कर्क संक्रांति के दिन अवश्य करें भगवान विष्णु की पूजा
क्या है कर्क संक्रांति-
जब सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करते हैं तब कर्क संक्रांति का पर्व मनाया जाता है. कर्क संक्रांति के दिन सूर्य देव के साथ ही समस्त देवता गण निद्रा में लीन हो जाते हैं. समस्त देवताओं और भगवान विष्णु के निंद्रा में लीन होने के कारण भगवान भोलेनाथ सृष्टि का कार्यभार संभालते हैं. इसीलिए सावन के महीने में भोलेनाथ की पूजा को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है.
कर्क संक्रांति का महत्व-
कर्क संक्रांति के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व होता है. कर्क संक्रांति के दिन से आरंभ होकर एकादशी के दिन तक लगातार भगवान विष्णु की पूजा जारी रहती है. कर्क संक्रांति के दिन से भगवान विष्णु निद्रा में लीन हो जाते हैं. इसीलिए इसे देवशयनी एकादशी भी कहते हैं. इस दिन से सभी देवता और भगवान विष्णु 4 महीनों के लिए शयन करने चले जाते हैं. कर्क संक्रांति के दिन वस्त्र, खाद्य सामग्री दान करने को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. कर्क संक्रांति को वर्षा ऋतु के आरंभ के रूप में भी जाना जाता है. कर्क संक्रांति से आरंभ होने वाला दक्षिणायन मकर संक्रांति के दिन खत्म होता है. जिसके बाद उत्तरायण का प्रारंभ होता है. दक्षिणायन के चार मास में भोलेनाथ और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. इसी बीच सभी लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पूजा-पाठ और पिंडदान भी करते हैं. कर्क संक्रांति को किसी भी मंगल या शुभ कार्य के लिए अच्छा नहीं माना जाता है. कर्क संक्रांति से लेकर आने वाले 4 महीनों तक किए गए किसी भी शुभ कार्य को देवताओं का आशीर्वाद नहीं मिलता है.
कर्क संक्रांति से जुड़ी विशेष बातें-
सूर्यदेव जब किसी राशि का संक्रमण करते हैं तो उसे संक्रांति कहा जाता है. सूर्यदेव हर राशि में संक्रमण करते हैं, इसीलिए पूरे साल में 12 संक्रांति या मनाई जाती है. इन सभी संक्रांतिओं में मकर संक्रांति और कर्क संक्रांति का विशेष महत्व माना गया है. जिस प्रकार मकर संक्रांति से अग्नि तत्व में बढ़ोतरी होती है और चारों ओर सकारात्मक और शुभ ऊर्जा फैलने लगती है, उसी प्रकार कर्क संक्रांति से जल तत्व की अधिकता बढ़ जाती है. जिसकी वजह से वातावरण में चारों तरफ नकारात्मक ऊर्जा फैलने लगती है. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो सूर्य के उत्तरायण होने से सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है, वही सूर्यदेव के दक्षिणायन होने से नकारात्मक शक्तियां असरकारक हो जाती हैं और देवताओं की शक्तियां क्षीण पड़ने लगती हैं. यही कारण है कि दक्षिणायन से आरंभ संक्रांति के दिन से चातुर्मास का प्रारंभ हो जाता है और सभी प्रकार के शुभ कार्य बंद हो जाते हैं. इन 4 महीनों में लोग सूर्योदय के समय पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और सूर्य देव की पूजा करते हैं. इन 4 महीनों में भगवान शिव और भगवान विष्णु के साथ सूर्य देवता की पूजा का विशेष महत्व होता है. कर्क संक्रांति के दिन से लेकर 4 महीनों तक विष्णु सहस्त्रनाम का जाप किया जाता है. कर्क संक्रांति के दिन से दान पूजन और सभी प्रकार के पुण्य कर्म शुरू हो जाते हैं. शास्त्रों के अनुसार इन 4 महीनों में किसी भी नए कार्य को आरंभ नहीं करना चाहिए.
क्या वास्तव में 4 महीनों के लिए निद्रा में लीन हो जाते हैं समस्त देवता गण-
पारंपरिक धारणाओं के अनुसार पूरी सृष्टि का कार्यभार संभालते हुए भगवान विष्णु अत्यंत थक जाते हैं. तब माता लक्ष्मी भगवान विष्णु से यह प्रार्थना करती हैं कि कुछ समय के लिए उन्हें सृष्टि के कार्यभार की चिंता भोलेनाथ को सौंप देनी चाहिए और विश्राम करना चाहिए. माता लक्ष्मी की बात मान कर भगवान् विष्णु चार महीनो के लिए निंद्रा में लीन हो जाते हैं. तब कैलाश पर्वत से महादेव पृथ्वी लोक पर आते हैं और 4 महीनों तक सृष्टि का कार्यभार संभालते हैं. जब 4 महीने पूर्ण हो जाते हैं तब भोलेनाथ कैलाश वापस लौट जाते हैं. यह एकादशी का दिन होता है. जिसे देवउठनी एकादशी या देव प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है. देवउठनी एकादशी के दिन हरिहर मिलन होता है. इसी दिन भगवान विष्णु और भोलेनाथ अपना कार्यभार एक बार फिर से बदलते हैं. भगवान शिव ने गृहस्थ होते हुए भी सन्यास धारण किया हुआ है, इसलिए जब वह सृष्टि का कार्यभार संभालते हैं तब किसी भी प्रकार के मंगल कार्य और विवाह आदि को वर्जित माना जाता है, पर इन 4 महीनों में सभी प्रकार के पूजन और अन्य त्यौहार बहुत धूमधाम से मनाए जाते हैं. वास्तव में देवताओं के शयन काल को प्रतीकात्मक माना जाता है. इन 4 महीनों में कुछ शुभ सितारे भी क्षीण होते हैं. जिनके प्रबल होने पर मंगल कार्यों में शुभ आशीर्वाद प्राप्त होते हैं. इसलिए इन 4 महीनों में सिर्फ पुण्य प्राप्त करने वाले कार्य और देव पूजन को ही महत्वपूर्ण माना गया है.