जानिए क्या है कालाष्टमी व्रत की महिमा और पूजन विधि
हमारे पुराणों में बताया गया है कि कालाष्टमी के दिन काल भैरव का जन्म हुआ था. इसलिए इस दिन भैरव जयंती या कालाष्टमी मनाई जाती है. काल भैरव को भगवान शिव का स्वरूप माना जाता है. काल भैरव शिव का प्रचंड रूप है. कालाष्टमी के दिन मां दुर्गा की पूजा और व्रत करने का भी नियम माना गया है. हर महीने में पड़ने वाली कृष्णपक्ष अष्टमी के दिन कालाष्टमी व्रत किया जाता है. आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से कालाष्टमी पूजन विधि और व्रत कथा के बारे में बताने जा रहे हैं.
व्रत और पूजन विधि :-
नारद पुराण में बताया गया है कि कालाष्टमी के दिन काल भैरव के साथ साथ मां दुर्गा की भी उपासना करनी चाहिए.
कालाष्टमी के दिन सुबह प्रातः काल जल्दी उठ कर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प करें.
कालाष्टमी के दिन रात के समय पूजा करने का नियम है. काल भैरव की पूजा करने के बाद उन्हें जल अर्पित करें. और भैरव कथा का पाठ करें.
कालभैरव को शिव का रूप भी माना जाता है इसलिए इस दिन भगवान शिव पार्वती की पूजा करने का भी नियम है.
काल भैरव का वाहन काले कुत्ते को माना गया है. इसलिए पूजा संपन्न करने के बाद काले कुत्ते को मीठी रोटियां खिलाएं.
हमारे धर्म पुराणों के अनुसार कालाष्टमी के दिन पवित्र नदी में स्नान और पितरो का तर्पण करने का भी नियम बताया गया है.
भैरव भगवान की पूजा धूप, दीप, काले तिल, उड़द की दाल और सरसों के तेल से करें. काल भैरव की पूजा करने के बाद विधिवत आरती करें.
कालाष्टमी व्रत की मान्यता :–
मान्यताओं के अनुसार काल भैरव की पूजा करने से भूत पिशाच और काल से छुटकारा मिलता है.
अगर आप सच्चे मन से काल भैरव की पूजा करते हैं तो आपके रुके हुए काम सफल हो जाते हैं.
शास्त्रों के अनुसार कालाष्टमी के दिन काल भैरव की पूजा करने से कुंडली के सभी ग्रह नक्षत्र और ग्रहों का बुरा असर खत्म हो जाता है.
कालाष्टमी को काल भैरव जयंती के रूप में भी मनाया जाता है. काल भैरव की पूजा करने से जीवन की सभी समस्याओं के साथ-साथ परेशानी, डर, बीमारी दूर हो जाते हैं.
काल भैरव की पूजा करने से सभी प्रकार के भय नष्ट हो जाते हैं और जीवन में खुशहाली आती है.
जो लोग कालाष्टमी के दिन काल भैरव की पूजा करते हैं उनके आसपास नकारात्मक शक्तियां नहीं आती हैं और उनके जीवन में खुशियां, शांति और समृद्धि आती है.
कालाष्टमी व्रत कथा :-
मान्यताओं के अनुसार एक बार ब्रह्मा विष्णु और महेश में इस बात पर बहस छिड़ गई कि तीनों में से सबसे श्रेष्ठ कौन है.
बहस इतनी ज्यादा बढ़ गई कि देवी देवताओं को बुलाकर एक बैठक की गई. यहां सभी लोगों से यह सवाल पूछा गया कि ब्रह्मा विष्णु और महेश में सबसे ज्यादा श्रेष्ठ कौन है.
सभी देवताओं ने विचार-विमर्श करके इस बात का उत्तर दिया जिसका समर्थन भगवान शंकर और विष्णु ने किया, पर ब्रह्मा जी को देवताओं की बात पसंद नहीं आई और उन्होंने भोलेनाथ को कुछ ऐसे अपशब्द कह दिए जिसकी वजह से उन्हें क्रोध आ गया.
भोलेनाथ ने ब्रह्मा जी की कही गई बात को अपना अपमान समझा. शिव जी के क्रोध में आने पर उनके अंदर से भैरव का जन्म हुआ.
भैरव अवतार का वाहन काला कुत्ता था. जिसके एक हाथ में छड़ी थी. शिवजी के इस रूप को महाकालेश्वर के नाम से भी जाना जाता है.
हाथ में छड़ी होने के कारण इनको दण्डाधिपति भी कहते हैं. शिव जी के भैरव अवतार को देखकर सभी देवी देवता डर गए.
भैरव ने क्रोध में जलते हुए ब्रह्मा जी के पांच मुख्य में से एक मुख को काट दिया. इसीलिए तबसे ब्रह्मा जी के पास सिर्फ चार मुख है.
ब्रह्मा जी का सर काटने के कारण शिवजी को ब्रह्म हत्या का पाप लगा. तब ब्रह्माजी ने काल भैरव से क्षमा मांगी और उनसे अपने असली रूप में आने की प्रार्थना की.
तब शिवजी अपने असली रूप में आ गए. काल भैरव को ब्रम्हहत्या की वजह से दंड मिला. इसलिए उन्हें बहुत समय तक एक भिखारी के रूप में जीवन बिताना पड़ा.
इस प्रकार कई सालों बाद वाराणसी में इनका दंड समाप्त हुआ. इसलिए इन्हें दंड पानी भी कहते हैं. काल भैरव जयंती को पाप की सजा मिलने वाला दिन भी माना जाता है.
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