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होलाष्टक प्रारम्भ |Holashtak on 07 Mar 2025 (Friday)

क्यों मनाया जाता है होलाष्टक का पर्व, जानिए क्या है इसका महत्त्व

चन्द्र मास के मुताबिक फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि के दिन होलिका का त्यौहार बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. होलाष्टक से ही होली का त्यौहार आने की सूचना प्राप्त होती है. होलाष्टक को होली के त्यौहार की खबर लेकर आने वाला एक हरकारा भी कहा जाता है. "होलाष्टक" अर्थात होला+अष्टक मतलब होली से आठ दिन पहले, के समय को होलाष्टक कहा जाता है. शास्त्रों में होली के पर्व को पूरे नौ दिनों का त्यौहार माना गया है. धुलेण्डी के दिन रंग और गुलाल खेल कर यह त्यौहार खत्म होता है.

होलाष्टक का महत्व-

• होली के त्यौहार का आरम्भ होलाष्टक से शुरू होकर दुलैण्डी तक मनाया जाता है.

• इस पर्व के कारण प्रकृति में हर्ष और उत्सव का माहौल रहता है.

• होलाष्टक आरम्भ होने के बाद होली आने की दस्तक मिलती है, साथ ही होलाष्टक के दिन से ही होली उत्सव के  साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियांभी आरम्भ हो जाती है.

• होलाष्टक का पर्व फाल्गुण शुक्ल अष्टमी से आरम्भ होकर पूर्णिमा तक मनाया जाता है.

• होलाष्टक आरम्भ होने के पश्चात् मौसम में बदलाव आना शुरू हो जाता है. इसी समय से ठण्ड का मौसम खत्म होकर गर्मियों की शुरुआत होने लगती है.

• होलाष्टक आरम्भ होने के साथ ही वसंत ऋतू के आने की सुगंध फूलों की खुशबु प्रकृ्ति में बिखरने लगती है.

• शास्त्रों में बताया गया है की होलाष्टक के दिन ही भगवान् शिव ने क्रोध में आकर काम देव को भस्म कर दिया था.  

होलाष्टक से जुडी विशेष बातें-

• मान्यताओं के अनुसार भारत के कुछ भागों में ही होलाष्टक का त्यौहार मनाया जाता है.

• होलाष्टक का पर्व पंजाब में सबसे ज़्यादा धूमधाम से मनाया जाता है.

• सभी जगहों पर होली के रंगों की तरह होली को मनाने के तरीके भी अलग अलग है.

• होली का त्यौहार उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडू, गुजरात, महाराष्ट्र, उडिसा, गोवा आदि में अलग अलग तरीको से मनाया जाता है.

• देश के जिन राज्यों में होलाष्टक का पर्व नहीं मनाया जाता है उन सभी राज्यों में होलाष्टक से होलिका दहन के बीच के समय में शुभ कार्यों को बन्द नहीं किया जाता है.

होलिका दहन में होलाष्टक की मान्यता -

• होलिका दहन करने के लिये होली के त्यौहार से आठ दिन पूर्व जिस जगह होलिका दहन करना है उसे गंगाजल से शुद्ध किया जाता है.

• गंगाजल से शुद्ध करने के पश्चात् उस स्थान पर सूखे उपले, सूखी लकडी, सूखी खास होली के डंडे की स्थापना की जाती है.

• जिस दिन इस कार्य को आरम्भ किया जाता है, उसी दिन को होलाष्टक प्रारम्भ का दिन माना जाता है.

• जिस गांव, क्षेत्र या मौहल्ले के चौराहे पर होली के डंडे की स्थापना की जाती है उस क्षेत्र में होलिका दहन होने तक किसी भी प्रकार का शुभ कार्य संपन्न नहीं किया जाता है.

होलाष्टक के दिन से होती है इन कार्यों की शुरुआत-

• जिस दिन से होलाष्टक का आरम्भ होता है उसी दिन होलिका दहन के स्थान का चुनाव भी किया जाता है.

• होलाष्टक आरम्भ होने के दिन होलिका दहन के स्थान को गंगा जल से शुद्ध कर, होलिका दहन के लिये लकडियां इकठ्ठा करने का कार्य किया जाता है.

• होलाष्टक के दिन सभी लोग जगह-जगह जाकर सूखी लकडियां खास तौर पर जो लकडियां पेड़ से सूख कर अपने आप गिर गई हों, उन्हें चौराहे पर इकठ्ठा करते है.

• होलाष्टक आरम्भ होने से लेकर होलिका दहन के दिन तक नियमित रूप से इसमें कुछ लकडियां डाली जाती है.

• जिससे होलिका दहन के दिन तक यहाँ पर बहुत सारी लकड़ियां जमा हो जाती है.

• होलाष्टक के दिन से ही होली के रंग फिजाओं में बिखरने लगते है. अर्थात इसी दिन से रंगो के त्यौहार होली की शुरुआत हो जाती है.

• इस दिन से बच्चे हल्की फुलकी होली खेलना आरम्भ कर देते है.

होलाष्टक में भूल कर भी ना करे ये काम-

• होलाष्टक का पर्व पंजाब और उत्तरी भारत में मुख्य रूप से मनाया जाता है.

• जहाँ एक तरफ होलाष्टक के दिन से कुछ कार्यों का आरम्भ होता है वहीं कुछ कार्य ऎसे भी है जिन्हें होलाष्टक के दिन से करना निषेध माना जाता है.

• यह निषेध अवधि होलाष्टक आरम्भ होने से लेकर होलिका दहन के दिन तक मानी जाती है.

• अपने नाम की तरह होली के आठ दिन पूर्व ही होलाष्टक का आरम्भ हो जाता है.

• होलाष्टक आरम्भ होने के पश्चात् 16 संस्कारों में से किसी भी प्रकार के संस्कार को करना निशेष माना जाता है.

• यहां तक की अगर होलाष्टक के दौरान किसी की मृत्यु हो जाये तो अंतिम संस्कार करने से पहले शान्ति कार्य किये जाते है.

• होलाष्टक के दिनों में 16 संस्कारों के वर्जित होने की वजह से इस अवधि को शुभ नहीं माना जाता है.

होलाष्टक में अवश्य करें ये काम-

• होलाष्टक के आठ दिनों में मनुष्य को ज़्यादा से ज़्यादा भगवत भजन,जप,तप,स्वाध्याय वैदिक अनुष्ठान करने चाहिए. ऐसा करने से समस्त कष्ट, विघ्न संतापों का क्षय होता है.

• अगर किसी मनुष्य के शरीर में कोई असाध्य बीमारी हो जिसका उपचार के बाद भी फायदा नहीं हो रहा हो तो रोगी को होलाष्टक के दौरान सच्चे हृदय से भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए. योग्य वैदिक ब्राह्मण के द्वारा भगवान् शिव के महामृत्युंजय मंत्र का अनुष्ठान करवाएं, अनुष्ठान के पश्चात् गूगल से हवन करें.

• अगर कोई वैवाहिक दंपत्ति संतान प्राप्ति की कामना रखता है तो उन्हें होलाष्टक के दौरान लड्डू गोपाल का पूजन करना चाहिए. इसके अलावा संतान गोपाल मंत्र का जाप या गोपाल सहस्त्र नाम पाठ करने से भी संतान प्राप्ति के योग बनते है.

• अगर आप अपने जीवन से धन की कमी को दूर करना चाहते हैं या क़र्ज़ से छुटकारा पाना चाहते हैं तो होलाष्टक के दौरान श्रीसूक्त मंगल ऋण मोचन स्त्रोत का पाठ करवाएं.

• परिवार में सुख और समृद्धि लाने के लिए होलाष्टक के दौरान रामरक्षास्तोत्र ,हनुमान चालीसा विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें.

• किसी भी कार्य में सफलता पाने के लिए होलाष्टक के आठ दिनों में आदित्यहृदय स्त्रोत,सुंदरकांड का पाठ या बगलामुखी मंत्र का जाप करें.

• नवग्रह की कृपा प्राप्त करने के लिए होलाष्टक के दौरान भगवान् शिव का पंचामृत अभिषेक करें.

होलाष्टक का एक दूसरा स्वरूप बीकानेर की होली-

• होलाष्टक की तरह होली की एक परम्परा राजस्थान के बीकानेर में भी देखने को मिलती है.

• पंजाब की तरह बीकानेर में भी होली के आठ दिन पहले ही होली का आरम्भ हो जाता है.

• यहाँ फाल्गुन महीने की सप्तमी तिथि के दिन से से ही होली के त्यौहार का आरम्भ हो जाता है, जो धूलैण्डी तक चलता है.

• राजस्थान राज्य के बीकानेर शहर की होली भी अपने अंदर हर्ष और उल्लास के साथ साथ अपना एक बहुत ही खास अंदाज समाहित किये हुए हैं.

• बीकानेर में होलाष्टक के दिन होली का आरम्भ चौराहे पर डंडे की स्थापना और पूजन के साथ किया जाता है.

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