घर में सुख और शांति लाने के लिए इन तरीको से करें जया एकादशी व्रत
जया एकादशी का महत्व-
हमारे धर्म शास्त्रों में जया एकादशी को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है. शास्त्रों के अनुसार जया एकदशी बहुत ही पुण्यदायी और कल्याणकारी होती है. मान्यताओं के अनुसार जया एकादशी का उपवास करने से मनुष्य का जन्म बुरी योनि अर्थात भूत पिशाच की योनि में नहीं होता है. इसके अलावा जो भी व्यक्ति पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ जया एकादशी का व्रत करता है उसके सभी पापों का नाश होता है और घर में सुख-संपत्ति आती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जया एकादशी का व्रत करने से दुख, दरिद्रता और कष्टों से छुटकारा मिलता है
कब है जया एकादशी -
• हिन्दू पंचांग के मुताबिक़ हर साल माघ मॉस के शुक्ल पक्ष में जया एकादशी का त्यौहार मनाया जाता है.
• ग्रगोरियन कैलेंडर के अनुसार जया एकदशी हर वर्ष जनवरी या फरवरी महीने में पड़ती है.
जया एकदशी से जुडी महत्वपूर्ण बाते-
• हिन्दू धर्म में माघ मॉस के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली जया एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है.
• मान्यताओं के अनुसार जया एकदशी का व्रत करने से मनुष्य को ब्रह्म हत्यादि पापों से छुटकरा मिलता है और मृत्यु के पश्चात् मोक्ष की प्राप्ति होती है.
• जया एकदशी के प्रभाव से भूत, पिशाच आदि योनियों से भी मुक्ति मिलती है.
• शास्त्रों के अनुसार पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ जया एकादशी का व्रत करके श्री हरि विष्णु की पूजा करने से मनुष्य बुरी योनि से मुक्त हो जाता है.
• जया एकादशी का व्रत करने से यज्ञ, जप, दान आदि के सामान पुण्य प्राप्त होता है.
• पौराणिक मान्यताओं के अुनसार जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा के साथ जया एकादशी का व्रत और पूजन करता है वह हजार वर्षों तक स्वर्ग में निवास करता है.
जया एकादशी की पूजन विधि-
• जया एकदशी का व्रत करने के लिए ब्रह्म मुहूर्त ( सुबह 4 बजे) में उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत होकर स्नान करें.
• स्नान करने के पश्चात् शुद्ध वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु का ध्यान करें.
• अब पूरी श्रद्धा के साथ व्रत करने का संकल्प लें.
• अब अपने घर के मंदिर में एक लकड़ी की चौकी रखे. और इसके ऊपर थोड़ा सा गंगाजल छिड़ककर इसे शुद्ध कर ले.
• अब चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा की स्थापना करें.
• अब एक ताम्बे या पीतल के लोटे में गंगाजल लें ले. अब इसमें तिल, रोली और अक्षत मिलाएं..
• अब इस लोटे से थोड़ा सा जल लेकर चारों तरफ छिड़कें.
• अब भगवान् विष्णु के सामने इस लोटे से घट स्थापना करें.
• अब भगवान विष्णु के समक्ष घी का दीपक जलाएं और उन्हें पुष्प अर्पित करें.
• अब भगवान् विष्णु की आरती करें और पूरी श्रद्धा के साथ विष्णु सहस्नाम का पाठ करें.
• पूजा करने के पश्चात् भगवान् विष्णु को तिल का भोग लगाएं और भोग में तुलसी के पत्ते अवश्य डाले.
• जया एकदशी के दिन तिल का दान करना बहुत ही शुभ माना जाता है.
• संध्या काल में भगवान विष्णु की पूजा करने के पश्चात् फलाहार ग्रहण करें.
• जया एकादशी के अगले दिन अर्थात द्वादशी को सुबह किसी ब्राह्मण को भोजन करवाने के पश्चात् अपनी क्षमता अनुसार दान-दक्षिणा दें. इसके पश्चात् खुद भोजन ग्रहण कर व्रत का पारण करें.
जया एकादशी व्रत कथा
पद्म पुराण में वर्णित कथा के अुनसार देवराज इंद्र स्वर्ग में राज करते थे और अन्य सब देवगण सुखपूर्वक स्वर्ग में रहते थे. एक समय इंद्र अपनी इच्छानुसार नंदन वन में अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे और गंधर्व गान कर रहे थे. उन गंधर्वों में प्रसिद्ध पुष्पदंत तथा उसकी कन्या पुष्पवती और चित्रसेन तथा उसकी स्त्री मालिनी भी उपस्थित थे. साथ ही मालिनी का पुत्र पुष्पवान और उसका पुत्र माल्यवान भी उपस्थित थे.
पुष्पवती गंधर्व कन्या माल्यवान को देखकर उस पर मोहित हो गई और माल्यवान पर काम-बाण चलाने लगी. उसने अपने रूप लावण्य और हावभाव से माल्यवान को वश में कर लिया. वह पुष्पवती अत्यन्त सुंदर थी. अब वे इंद्र को प्रसन्न करने के लिए गान करने लगे परंतु परस्पर मोहित हो जाने के कारण उनका चित्त भ्रमित हो गया था.
इनके ठीक प्रकार न गाने तथा स्वर ताल ठीक नहीं होने से इंद्र इनके प्रेम को समझ गया और उन्होंने इसमें अपना अपमान समझ कर उनको शाप दे दिया. इंद्र ने कहा, "हे मूर्खों ! तुमने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया है, इसलिए तुम्हारा धिक्कार है. अब तुम दोनों स्त्री-पुरुष के रूप में मृत्यु लोक में जाकर पिशाच रूप धारण करो और अपने कर्म का फल भोगो."
इंद्र का ऐसा शाप सुनकर वे अत्यन्त दु:खी हुए और हिमालय पर्वत पर दु:खपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे. उन्हें गंध, रस तथा स्पर्श आदि का कुछ भी ज्ञान नहीं था. वहाँ उनको महान दु:ख मिल रहे थे. उन्हें एक क्षण के लिए भी निद्रा नहीं आती थी. उस जगह अत्यन्त शीत था, इससे उनके रोंगटे खड़े रहते और मारे शीत के दांत बजते रहते. एक दिन पिशाच ने अपनी स्त्री से कहा, "पिछले जन्म में हमने ऐसे कौन-से पाप किए थे, जिससे हमको यह दु:खदायी पिशाच योनि प्राप्त हुई. इस पिशाच योनि से तो नर्क के दु:ख सहना ही उत्तम है. अत: हमें अब किसी प्रकार का पाप नहीं करना चाहिए." इस प्रकार विचार करते हुए वे अपने दिन व्यतीत कर रहे थे.
दैव्ययोग से तभी माघ मास में शुक्ल पक्ष की जया नामक एकादशी आई. उस दिन उन्होंने कुछ भी भोजन नहीं किया और न कोई पाप कर्म ही किया. केवल फल-फूल खाकर ही दिन व्यतीत किया और सायंकाल के समय महान दु:ख से पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गए. उस समय सूर्य भगवान अस्त हो रहे थे. उस रात को अत्यन्त ठंड थी, इस कारण वे दोनों शीत के मारे अति दुखित होकर मृतक के समान आपस में चिपटे हुए पड़े रहे. उस रात्रि को उनको निद्रा भी नहीं आई.
जया एकादशी के उपवास और रात्रि के जागरण से दूसरे दिन प्रभात होते ही उनकी पिशाच योनि छूट गई. अत्यन्त सुंदर गंधर्व और अप्सरा की देह धारण कर सुंदर वस्त्राभूषणों से अलंकृत होकर उन्होंने स्वर्गलोक को प्रस्थान किया. उस समय आकाश में देवता उनकी स्तुति करते हुए पुष्पवर्षा करने लगे. स्वर्गलोक में जाकर इन दोनों ने देवराज इंद्र को प्रणाम किया. इंद्र इनको पहले रूप में देखकर अत्यन्त आश्चर्यचकित हुआ और पूछने लगा, "तुमने अपनी पिशाच योनि से किस तरह छुटकारा पाया, सो सब बतालाओ."
माल्यवान बोले, "हे देवेन्द्र ! भगवान विष्णु की कृपा और जया एकादशी के व्रत के प्रभाव से ही हमारी पिशाच देह छूटी है." तब इंद्र बोले, "हे माल्यवान! भगवान की कृपा और एकादशी का व्रत करने से न केवल तुम्हारी पिशाच योनि छूट गई, वरन् हम लोगों के भी वंदनीय हो गए क्योंकि विष्णु और शिव के भक्त हम लोगों के वंदनीय हैं, अत: आप धन्य है. अब आप पुष्पवती के साथ जाकर विहार करो."
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