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अकाल बोधन/कल्पारम्भा | Akaal Bodhan on 28 Sep 2025 (Sunday)

 
अकाल बोधन/कल्पारम्भा षष्टी तिथि को मनाया जाता है।  दुर्गा पूजा की शुरुआत आश्विन मास में शुक्ल पक्ष से की जाती है।  इसी दिन सबसे पहले माँ के मुख से पर्दा हटा के उनके दर्शन करे जाते है।  महा षष्टी तिथि के दिन माँ के पट खुल जाते है।  दुर्गा पूजा का आयोजन तीन दिन तक किया जाता है, महासप्तमी, महाष्टमी, महानवमी।  पूजा में मन्त्र,आरती, जाप का अधिक महत्व है।  दुर्गा पूजा को दुर्गोत्सव के नाम से भी जाना जाता है।  यह त्यौहार पांच दिन तक मनाये जाने वाला त्यौहार है जिसे पंचमी या षष्टी से शुरू कर विजयदशमी तक मनाया जाता है।  यह पर्व बिल्वा निमंत्रण से शुरू हो जाता है।  कल्पारम्भा पूजा नवपत्रिका पूजा से एक दिन पहले मनाये जाने वाला पर्व है। 

कल्पारम्भा का पूजन विधान सबसे शुभ सुबह के समय माना जाता है।  कल्पारम्भ के दिन कलश स्थापना कर, बिल्वा निमंतरण के ज़रिय माँ दुर्गा को आमंत्रित किया जाता है, साथ ही विधि विधान से दुर्गा पूजा करने का संकल्प लिया जाता है। कलारम्भ की विधि घटस्थापना के समान ही है। 

कल्पारम्भा के बाद बौधों मनाये जाने की प्रक्रिया है।  बौधों का अर्थ है प्रबोधन।  हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार दाक्षियना के दौरान समस्त देवी देवता ६ महीनो तक विश्राम में होते है।  इसीलिए देवी माँ की पूजा से पहले उन्हें जगाने की प्रक्रिया है। 

बौधों की प्रक्रिया सबसे पहले भगवान् राम के द्वारा की गयी थी।  भगवान् राम ने दस सर वाले दैत्य रावण का वध करने से पहले माँ दुर्गा की उपासना की थी। 

रामायण में माता सीता का हरण दैत्य रावण ने किया था और माता सीता को बचाने के लिए भगवान राम लंका गए थे। 

रावण के साथ युद्ध प्रारम्भ करने से पहले भगवान् राम ने माता दुर्गा की कृपा पाना चाहते थे ।  तभी भगवान राम को यह पता चला की माँ दुर्गा 108 नील कमल से प्रसन्न होती है और सभी मनोकामनाओ को पूर्ण करतीं हैं।  पूरे ब्रह्माण्ड में घूमने के बाद भगवान् राम ने 107 नीलकमल एकत्रित करे और पूर्ण प्रयास के बाद जब भगवान् राम को एक और नीलकमल नहीं मिला तो भगवान् ने निश्चय किया कि वे अपनी नीलकमल सी खूबसूरत आँखों में से एक आँख माँ दुर्गा को अर्पित करेंगे।  उनकी निष्ठा व् भक्ति भाव से प्रसन्न होकर माँ भगवान राम के समक्ष प्रकट हुई और उन्हें वरदान व् विजयी आशीर्वाद भी दिया गया।  युद्ध कि शुरुआत सप्तमी तिथि से हुई और रावण का वध सन्धिक्षण के दौरान हुआ परन्तु दशहरा विजयदशमी के दिन मनाया जाता है।  सन्धिक्षण व् पूजा का समय में अंतर होने के कारन दुर्गा पूजा को अकाल बोधन के नाम से भी जाना जाता है। 
 

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