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कजरी तीज व्रत | Kajri Teej Vrat on 12 Aug 2025 (Tuesday)

कजरी तीज का व्रत करने से होती है अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति

हिन्दू धर्म में कजरी तीज के पर्व को बहुत ही भक्ति और प्रेम के साथ मनाया जाता है. कजरी तीज का पर्व भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन मनाया जाता है. कजरी तीज के शुभ अवसर पर, महिलाएँ भगवान कृष्ण के सम्मान में गीत गाने के लिए इकट्ठा होती हैं और नीम की पवित्र पूजा करती हैं. spiritual,puja path,Kajari Teej 2021, Kajari Teej 2021 Date, Kajari Teej 2021 Puja, Importance Of Kajari Teej, Mata Parvati, Lord Shiva,Lifestyle and Relationship,Spirituality puja-path spiritual hindi, कजरी तीज 2021, Kajari Teej, Kajari Teej 2021, Kajari Teej Vrat, Kajari Teej Fast, Kajari Teej poojan vidhi, Satudi teej, Kajari Teej 2021 date, Kajari Teej kab hai, Kajari Teej significance, Kajari Teej 2021 timings, Mahadev, Mata Parvati, Hindu festivals 2021, Badi Teej, Kajali Teej, Kajari teej 2021 date, kajari teej shubh muhurat, puja vidhi, worship methods, kajari teej 2020 mein kab hai, kajari teej 2021, kajari teej, kajari teej 2021 date and time, kajari teej 2021 shubh muhurat, kajari teej ka shubh muhurat kya hai, kajari teej ka mahatva, kajari teej importance, kajari teej significance, कजरी तीज 2021 में कब है, कजरी तीज 2021, कजरी तीज, कजरी तीज 2021 तिथि, कजरी तीज 2021 तिथि और समय, कजरी तीज का शुभ मुहूर्त, कजरी तीज का शुभ मुहूर्त क्या है, कजरी तीज का शुभ मुहूर्त बताएं, कजरी तीज शुभ मुहूर्त, कजरी तीज का महत्व, कजरी तीज का महत्व इन हिंदी, कजरी तीज की कहानी

कजरी तीज समारोह-

कजरी तीज का पर्व महिलाओं द्वारा अत्यधिक उल्लास और उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस दिन सभी महिलाएं और कुंवारी कन्याएं नए नए वस्त्र पहनती हैं और सोलह शृंगार करती हैं. इस दिन बगीचे में झूले लगाए जाते हैं और महिलाएँ पूरे उत्साह के साथ शुभ गीत गाती हैं और नृत्य करती हैं. कजरी तीज के त्यौहार की पहचान बादलों के काले रंगों से भी की जाती है, जो बारिश से पहले मानसून के दौरान आकाश को घेर लेते हैं. इस दिन नीम के पेड़ की सामुदायिक पूजा की जाती है. इस दिन सभी महिलाएं पवित्र नीम के पेड़ के चारों ओर इकट्ठा होती हैं और विशिष्ट अनुष्ठान करती हैं.

बूंदी, राजस्थान में कजरी तीज

राजस्थान के बूंदी में कजरी तीज का उत्सव सबसे प्रसिद्ध है. बूंदी में, कजरी तीज उत्साह और खुशी के साथ मनाया जाता है. यहाँ इसे "भाद्रपद" के महीने के तीसरे दिन मनाया जाता है. कजरी तीज का त्यौहार एक सजी हुई पालकी में तीज देवी की बारात के साथ शुरू होता है. जुलूस सुरम्य नवल सागर से निकलता है. यह जुलुस सिर पर हाथियों, ऊंटों, कलाकारों, संगीतकारों, लोक नर्तकों और कलाकारों के साथ निकलता है. बूंदी में कजरी तीज समारोह को देखने के लिए आने वाले पर्यटकों के लिए विशेष रूप से कलाकारों और सांस्कृतिक कलाकारों द्वारा शानदार प्रदर्शन किए जाते हैं.

उत्तरप्रदेश और मध्य प्रदेश में कजरी तीज-

कजरी तीज का व्रत उत्तर और मध्य भारत के कुछ हिस्सों में अत्यधिक उत्साह के साथ मनाया जाता  है. मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में, विशेष रूप से वाराणसी और मिर्जापुर में महिलाएं तीज उत्साह के साथ मनाती हैं

कजरी तीज, हरतालिका तीज और हरियाली तीज में क्या अंतर है

पूरे साल में तीन तीज के  त्योहार मनाए जाते हैं. तीनों ही तीज पर भोलेनाथ और माता पार्वती की पूजा की जाती है. इन तीनों तीजो के नाम हरियाली तीज, कजली तीज और हरतालिका तीज है. तीज का व्रत सुहागिन महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति और अपने पति की लंबी आयु के लिए करती हैं. यह तीनों ही व्रत कुंवारी कन्याएं भी अच्छे पति की प्राप्ति के लिए करती हैं. इन तीनो ही तीजो में बहुत अंतर है. आज हम आपको हरियाली तीज, कजरी तीज और हरतालिका तीज के बीच का अंतर बताने जा रहे हैं

कजरी तीज का महत्व

कजरी तीज का पर्व भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन मनाया जाता है. इस तीज को कजरी तीज, सातुड़ी तीज और भादो तीज भी कहा जाता है. कजरी तीज का व्रत सभी महिलाएं अखंड सौभाग्य प्राप्त करने के लिए करती हैं. कुंवारी कन्या भी मनचाहा जीवनसाथी प्राप्त करने के लिए कजरी तीज का व्रत करती हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मध्य भारत में कजरी नाम का एक वन मौजूद था. वहां पर रहने वाले लोग कजली के नाम से बहुत सारे लोक गीत गाया करते थे. एक बार वहां के राजा मृत्यु को प्राप्त हो गए. जिसके पश्चात उस राज्य की रानी भी राजा के साथ ही सती होकर अपने प्राण त्याग दिए. इस घटना के बाद वहां के लोग बहुत ही दुखी रहने लगे. तब से वहां पर कजरी के गीत पति और पत्नी के प्रेम से जोड़कर गाए जाने लगे. कजरी तीज के पर्व पर गाय की पूजा का खास महत्व होता है. संध्या काल में व्रत तोड़ने से पहले महिलाएं गायों को सत्तू के साथ चना और गुड़ खिलाते हैं

पूजन विधि

कजरी तीज की पूजा करने के लिए सबसे पहले अपने घर में पूजा घर में पूर्व दिशा की ओर मिट्टी और गोबर से तालाब की तरह एक छोटा सा घेरा बना ले. अब इस घेरे के अंदर कच्चा दूध और जल डालें. अब इस घेरे के किनारे एक दीपक प्रज्वलित करके रख दें. अब एक थाली में केला, सेब, सत्तू, रोली, मौली, अक्षत आदि रख लें. अब इस घेरे के किनारे नीम की एक डाल तोड़कर लगा दे. अब इस नीम की डाल पर लाल चुनरी चढ़ाएं. और पूजा करें. संध्या काल में चंद्रमा को जल अर्पित करने के बाद अपने पति के हाथ से जल ग्रहण करके व्रत तोड़े

कथा

प्राचीन काल में एक गांव में एक बहुत ही गरीब ब्राह्मण रहा करता था. ब्राह्मण की पत्नी ने भाद्रपद माह में आने वाली कजरी तीज का व्रत किया. ब्राम्हण की पत्नी ब्राम्हण से कहा कि आज मेरा कजरी तीज का व्रत है, पूजा के लिए थोड़ा सा चने का सत्तू ले आओ. ब्राह्मण ने कहा मैं सत्तू कहां से लाऊं, तब ब्राम्हण की पत्नी ने कहा कि कहीं से भी मुझे थोड़ा सा सत्तू ला कर दो. चाहे तुम्हें इस के लिए चोरी ही क्यों करनी पड़े. रात्रि काल में ब्राम्हण अपने घर से बाहर निकल कर साहूकार की दुकान में चुपके से घुस गया. दुकान में जाकर ब्राह्मण ने चने की दाल, शक्कर तोल कर सवा किलो सत्तू बना लिया और चुपचाप घर जाने लगा

आवाज सुनकर दुकान में मौजूद नौकरों की नींद खुल गई और वो जोर-जोर से चिल्लाने लगे. आवाज सुनकर साहूकार आया और ब्राह्मण को जाते हुए पकड़ लिया. तब ब्राह्मण ने कहा मैं चोर नहीं हूं, मैं एक बहुत ही गरीब ब्राम्हण हूं. आज मेरी पत्नी ने कजरी तीज का व्रत किया है. इसलिए मैंने सिर्फ सत्तू ही लिया है. साहूकार ने ब्राह्मण की तलाशी ली. उसके पास सत्तू के अलावा और कुछ भी नहीं मिला. चांद निकल आया था और ब्राम्हणी अपने पति का इंतजार कर रही थी. ब्राह्मण की बात सुनने के बाद साहूकार ने कहा तुम्हारी पत्नी को आज से मैं अपनी बहन मानता हूं. ऐसा कह कर साहूकार ने ब्राह्मण को सत्तू, गहने, रुपए, मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर विदा किया. ब्राह्मण ने सभी चीजें लाकर अपनी पत्नी को दी और उसकी पत्नी ने खुशी-खुशी पूरी श्रद्धा के साथ कजरी माता की पूजा की. इसके पश्चात ब्राह्मणों के दिन बदल गए उसके घर में धन-संपत्ति बरसने लगे.


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