माघ बिहू –
माघ बिहू को बहुत ही हर्षोल्लास के साथ जनवरी के महीने में मनाया जाता है। माघ बिहू पूरी तरह से फसल से सबंधित त्यौहार है|
क्या करें –
इस दिन एक-दूसरे को शुभकामानाऐं दी जाती है
रंग-बिरंगे और पारंपरिक उत्सव की वेशभूषा पहनी जाती है।
ढोल और पीपा की थाप पर बिहू गीत गाये जाते है और नृत्य किया जाता है
अग्नि देवता से प्रार्थना की जाती है अगली फसल भी शानदार हो
माघ बिहू का महत्तव –
भोजन से जुड़े इस बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार को भोगली बिहू या उरकु भी कहा जाता है। यह विशेष रूप से असम के मेहनती किसानों के अपने श्रम का लाभ पाने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। सभी लोग बड़े धूम-धाम के साथ इस त्यौहार को अपने प्रियजनों से साथ मनाते हैं,। इस विशेष दिन असम के कई धार्मिक लोग इस रात को उपवास और प्रार्थना भी करते है। महिलाएं कई दिनों पहले ही बिहू की तैयारी में जुट जाती है और तैयार किये गये खाद्य पदार्थों को शुभ मीजी स्थान पर ले जाती हैं।
पूजा विधि –
माघ बिहू पर, लोग सुबह जल्दी उठते हैं और स्नान करते हैं
इस दिन मीजिस (मेजी) में आग लगाते हैं जो लकड़ी, बांस, पेड़ के पत्तों, घास और घास से बने अस्थायी मंडप होते हैं।
फिर इसी पवित्र अग्नि के चारों ओर एकत्र होकर ईश्वर से शुभ और मंगल की कामना की जाती है।
सभी लोग अपनी मनोकामना पूरी की इच्छा हेतु जलते हुए मेजी में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं की भेंट चढ़ाते ।
मेजी जलने के बाद शेष (यानि भस्म या राख) को खेतो में छिड़का जाता है।
माघ बिहू की महत्ता –
इस विशेष दिन पर लोग पवित्र नदियों और सरोवरों के तट पर धान की पुआल से अस्थाई छावनी का निर्माण करतै है और इसे भेलाघर भी कहा जाता है । और इस बची हुयी राख को खेतो में डालने से इसके उर्वरा शक्ति बढ़ती है। माघ बिहू के दौरान लोग अपनी ख़ुशीयों को नाच-गाना करके मनाते है। इस महीने में तिल, चावल, गन्ना आदि को पकाया व बड़े ही चाव के साथ खाया जाता है।
कथा –
असम में माघ महीने की संक्रांति के पहले दिन से माघ बिहू अर्थात भोगाली बिहू मनाया जाता है। इस दौरान खान-पान धूमधाम से होता है, क्योंकि तिल, चावल, नारियल, गन्ना इत्यादि फसल उस समय भरपूर होती है और उसी से तरह-तरह की खाद्य सामग्री बनाई जाती है। बैसाख बिहू- असमिया कैलेंडर बैसाख महीने से शुरू होता है, जो अंग्रेजी माह के अप्रैल महीने के मध्य में शुरू होता है और यह बिहू 7 दिन तक अलग-अलग रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। बैसाख महीने का संक्रांति से बोहाग बिहू शुरू होता है। इसमें प्रथम दिन को गाय बिहू कहा जाता है। इस दिन लोग सुबह अपनी-अपनी गायों को नदी में ले जाकर नहलाते हैं।
गायों को नहलाने के लिए रात में ही भिगोकर रखी गई कलई दाल और कच्ची हल्दी का इस्तेमाल किया जाता है। उसके बाद वहीं पर उन्हें लौकी, बैंगन आदि खिलाया जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से सालभर गायें कुशलपूर्वक रहती हैं। शाम के समय जहां गायें रखी जाती हैं, वहां गाय को नई रस्सी से बांधा जाता है और नाना तरह के औषधि वाले पेड़-पौधे जलाकर मच्छर-मक्खी भगाए जाते हैं। इस दिन लोग दिन में चावल नहीं खाते, केवल दही चिवड़ा ही खाते हैं। पहले बैसाख में आदमी का बिहू शुरू होता है। उस दिन भी सभी लोग कच्ची हल्दी से नहाकर नए कपड़े पहनकर पूजा-पाठ करके दही चिवड़ा एवं नाना तरह के पेठे-लडडू इत्यादि खाते हैं। इसी दिन से असमिया लोगों का नया साल आरंभ माना जाता है। इसी दौरान 7 दिन के अंदर 101 तरह की हरी पत्तियों वाला साग खाने की भी रीति है।
इस बिहू का दूसरा महत्व है कि उसी समय धरती पर बारिश की पहली बूंदें पड़ती हैं और पृथ्वी नए रूप से सजती है। जीव-जंतु एवं पक्षी भी नई जिंदगी शुरू करते हैं। नई फसल आने की हर तरह की तैयारी होती है। इस बिहू के अवसर पर संक्रांति के दिन से बिहू नाच नाचते हैं। इसमें 20-25 की मंडली होती है जिसमें युवक एवं युवतियां साथ-साथ ढोल, पेपा, गगना, ताल, बांसुरी इत्यादि के साथ अपने पारंपरिक परिधान में एकसाथ बिहू करते हैं।
बिहू आजकल बहुत दिनों तक जगह-जगह पर मनाया जाता है। बिहू के दौरान ही युवक एवं युवतियां अपने मनपसंद जीवनसाथी को चुनते हैं और अपनी जिंदगी नए सिरे से शुरू करते हैं इसलिए असम में बैसाख महीने में ज्यादातर विवाह संपन्न होते हैं। बिहू के समय में गांव में विभिन्न तरह के खेल-तमाशों का आयोजन किया जाता है। इसके साथ-साथ खेती में पहली बार के लिए हल भी जोता जाता है। बिहू नाच के लिए जो ढोल व्यवहार किया जाता है उसका भी एक महत्व है। कहा जाता है कि ढोल की आवाज से आकाश में बादल आ जाते हैं और बारिश शुरू हो जाती है जिसके कारण खेती अच्छी होती है।
Disclaimer: The information presented on www.premastrologer.com regarding Festivals, Kathas, Kawach, Aarti, Chalisa, Mantras and more has been gathered through internet sources for general purposes only. We do not assert any ownership rights over them and we do not vouch any responsibility for the accuracy of internet-sourced timelines and data, including names, spellings, and contents or obligations, if any.