Indian Festivals

इंदिरा एकादशी/Indira Ekadashi on 28 Sep 2024 (Saturday)

हर व्यक्ति अपनी ज़रुरत के अनुसार व्रत करता है| धन के लिए माँ लक्ष्मी जी का व्रत, विवाह के लिए भगवान् शिव का व्रत, स्वास्थ्य के लिए हनुमान जी का व्रत जाने और कितनी ज़रूरतों के हिसाब से इंसान व्रत करता है| परन्तु ऐसा कौन सा व्रत हो सकता है जिस से सभी मनोकामना पूर्ण होजाए| अथवा सांसारिक सुखो को भोग कर इंसान मोक्ष को प्राप्त हो| सब व्रतों में सर्वश्रेष्ठ व्रत सिर्फ एक ही है वो है एकादशी का व्रत|

एकादशी व्रत एकमात्र ऐसा व्रत है जो इंसान की सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर उसे सुख समृद्धि देता है अथवा मोक्ष दिलाता हैसाल के बारह महीने में कुल चौबीस एकादशी होतीं हैं| हर महीने के दोनों पक्ष कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि आती है| परन्तु अधिक मास में दो एकादशी और बढ़ जाने से कुल 26 एकादशी होती है| हर एकादशी का अपना महत्व है|

एकादशी उत्पत्ति

जब भगवान् विष्णु जी मुर दैत्य से दस हज़ार वर्षो तक युद्ध करने के पश्चात, हेमवती गुफा में विश्राम कर रहे थे| तब दैत्य मुर भी उनके पीछे पीछे वह पोहोंच गया और उनको मारने ही वाला था तभी भगवान् विष्णु के शरीर से उज्ज्वल, कांतिमय रूप वाली देवी प्रकट हुई। देवी ने राक्षस मुर को ललकारा, युद्ध किया और उसे तत्काल मौत के घाट उतार दिया। जब विष्णु जी को यह सब का ज्ञान हुआ तो, उन्होंने उस देवी को एकादशी का नाम दिया क्यूंकि देवी का प्राकट्य एकादशी के दिन हुआ था|

इंदिरा एकादशी

इंदिरा एकादशी का महत्व बहुत अधिक है क्यूंकि यह एकादशी सिर्फ व्रत करने वाले को ही पाप मुक्त नहीं करती किन्तु, उस इंसान से जुड़े उसके पूर्वजो को भी मोक्ष दिलाती हैइंदिरा एकादशी पितृपक्ष के दौरान आने वाली एकादशी है| और यह एकादशी महत्वपूर्ण एकादशियों में से एक है| इस दिन जो भी व्यक्ति विधि पूर्वक व्रत करता है, वह तो केवल खुद मोक्ष पता है बल्कि अपने पूर्वजो को भी पाप मुक्त कर मोक्ष की प्राप्ति कराता है| साथ ही अपने आने वाली पीढ़ियों के जन्म को भी पाप मुक्त करता है|

एकादशी व्रत विधि

 


1.        किसी भी एकादशी व्रत का आरम्भ दशमी तिथि से ही हो जाता  है|

2.        दशमी तिथि को दिन से भोजन कर, दिन ढलने के बाद कुछ नहीं खाएं।  

3.        एकादशी के दिन गंगाजल पानी में मिलाकर स्नान करें और खुद को शुद्ध कर लें।  

4.        सूर्य भगवान् को जल अर्पित करें और जल अंजुली में लेकर व्रत का संकल्प करें। 

5.        इस दिन किसी की चुगली, बुराई या गुस्सा न करें मन् को शुद्ध रखें। 

6.        सुबह के समय भगवान् विष्णु जी की पूजा अर्चना करें उन्हें तुलसी दल व् पंचामृत अर्पित करें। 

7.        इस दिन भागवत गीता पढ़ना बहुत फलदायी होता है। 

8.        यदि पूरी गीता का पाठ न कर पाएं तो गीता के ग्यारहवे अध्याय का पाठ अवश्य करें। 

9.        पितरों का आशीष लेने के लिए विधि-पूर्वक श्राद्ध कर ब्राह्मण को भोजन व दक्षिणा देना चाहिए। 

10.       पितरों को दिया गया अन्न-पिंड गाय को खिलाना चाहिए। 

11.       वैसे तो हर दिन गाय को चारा देना शुभ होता है परन्तु आप अगर हर दिन नहीं दे सकते तो, एकादशी के दिन गाय को हरा चारा अवश्य खिलाएं। 

12.       शाम के समय मंदिर जाएं या घर में ही भगवान् विष्णु जी का पूजन करें। 

13.       फलाहार ग्रहण करें। 

14.       द्वादशी के दिन अन्न का दान करें और फिर व्रत का समापन करें।  

 

इंदिरा एकादशी व्रत कथा

भगवान श्री कृष्ण धर्मराज युद्धिष्ठर को इंदिरा एकादशी का महत्व बताते हुए कहते हैं कि यह एकादशी समस्त पाप कर्मों का नाश करने वाली होती है एवं इस एकादशी के व्रत से व्रती के साथ-साथ उनके पितरों की भी मुक्ति होती है। हे राजन् इंदिरा एकादशी की जो कथा मैं तुम्हें सुनाने जा रहा हूं। इसके सुनने मात्र से ही वाजपेय यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है।

आगे कथा शुरु करते हुए भगवन कहते हैं। बात सतयुग की है। महिष्मति नाम की नगरी में इंद्रसेन नाम के प्रतापी राजा राज किया करते थे। राजा बड़े धर्मात्मा थे प्रजा भी सुख चैन से रहती थी। धर्म कर्म के सारे काम अच्छे से किये जाते थे। एक दिन क्या हुआ कि नारद जी इंद्रसेन के दरबार में पंहुच जाते हैं। इंद्रसेन उन्हें प्रणाम करते हैं और आने का कारण पूछते हैं। तब नारद जी कहते हैं कि मैं तुम्हारे पिता का संदेशा लेकर आया हूं जो इस समय पूर्व जन्म में एकादशी का व्रत भंग होने के कारण यमराज के निकट उसका दंड भोग रहे हैं। अब इंद्रसेन अपने पिता की पीड़ा को सुनकर व्यथित हो गये और देवर्षि से पूछने लगे हे मुनिवर इसका कोई उपाय बतायें जिससे मेरे पिता को मोक्ष मिल जाये। तब देवर्षि ने कहा कि राजन तुम आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो और इस व्रत के पुण्य को अपने पिता के नाम दान कर दो इससे तुम्हारे पिता को मुक्ति मिल जायेगी। उसके बाद आश्विन कृष्ण एकादशी को इंद्रसेन ने नारद जी द्वारा बताई विधि के अनुसार ही एकादशी व्रत का पालन किया जिससे उनके पिता की आत्मा को शांति मिली और मृत्यु पर्यंत उन्हें भी मोक्ष की प्राप्ति हुई।
 
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