनिया में वेदव्यास के नाम से विख्यात हुए.
वेदव्यास जी रचनायें :-
- अपने जन्म के कुछ समय बाद ही वेदव्यासजी अपनी माता की आज्ञा लेकर तपस्या के लिए चले गए थे.
- तपस्या के लिए जाते वक्त वेदव्यास जी ने अपने मां को यह आश्वासन दिया था कि जब भी वह उन्हें याद करेंगे या उन्हें कोई काम होगा तब वह उनके सामने प्रकट हो जाएंगे.वेदव्यास जी ने बद्रिकाश्रम अपनी तपस्या की शुरुआत की थी.
- वेदव्यास जी ने तपस्या के दौरान सिर्फ बेर का सेवन किया था. इसी वजह से उन्हें बादनारायण भी कहा जाता है. वेदव्यास जी ने चारों वेदों का संहिताकरण किया था, पर जब उन्हें ऐसा लगा कि आम लोग कठिन वेदार्थ को नहीं समझ सकते हैं तो उन्होंने 18 महापुराण, उपपुराण का निर्माण किया.
- वेदव्यास जी ने 100000 श्लोक वाले महाभारत नामक महान और विशाल ग्रंथ की रचना की.
- इसके अलावा उन्होंने वृहदव्यास स्मृति, लघुव्यास स्मृति जैसे महान ग्रंथों की भी रचना की.
- वैदिक एवं औपनिषिदिक शंकाओं को दूर करने के लिए ब्रह्म सूत्र और वेदांत दर्शन की रचना की.
- वेदव्यास जी ने दर्शन पर व्यास भाष्य नाम की अद्भुत रचना की है.
- ब्रह्मांड पुराण का एक भाग अध्यात्म रामायण भी वेदव्यास जी ने लिखा है.
- ऐसा कह सकते हैं कि पूरी दुनिया विज्ञान एवं साहित्य व्यास जी के सामने छोटा है.
- पूरी दुनिया में किसी भी धर्म के ग्रंथ क्यों ना हो अगर उसमें कोई नैतिक सात्विक एवं कल्याण पर आधारित कोई बात है तो उसका मूल स्त्रोत वेदव्यास जी को माना जाता है.
- अज्ञान के अंधेरे में डूबे प्राणियों को सदाचार, धर्म आचरण, देव उपासना तथा व्रत उपवास आदि नियमों का उपदेश देने के लिए ही वेदव्यास जी ने अवतार लिया था.
- इस कार्य में वेदव्यास ने पूरी तरह से सफलता हासिल की.
वेदव्यास जी की उपासना :-
1. वेदव्यास जी को अमर माना जाता है.
2. भक्त उनकी रोज उपासना और पूजा करते हैं.
3. व्यास पूर्णिमा के दिन सभी भक्तगण श्रद्धा भाव से उन्हें याद करके उनकी पूजा आराधना करते हैं.
4. सभी धर्म के लोगों में व्यास पूर्णिमा का उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है.
5. भविष्य पुराण में भगवान वेद व्यास पूर्णिमा को मनाने का तरीका इस प्रकार लिखा है:
मम जन्मदिने सम्यक पूजनीय प्रयत्न आषाढ़शुक्ल तू पूर्णिमायम विशेषण वस्त्राभरणधेनुभि फलपुष्पादिना समयगरातनकादिभोजने दकशनभी सुपुष्टाभिरंतवास्वरूपम प्रपूजयते एवं क्रृते त्वया विप्र मत्सुरूपस्य दर्शनम
भगवन वेदव्यास जी की जनम तिथि :-
- आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन भगवान वेदव्यास जी की जन्म तिथि मनाई जाती है.
- इसी दिन व्यास पूर्णिमा एवं गुरु पूर्णिमा भी कहा जाता है.
- इस पावन दिवस को भक्त बहुत ही श्रद्धा पूर्वक अपने गुरुओं की पूजा अर्चना करके मनाते हैं.
- इस दिन अपने गुरु को सुंदर वस्त्र, आभूषण, गोदान, फल, पुष्प, व्रत, स्वर्ण मुद्रा श्रद्धा पूर्वक देनी चाहिए.
- गुरु पूजन और विधान गुरु पूर्णिमा पर गुरु की पूजा करना शिष्य का परम धर्म होता है.
- भगवान व्यास ने कहा है कि श्री गुरु पूर्णिमा के दिन उत्तम दक्षिणा के साथ व्यास जी के स्वरूप की पूजा करना अभीष्ट कर देने वाला होता है.
- ऐसा करने से श्री गुरुदेव में मेरा दर्शन ही समझना चाहिए.गुरु पूर्णिमा पर गुरु का आदर केवल विशेष मनुष्य का आदर ना होकर उस गुरु के अंदर मौजूद वेदव्यास जी का आत्मा का आदर करना होता है.
वेदव्यास जी ने बताया है कि गुरु में ही ब्रह्मा विष्णु और महेश तीनों ही देवता मौजूद होते हैं. इसीलिए कहा जाता है कि ......
गुरुर्ब्रह्मा गुरुरविष्णु गुरुरदेवो महेश्वरा, गुरुर साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः
इसलिए गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरु का आदर पूर्वक पूजन करना चाहिए और उन्हें अलग-अलग प्रकार की दक्षिणा देनी चाहिए. भगवान श्री राम जी गुरु के घर जाकर उनकी पूजा करते थे. वेदव्यास जी की कृपा से आज हिंदू धर्म के नियमों एवं सिद्धांतों का निर्माण हुआ है. अलौकिक धर्म पुराणों के अनुसार गुरुओं की पूजा करना करने से मनचाहे फल की प्राप्ति होती है. स्मृतियों एवं ग्रंथों का निर्माण अष्टादश पुराण एवं उपकरणों पर आधारित है. भारतीय जनमानस हमेशा उनका ऋणी रहेगा.
विशाल बुद्धि वाले भगवान वेदव्यास को हम दिल से प्रणाम करते हैं.
जयति पराशरसंहा सत्यवतीहृदयनन्दनो व्यास यस्यासीकमालगालितम वागम्यममृतं जगत पिबति
इस श्लोक का अर्थ है की श्री पराशर जी के पुत्र, सत्यवती के दिल को आनंदित करने वाले वेदव्यास जी की जय हो, जिनके मुख मंडल से मिश्रित शास्त्र रूपी सुधा धारा बहती रहती है जिसका पान पूरा संसार करता है.
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