शारदीय नवरात्री एक बहुत ही पावन समय है जो की, पितृ पक्ष के बाद आता है| पितृ पक्ष के दौरान लोग बेसबरी से नवरात्री का इन्तेज़र करते, ताकि वे नवरात्री आते ही अपने रुके हुए शुभ कामो को पूर्ण कर पाएं|
c नवरात्री में माँ के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है| इन्ही शुभ दिनों में दुर्गा अष्टमी का दिन भी आता है जिस दिन छोटी कन्याओं को भोजन व् उपहार दिए जाते हैं|
महाष्टमी के दिन के समय में हम माँ का पूजन कर कन्याँ को भोजन व् उपहार देते है| परन्तु महाष्टमी की मध्य रात्रि को महानिशा का पूजन किया जाता है| यह पूजन वीशेष प्रक्रिया व् विधि से किया जाता है| महानिशा पूजन किसी विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिए किया जाता है, अथवा माँ की कृपा पाने व् उनको प्रसन्न करने के लिए भी किया जाता है|
वैसे तो माँ सदैव ही अपने बच्चो पर अपना प्रेम और स्नेह बनाये रखती है| परन्तु इन् ख़ास नौ दिनों में माँ की विशेष कृपा पाने का एक बहुत ही शुभ समय होता है| इन् दिनों में माँ अपने सभी बच्चो के घरों में आती हैं|
महानिशा अर्थात "रात्रि का मध्य भाग"| महानिशा पूजा दुर्गाष्टमी की रात्रि में की जाती है| ऐसी मान्यता है की महानिशा पूजा किसी विशेष मनोकामना के लिए की जाती है|
महानिशा पूजा विधि|
1. रात्रि के समय स्नान आदि कर खुद को शुद्ध करलें|
2. एक आसान लें और उसपे बैठें|
3. एक चौकी पर लाल कपडा बिछाएं|
4. उसपे कलश स्थापना करें|
5. कलश स्थापना पश्चात माँ की मूर्ति की स्थापना करें|
6. अब षोडशोपचार पूजन करें:
7. षोडशोपचार पूजन का कृत्य
प्रथम उपचार : देवता का आवाहन करना (देवता को बुलाना)
आवाहन अर्थात भगवान को आमंत्रित करना| हाथ में पुष्प व् अक्षत लेकर भगवान से प्रार्थना करें की "हे भगवान आप अपने सह परिवार व् समस्त देवी देवताओं सहित हमारे सामने रखी मूर्तियों में विराजमान/प्रतिष्ठित हो हमारी पूजा को स्वीकार करें व् पूजा में हुई हर भूल चूक को माफ़ करें|"
आवाहन के उपरांत देवी देवता का नाम लेकर अंत में ‘नमः’बोलते हुए उन्हें अक्षत अथवा पुष्प अर्पित कर हाथ जोडें ।
दूसरा उपचार : देवता को आसन (विराजमान होने हेतु स्थान) देना|
हाथ में फूल व् अक्षत लें और देवी के आगमन के पश्चात उन्हें उनके कोमल व् साज सजावट वाले सिंघासन पर विराजमान की प्रार्थना करें|
तीसरा उपचार : पाद्य (देवता को चरण धोने के लिए जल देना)
देवी की मूर्ति एक बर्तन में रखें व् उनके चरण धोएं|
चौथा उपचार : अघ्र्य (देवता को हाथ धोने के लिए जल देना)
चरण धोने के पश्चात देवी माँ के हाथो पर जल डालें|
पांचवां उपचार : आचमन (देवता को कुल्ला करने के लिए जल देना)
आचमन के लिए जल को उसी पात्र में छोड़ें जिसमे माँ की मूर्ति रखी है|
छठा उपचार : स्नान (देवता पर जल चढाना)
स्नान के लिए माँ देवी को पुष्प से जल का छींटा दें|
अथवा
देवी को पहले पंचामृत (दूध, दही, घी, मधु तथा शक्कर) से स्नान करवाएं| एक पदार्थ से स्नान करवाने के उपरांत तथा दूसरे पदार्थ से स्नान करवाने से पूर्व जल चढाएं|
सातवां उपचार : देवता को वस्त्र देना
माँ को सोलाह श्रृंगार व् लाल वस्त्र अर्पित करें|
आठवां उपचार : देवता को उपवस्त्र अथवा यज्ञोपवीत (जनेऊ देना) अर्पित करना
देवी माँ को यह अर्पित नहीं किया जाएगा|
नौवा ओपचार: नौंवे उपचार से तेरहवें उपचार तक, पंचोपचार करें|
1. देवी को गुलाब का इत्र, हल्दी कुमकुम अर्पित करें|
2. देवी मईया को पुष्प व् बिल्व पत्र अर्पित करें|
3. माँ के आगे धुप व् अगरबत्ती लगाएं|
4. माँ के आगे घी का दीपक भी लगाएं|
5. माँ को मिठाईयों का भोग भी लगाएं|
चौदहवां उपचार : देवता को मनःपूर्वक नमस्कार करना|
माँ का ध्यान करें और उन्हें प्रणाम भी करें|
पंद्रहवांउपचार : परिक्रमा करना
अब माँ की परिक्रम्मा करें अगर परिक्रम्मा करने की व्यवस्था न हो तो अपने स्थान पर ही खड़े होकर तीन बार घूमें|
सोलहवां उपचार : मंत्र पुष्पांजलि
परिक्रमा के उपरांत मंत्रपुष्प-उच्चारण कर, देवी को अक्षत अर्पित करें । तदु पूजा में हमसे ज्ञात-अज्ञात चूकों तथा त्रुटियों के लिए अंत में देवतासे क्षमा मांगें और पूजा का समापन करें ।