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नवदुर्गा तीसरा स्वरुप - चंद्रघंटा | Third Navratri Maa Chandraghanta on 31 Mar 2025 (Monday)

नवरात्रि के तीसरे दिन करें मां चंद्रघंटा की पूजा

माता चंद्रघंटा:- या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

माँ चंद्रघंटा की पूजा का महत्व -

नवरात्रि के तीसरे दिन दुर्गा मां के तीसरे स्वरुप माँ चंद्रघंटा की पूजा करने का नियम है. नवरात्री के नौ दिनों में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है. मां दुर्गा का तीसरा स्वरुप असुरों का संघार करने के लिए जाना जाता है. मान्यताओं के अनुसार माँ चंद्रघंटा अपने सभी भक्तों के समस्त दुखों को दूर करती हैं. माँ चंद्रघंटा अपने हाथों में तलवार, त्रिशूल, गदा और धनुष धारण करती है. शास्त्रों में बताया गया है की माँ चंद्रघंटा की उत्पत्ति धर्म की रक्षा और संसार से अंधकार को दूर करने के लिए हुई है. ऐसा माना जाता है कि मां चंद्रघंटा की पूजा करने से मनुष्य को आध्यात्मिक और आत्मिक शक्ति प्राप्त होती है. नवरात्री के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की उपासना करने के बाद  दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से मनुष्य को संसार में यश, कीर्ति और सम्मान की प्राप्ति होती है. आज हम आपको मां दुर्गा के इस तीसरे रूप माँ चंद्रघंटा के बारे में बताने जा रहे हैं

मां चंद्रघंटा का स्वरुप-

• मां चंद्रघंटा का स्वरूप अत्यंत सौम्य और शांत है.

• मां चंद्रघंटा का शरीर स्वर्ण के समान चमकीला है.

• माँ चंद्रघंटा के समान इनकी सवारी शेर का शरीर भी सोने की भाँती चमकता है

• माँ चंद्रघंटा अपने दसों हाथों में कमल और कमडंल के अलावा अस्त-शस्त्र धारण करती हैं

• माँ चंद्रघंटा के माथे पर अर्धचंद्र विराजमान है इसी वजह से इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है

• माँ अपने वाहन सिंह पर सवार होकर युद्ध दुष्टों का संघार करने के लिए हमेशा तत्पर रहता है. शाश्त्रो में माँ चंद्रघंटा को स्वर की देवी भी बताया गया है

कैसे करें चंद्रघंटा की पूजा

• नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा में विशेष रूप से माँ को लाल रंग के फूल अर्पित करें. माँ चंद्रघंटा को प्रसाद के रूप में लाल सेब चढ़ाएं

• भोग चढ़ाते समय और मंत्र का जाप करते समय मंदिर की घंटी अवश्य बजाएं. क्योंकि मां चंद्रघंटा की पूजा में घंटी  बहुत महत्वपूर्ण होती है

• मान्यताओं के अनुसार घंटे की आवाज के द्वारा मां चंद्रघंटा अपने भक्तों पर हमेशा अपनी कृपा बरसाती रहती हैं

• मां चंद्रघंटा की पूजा करने के पश्चात् उन्हें दूध और उससे बनी चीजों का प्रसाद चढ़ाएं.और इन्ही चीजों का दान भी करें

• मां चंद्रघंटा को मखाने की खीर का प्रसाद चढ़ाना बहुत ही उत्तम होता है. ऐसा माना जाता है की मखाने की खीर का भोग लगाने से मां प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तो के समस्त कष्टों का नाश करती हैं.

माँ चंद्रघंटा की पूजा के लाभ-

• माँ चंद्रघंटा की आराधना करने से मनुष्य को साहस की प्राप्ति होती है,

• इनकी पूजा करने से रक्त , दुर्घटना और पाचन तंत्र से जुडी सभी समस्याएँ दूर हो जाती हैं

• अगर आपको घबराहट ,बेचैनी और भय की समस्या है तो माँ चंद्रघंटा की उपासना करें.

• माँ चंद्रघंटा की पूजा करने से मंगल ग्रह की पीड़ा शांत होती है और साथ ही कुंडली में मौजूद मंगल दोष का निवारण होता है.

 

 

माँ चंद्रघण्टा की कथा
माँ चन्द्रघण्टा असुरों के विनाश हेतु माँ दुर्गा के तृतीय रूप में अवतरित होती है। जो भयंकर दैत्य सेनाओं का संहार करके देवताओं को उनका भाग दिलाती है। भक्तों को वांछित फल दिलाने वाली हैं। आप सम्पूर्ण जगत की पीड़ा का नाश करने वाली है। जिससे समस्त शात्रों का ज्ञान होता है, वह मेधा शक्ति आप ही हैं। दुर्गा भव सागर से उतारने वाली भी आप ही है। आपका मुख मंद मुस्कान से सुशोभित, निर्मल, पूर्ण चन्द्रमा के बिम्ब का अनुकरण करने वाला और उत्तम सुवर्ण की मनोहर कान्ति से कमनीय है, तो भी उसे देखकर महिषासुर को क्रोध हुआ और सहसा उसने उन पर प्रहार कर दिया, यह बड़े आश्चर्य की बात है। कि जब देवी का वही मुख क्रोध से युक्त होने पर उदयकाल के चन्द्रमा की भांति लाल और तनी हुई भौहों के कारण विकराल हो उठा, तब उसे देखकर जो महिषासुर के प्राण तुरंत निकल गये, यह उससे भी बढ़कर आश्चर्य की बात है, क्योंकि क्रोध में भरे हुए यमराज को देखकर भला कौन जीवित रह सकता है। देवि! आप प्रसन्न हों। परमात्मस्वरूपा आपके प्रसन्न होने पर जगत् का अभ्युदय होता है और क्रोध में भर जाने पर आप तत्काल ही कितने कुलों का सर्वनाश कर डालती हैं, यह बात अभी अनुभव में आयी है, क्योंकि महिषासुर की यह विशाल सेना क्षण भर में आपके कोप से नष्ट हो गयी है। कहते है कि देवी चन्द्रघण्टा ने राक्षस समूहों का संहार करने के लिए जैसे ही धनुष की टंकार को धरा व गगन में गुजा दिया वैसे ही माँ के वाहन सिंह ने भी दहाड़ना आरम्भ कर दिया और माता फिर घण्टे के शब्द से उस ध्वनि को और बढ़ा दिया, जिससे धनुष की टंकार, सिंह की दहाड़ और घण्टे की ध्वनि से सम्पूर्ण दिशाएं गूँज उठी। उस भयंकर शब्द व अपने प्रताप से वह दैत्य समूहों का संहार कर विजय हुई।

उपासना मन्त्र:- पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
                      प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥ 

भोग:- मां चंद्रघंटा के भोग में गाय के दूध से बने व्‍यंजनों का भोग लगाए| साथ ही शहद का भी भोग लगाएं|



चन्द्रघंटा की कवच :
रहस्यं श्रुणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।
श्री चन्द्रघन्टास्य कवचं सर्वसिध्दिदायकम्॥
बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोध्दा बिना होमं।
स्नानं शौचादि नास्ति श्रध्दामात्रेण सिध्दिदाम॥
कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च न दातव्यं न दातव्यं न दातव्यं कदाचितम्॥

 

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