Indian Festivals

कुर्मा द्वादशी | Kurma Dwadashi on 22 Jan 2024 (Monday)

कुर्मा द्वादशी
महत्व
आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम ज़िले में स्थित ‘श्री कूर्ममकूर्मनाथ स्वामी मंदिर’ भगवान् विष्णु के कूर्म अवतार को ही पूरी तरह से समर्पित है और यह मंदिर प्रमुख मंदिरों में से एक माना जाता है। कुर्मा द्वादशी के दिन दूर-दूर से भारी संख्या में भक्तजन यहां भगवान् कूर्म के दर्शन करने के लिये आते हैं.
कुर्मा  द्वादशी जैसा कि नाम से ही इस बात का आभास होता है कि यह भगवान् विष्णु के ‘कूर्म’ अथवा ‘कच्छप’ अवतार को पूरी तरह से समर्पित है। ऐसी मान्यता भी है कि इस दिन भक्त लोग पूरी श्रद्धा के साथ यदि व्रत करते हैं तो उन्हें सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है। ऐसा भी माना जाता है कि इस व्रत को रखने से मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।
क्या ना करें 
व्रत के दौरान किसी भी प्रकार की झूठी वस्तु का सेवन ना करें।
बालों में तेल ना लगायें
क्या करें
भगवान विष्णु का ध्यान करें
घर का वातावरण शांतिमय बनाये रखे
स्वच्छता का पालन करें
 
मान्याताएं -
 
यह विशेष व्रत त्यौहार भगवान् विष्णु के अवतार अर्थात् भगवान कूर्म की पूजा के लिए  पूरी तरह से समर्पित है। यह हिंदू महीने मे 'पौष' के बारहवें दिन बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह व्रत बहुत ही फलदायी होता है । दसवें दिन से यह व्रत प्रक्रिया शुरू होती है।  विधि पूर्वक व्रत पालन करने से विशेष फल प्राप्त कर सकते है। इस शुभ दिन व्रत रखने वाला भक्त अपने सभी पापों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है। द्वाद्शी पर व्रत तोड़ा जा सकता है और यह व्रत का समापन माना जाता है।
 
पूजा विधि और व्रत -
कूर्म द्वादशी व्रत के नियमों का शुभारम्भ दशमी तिथि से ही हो जाता है।
इस दिन भक्त को सबसे पहले प्रातःकाल स्नानादि करके स्वच्छ वस्रत्रों का धारण करना चाहिये।
इसके बाद पूरे दिन सात्विक आचरण का पालन करना चाहिए। स्वयं को किसी भी प्रकार के मास मदिरा पीने से दूर रखना चाहिये ।
उसके उपरान्त एकादशी को सुबह जल्दी उठकर स्नान-ध्यान कर पूरे दिन अन्न-जल ग्रहण किये बिना ही व्रत रखना चाहिए।
यदि आप ऐसा नहीं कर सकते हैं तो जल और फल को जरूरत अनुसार ग्रहण कर सकते हैं।
अगले दिन अर्थात् कूर्म द्वादशी के दिन भगवान् कूर्म का पूजन करने का विधान है।
इसके बाद प्रसाद ग्रहण करें और व्रत का पालन करें।
इस दिन मंदिरों में भी विशेष तौर पर पूजा-अनुष्ठान और अभिषेक आदि किया जाता है।
भक्तजन मंदिर जाकर भगवान् विष्णु और उनके कूर्म अवतार के दर्शन करते हैं।
श्लोकों और मन्त्रों का जाप करने से विशेष फल मिलने की संभावना होती है।
 
अंत में  - 
यदि आप अपने जीवन में और अधिक सुख-स्मृद्धि का वास चाहते हैं तो यह व्रत आपके लिये काफी लाभदायी हो सकता है।
कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, देवराज इंद्र ने एक बार अपनी शक्ति और ऐश्वर्य के अहंकारवश ऋषि दुर्वासा द्वारा दी गई बहुमूल्य माला का निरादर कर दिया. इस बात से कुपित हो ऋषि दुर्वासा ने उन्हें शाप दे दिया, जिसके कारण देवताओं ने अपना बल, तेज, और ऐश्वर्य सब कुछ खो दिया और अत्यंत निर्बल हो गए. ऐसे में असुरों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया और उन्हें हराकर दैत्यराज बलि ने स्वर्ग पर कब्जा जमा लिया. तीनों लोकों में राजा बलि का राज स्थापित हो गया. इसके बाद सभी देवता भगवान् विष्णु के पास जाते हैं और उनसे मदद मांगते हैं. इसके बाद भगवान् विष्णु ने उन्हें समुद्र-मंथन कर अमृत प्राप्त करने और उसका पान कर पुनः अपनी खोई शक्तियाँ अर्जित करने का सुझाव दिया. किन्तु, यह कार्य इतना सरल नहीं था. देवता अत्यंत निर्बल हो चुके थे, अतः समुद्र-मंथन करना उनके सामर्थ्य की बात नहीं थी. इस समस्या का समाधान भी भगवान् विष्णु ने ही बताया. उन्होंने देवताओं से कहा कि वे जाकर असुरों को अमृत एवं उससे प्राप्त होने वाले अमरत्व के विषय में बताएं और उन्हें समुद्र-मंथन करने के लिए मना लें. इसक बाद दोनों पक्ष मिलकर समुद्र मंथन करें और उससे प्राप्त होने वाली मूल्यवान निधियों को आपस में बांट लें.
जब देवताओं ने यह बात असुरों को बताई तो पहले तो उन्होंने मना कर दिया और सोचने लगे कि यदि हम स्वयं ही समुद्र मंथन कर लें तो सब कुछ हमें प्राप्त होगा. किन्तु अकेले ही समुद्र का मंथन कर पाने का सामर्थ्य तो असुरों के भी पास नहीं था. अंततः अमृत के लालच में वे देवताओं के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने को सहमत हो गए. दोनों पक्ष क्षीर सागर पर आ पहुंचे, मंद्राचल पर्वत को मंथनी, वासुकि नाग को रस्सी (मंथने के लिए) के स्थान पर प्रयोग कर समुद्र मंथन प्रारम्भ हो गया. एक ओर देवता थे और दूसरी ओर असुर. किन्तु यह क्या! कोई ठोस धरातल न होने के कारण, मंथन प्रारम्भ होने के थोड़े ही समय पश्चात् मंद्राचल पर्वत समुद्र में धंसने लगा.
समुद्र मंथन रोकना पड़ा, सब विचार करने लगे कि इस समस्या का क्या समाधान निकाला जाए. तब भगवान् विष्णु ने कूर्म (कच्छप या कछुआ) अवतार धारण किया और मंद्राचल पर्वत के नीचे आसीन हो गए. उसके पश्चात् उनकी पीठ पर मंद्राचल पर्वत स्थापित हुआ और समुद्र मंथन आरम्भ हुआ. भगवान् विष्णु के कूर्म अवतार के कारण ही समुद्र मंथन संभव हो पाया, जिसके फलस्वरूप समुद्र से अनेक बहुमूल्य रत्नों और निधियों, जीव-जंतुओं, देवी-देवताओं की उत्पत्ति हुई और अंततः देवताओं को अमृत की प्राप्ति हुई.