Indian Festivals

जानिए क्या है कामदा एकादशी की व्रत कथा और पूजन विधि on 19 Apr 2024 (Friday)

 

कामदा एकादशी विष्णु भगवान का बहुत ही उत्तम और मनोकामना पूर्ण करने वाला व्रत है। इस व्रत को करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। इसलिए इसे फलदा एकादशी भी कहते हैं। कामदा एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। कामदा एकादशी मनुष्य के जीवन के सभी कष्टों को दूर करने वाली और मन वांछित फल देने वाली कहीं जाती है। कामदा एकादशी का व्रत चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन किया जाता है।

एक बार पांडू पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से प्रश्न किया कि भगवान यह कामदा एकादशी क्या है। कृपया इसकी महानता का वर्णन करें। तब भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा,  जो भी मनुष्य कामदा एकादशी का व्रत करता है उसके जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और वह मृत्यु के पश्चात स्वर्ग को प्राप्त होता है। इसके अलावा जो लोग पुत्र की कामना रखते हैं उनके लिए भी यह व्रत बहुत ही फलदाई है।

कामदा एकदशी पूजन विधि-
1- कामदा एकादशी का व्रत करने के लिए दशमी के दिन दोपहर में जौ,गेहूं और मूंग की दाल का भोजन करके भगवान विष्णु का ध्यान करें। इसके पश्चात दूसरे दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके नीचे दिए गए मंत्र का जाप  करके व्रत करने का संकल्प लें ।

2- हमारे शास्त्रों के अनुसार कामदा एकादशी का व्रत निर्जला किया जाता है, पर यदि आप सक्षम नहीं हैं तो व्रत में फलाहार कर सकते हैं। व्रत का संकल्प लेने के बाद सफेद स्वच्छ वस्त्र धारण करके विष्णु भगवान की तस्वीर स्थापित करें।

3- अब विष्णु भगवान की तस्वीर को पीले गेंदे के फूल, आम, खरबूजा, तेल, दूध और कुछ मीठा अर्पित करें। इसके पश्चात मन में भगवान् विष्णु का ध्यान करते हुए नीचे दिए गए मंत्र का जाप करें।
ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः

4- अब विधिवत हवन करें। यदि आपको हवन करने की सही विधि पता नहीं है तो किसी पंडित के द्वारा हवन संपन्न करवाएं। इसके पश्चात विष्णु  सहस्त्रनाम का पाठ करें।  पूजन के बाद  भजन, कीर्तन  करके भगवान की श्रद्धा पूर्वक परिक्रमा  करें और उन्हें प्रणाम करें।

इसी प्रकार  पूरा दिन सात्विक आचार विचार  ग्रहण करके भगवान विष्णु की सेवा और भक्ति करें।  अगले दिन  सुबह ब्रम्हमुहूर्त ( सुबह चार बजे ) में स्नान करने के बाद  विष्णु भगवान का पूजन करें। पूजा करने के बाद कामदा एकादशी की कथा सुने। कथा सुनने के पश्चात् ब्राम्हण को सात्विक भोजन करवाकर अपनी क्षमता अनुसार दान दें।
 
कामदा एकादशी व्रत कथा –
 
प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहाँ पर अनेक ऐश्वर्यों से युक्त पुण्डरीक नाम का एक राजा राज्य करता था। भोगीपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर तथा गन्धर्व वास करते थे। उनमें से एक जगह ललिता और ललित नाम के दो स्त्रीपुरुष अत्यंत वैभवशाली घर में निवास करते थे। उन दोनों में अत्यंत स्नेह था, यहाँ तक कि अलगअलग हो जाने पर दोनों व्याकुल हो जाते थे।एक समय पुण्डरीक की सभा में अन्य गंधर्वों सहित ललित भी गान कर रहा था। गातेगाते उसको अपनी प्रिय ललिता का ध्यान आ गया और उसका स्वर भंग होने के कारण गाने का स्वरूप बिगड़ गया। ललित के मन के भाव जानकर कार्कोट नामक नाग ने पद भंग होने का कारण राजा से कह दिया। तब पुण्डरीक ने क्रोधपूर्वक कहा कि तू मेरे सामने गाता हुआ अपनी स्त्री का स्मरण कर रहा है। अत: तू कच्चा माँस और मनुष्यों को खाने वाला राक्षस बनकर अपने किए कर्म का फल भोग।
 
पुण्डरीक के श्राप से ललित उसी क्षण महाकाय विशाल राक्षस हो गया। उसका मुख अत्यंत भयंकर, नेत्र सूर्य-चंद्रमा की तरह प्रदीप्त तथा मुख से अग्नि निकलने लगी। उसकी नाक पर्वत की कंदरा के समान विशाल हो गई और गर्दन पर्वत के समान लगने लगी। सिर के बाल पर्वतों पर खड़े वृक्षों के समान लगने लगे तथा भुजाएँ अत्यंत लंबी हो गईं। कुल मिलाकर उसका शरीर आठ योजन के विस्तार में हो गया। इस प्रकार राक्षस होकर वह अनेक प्रकार के दुःख भोगने लगा।जब उसकी प्रियतमा ललिता को यह वृत्तान्त मालूम हुआ तो उसे अत्यंत खेद हुआ और वह अपने पति के उद्धार का यत्न सोचने लगी। वह राक्षस अनेक प्रकार के घोर दुःख सहता हुआ घने वनों में रहने लगा। उसकी स्त्री उसके पीछे-पीछे जाती और विलाप करती रहती। एक बार ललिता अपने पति के पीछे घूमती-घूमती विन्ध्याचल पर्वत पर पहुँच गई, जहाँ पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम था। ललिता शीघ्र ही श्रृंगी ऋषि के आश्रम में गई और वहाँ जाकर विनीत भाव से प्रार्थना करने लगी। उसे देखकर श्रृंगी ऋषि बोले कि हे सुभगे! तुम कौन हो और यहाँ किस लिए आई हो? ललिता बोली कि हे मुने! मेरा नाम ललिता है। मेरा पति राजा पुण्डरीक के श्राप से विशालकाय राक्षस हो गया है। इसका मुझको महान दुःख है। उसके उद्धार का कोई उपाय बतलाइए। श्रृंगी ऋषि बोले हे गंधर्व कन्या! अब चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसका नाम कामदा एकादशी है। इसका व्रत करने से मनुष्य के सब कार्य सिद्ध होते हैं। यदि तू कामदा एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य का फल अपने पति को दे तो वह शीघ्र ही राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा और राजा का श्राप भी अवश्यमेव शांत हो जाएगा।
 
मुनि के ऐसे वचन सुनकर ललिता ने चैत्र शुक्ल एकादशी आने पर उसका व्रत किया और द्वादशी को ब्राह्मणों के सामने अपने व्रत का फल अपने पति को देती हुई भगवान से इस प्रकार प्रार्थना करने लगी - हे प्रभो! मैंने जो यह व्रत किया है इसका फल मेरे पतिदेव को प्राप्त हो जाए जिससे वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाए। एकादशी का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हुआ। फिर अनेक सुंदर वस्त्राभूषणों से युक्त होकर ललिता के साथ विहार करने लगा। उसके पश्चात वे दोनों विमान में बैठकर स्वर्गलोक को चले गए।
 
वशिष्ठ मुनि कहने लगे कि हे राजन्! इस व्रत को विधिपूर्वक करने से समस्त पाप नाश हो जाते हैं तथा राक्षस आदि की योनि भी छूट जाती है। संसार में इसके बराबर कोई और दूसरा व्रत नहीं है। इसकी कथा पढ़ने या सुनने से बाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।