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महानिशा पूजा on 24 Oct 2020 (Saturday)

शारदीय नवरात्री एक बहुत ही पावन समय है जो की, पितृ पक्ष के बाद आता है| पितृ पक्ष के दौरान लोग बेसबरी से नवरात्री का इन्तेज़र करते, ताकि वे नवरात्री आते ही अपने रुके हुए शुभ कामो को पूर्ण कर पाएं|

नवरात्री में माँ के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है| इन्ही शुभ दिनों में दुर्गा अष्टमी का दिन भी आता है जिस दिन छोटी कन्याओं को भोजन व् उपहार दिए जाते हैं|

महाष्टमी के दिन के समय में हम माँ का पूजन कर कन्याँ को भोजन व् उपहार देते है| परन्तु महाष्टमी की मध्य रात्रि को महानिशा का पूजन किया जाता है| यह पूजन वीशेष प्रक्रिया व् विधि से किया जाता है| महानिशा पूजन किसी विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिए किया जाता है, अथवा माँ की कृपा पाने व् उनको प्रसन्न करने के लिए भी किया जाता है|

वैसे तो माँ सदैव ही अपने बच्चो पर अपना प्रेम और स्नेह बनाये रखती है| परन्तु इन् ख़ास नौ दिनों में माँ की विशेष कृपा पाने का एक बहुत ही शुभ समय होता है| इन् दिनों में माँ अपने सभी बच्चो के घरों में आती हैं|

महानिशा अर्थात "रात्रि का मध्य भाग"| महानिशा पूजा दुर्गाष्टमी की रात्रि में की जाती है| ऐसी मान्यता है की महानिशा पूजा किसी विशेष मनोकामना के लिए की जाती है|

महानिशा पूजा विधि|

1.   रात्रि के समय स्नान आदि कर खुद को शुद्ध करलें|

2.   एक आसान लें और उसपे बैठें|

3.   एक चौकी पर लाल कपडा बिछाएं|

4.   उसपे कलश स्थापना करें|

5.   कलश स्थापना पश्चात माँ की मूर्ति की स्थापना करें|

6.   अब षोडशोपचार पूजन करें:

7.   षोडशोपचार पूजन का कृत्य

प्रथम उपचार : देवता का आवाहन करना (देवता को बुलाना)

आवाहन अर्थात भगवान को आमंत्रित करना| हाथ में पुष्प व् अक्षत लेकर भगवान से प्रार्थना करें की "हे भगवान आप अपने सह परिवार व् समस्त देवी देवताओं सहित हमारे सामने रखी मूर्तियों में विराजमान/प्रतिष्ठित हो हमारी पूजा को स्वीकार करें व् पूजा में हुई हर भूल चूक को माफ़ करें|"

आवाहन के उपरांत देवी देवता का नाम लेकर अंत मेंनमःबोलते हुए उन्हें अक्षत अथवा पुष्प अर्पित कर हाथ जोडें

दूसरा उपचार : देवता को आसन (विराजमान होने हेतु स्थान) देना|

हाथ में फूल व् अक्षत लें और देवी के आगमन के पश्चात उन्हें उनके कोमल व् साज सजावट वाले सिंघासन पर विराजमान की प्रार्थना करें

तीसरा उपचार : पाद्य (देवता को चरण धोने के लिए जल देना)

देवी की मूर्ति एक बर्तन में रखें व् उनके चरण धोएं|

चौथा उपचार : अघ्र्य (देवता को हाथ धोने के लिए जल देना)

चरण धोने के पश्चात देवी माँ के हाथो पर जल डालें|

पांचवां उपचार : आचमन (देवता को कुल्ला करने के लिए जल देना)

आचमन के लिए जल को उसी पात्र में छोड़ें जिसमे माँ की मूर्ति रखी है|

छठा उपचार : स्नान (देवता पर जल चढाना)

स्नान के लिए माँ देवी को पुष्प से जल का छींटा दें|

अथवा

देवी को पहले पंचामृत (दूध, दही, घी, मधु तथा शक्कर) से स्नान करवाएं| एक पदार्थ से स्नान करवाने के उपरांत तथा दूसरे पदार्थ से स्नान करवाने से पूर्व जल चढाएं|

सातवां उपचार : देवता को वस्त्र देना

माँ को सोलाह श्रृंगार व् लाल वस्त्र अर्पित करें|

आठवां उपचार : देवता को उपवस्त्र अथवा यज्ञोपवीत (जनेऊ देना) अर्पित करना

देवी माँ को यह अर्पित नहीं किया जाएगा|

नौवा ओपचार: नौंवे उपचार से तेरहवें उपचार तक, पंचोपचार करें|

1.   देवी को गुलाब का इत्र, हल्दी कुमकुम अर्पित करें|

2.   देवी मईया को पुष्प व् बिल्व पत्र अर्पित करें|

3.   माँ के आगे धुप व् अगरबत्ती लगाएं|

4.   माँ के आगे घी का दीपक भी लगाएं|

5.   माँ को मिठाईयों का भोग भी लगाएं|

चौदहवां उपचार : देवता को मनःपूर्वक नमस्कार करना|

 माँ का ध्यान करें और उन्हें प्रणाम भी करें|

पंद्रहवांउपचार : परिक्रमा करना

अब माँ की परिक्रम्मा करें अगर परिक्रम्मा करने की व्यवस्था हो तो अपने स्थान पर ही खड़े होकर तीन बार घूमें|

सोलहवां उपचार : मंत्र पुष्पांजलि

परिक्रमा के उपरांत मंत्रपुष्प-उच्चारण कर, देवी को अक्षत अर्पित करें तदु पूजा में हमसे ज्ञात-अज्ञात चूकों तथा त्रुटियों के लिए अंत में देवतासे क्षमा मांगें और पूजा का समापन करें