क्या है कल्कि अवतार
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, कल्कि अवतार भगवान् विष्णु जी के दसवें अवतार होंगे। ऐसा माना जाता है की कल्कि अवतार इस दुनिया से पापियों का सर्वनाश और पृथ्वी को कष्ट मुक्त कराने के लिए होगा। कल्कि द्वादशी भाद्रपद के महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है| कल्कि नाम शब्द "काल" से आया है| यह अवतार दुष्टों के युग को ख़त्म कर सतयुग की और ले जाने के लिए बना है| हिन्दू पुराण और शास्त्रों के अनुसार कल्कि अवतार सफ़ेद घोड़े पर हाथ में तलवार लिए आएंगे|
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कल्कि अवतार का महत्वता
कल्कि भगवान् विष्णु के दसवें तथा आखिरी अवतार हैं| कल्कि अवतार ही कलियुग का अंत कर सतयुग की शुरुआत करेंगे| इसीलिए मनुष्य इनकी पूजा कर इनसे आशीर्वाद मांगते तथा अपने द्वारा किये पापो की क्षमा याचना करतें है| एक सुखद और शांत जीवन की कामना करते है| कल्कि अवतार एक बहुत ही भयंकर स्वरुप है भगवान विष्णु के, जो मानवजाति का कलियुग के साथ अंत करदेगा और सतयुग प्रारम्भ होजाएगा| श्रद्धालु इस दिन व्रत उपवास कर अपने अंत को शान्ति पूर्वक और पीड़ारहित होने की कामना करतें हैं| इस दिन लोग भगवान् कल्कि से क्षमा और मोक्ष की कामना करतें हैं| कोई नहीं जानता की अंत समय कब आजाए और भगवान् कल्कि किस रूप में पकट हो, पर अंत समय निकट होने के कारण लोग कल्कि जी की पूजा अर्चना कर उनका आशीर्वाद लेते है|
मान्यताएं
भगवान् विष्णु ही परम परमेश्वर हैं| हिन्दू शास्त्रों के अनुसार चार युगो का वर्णन है, और हर युग का अपना एक महत्वता और स्वरुप है| कल्कि अवतार भगवान् विष्णु के पुत्र के रूप में जन्मेंगे| और ये जन्म पुराणों के अनुसार यह अवतार 64 कलाओं से युक्त होगा। पुराणों के अनुसार उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद जिले के शंभल नामक स्थान में होगा| इनके धर्म गुरु याग्वल्क्य होंगे| भगवान् विष्णु जी के छटे अवतार परशुराम अजर अमर है, और वह कल्कि अवतार होने की ही प्रतीक्षा कर रहे हैं| परशुराम ही भगवान् कल्कि को युद्ध तकनीकियां सिखाएंगे अथवा सैन्य विज्ञानं सिखाएंगे| गुरु परशुराम कलिकी अवतार को घोर तपस्या भी सिखाएंगे जिस से भगवान् कल्कि, अस्त्र शस्त्र पा सकेंगे|
कल्कि द्वादशी पूजा विधि
इस दिन सूर्यौदय के पूर्व उठ पानी में गंगाजल मिला कर स्नान करलें|
भगवान् सूर्य को जल अर्पित करें|
भगवान् विष्णु के मंदिर जाएँ या घर में कलश पर भगवान् विष्णु की स्थापना करें|
भगवान् विष्णु जी को फल फूल मिठाईयां अर्पित करें|
उनके आगे घी या तिल के तेल का दीपक जलाएं|
भगवान् विष्णु स्तोत्रम का पाठ करें या ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का क्षमता अनुसार जाप करें|
यह व्रत एक दिन पहले परिवर्तिनी एकादशी से शुरू हो त्रयोदशी तक रखा जाता है| परन्तु आप अपनी क्षमता और स्वस्थ्य को ध्यान में रखते हुए फलाहार व्रत कर सकते है।
अगले दिन भगवान् की मूर्ति मंदिर में दान करदे या मूर्ति विसर्जन करें|