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मासिक शिवरात्रि व्रत की कथा on 08 Jun 2021 (Tuesday)

व्रत की कथाः- इस व्रत के विषय मे शिवपुराण आदि पुराणों मे कथाएं प्रचलित हैं। जिसमें शिव लिंग के प्रकट होने और शिकारी व मृग परिवार की कथाएं प्रमुख है।
 
टिप्पणीः-  भगवान शिव की पूजा सुगंधित पुष्पों विल्व पत्रों गाय के कच्चे दूध घी से की जानी चाहिए। भगवान शिव आदि देवताओं की पूजा के शास्त्रों मे विषेश अवसर कहें गए हैं किन्तु जिज्ञासु व श्रद्धालु भक्त जो इन व्रतों को अन्य अवसरों में करने के लिए उत्सुक रहते हैं उनके लिए मासिक शिव रात्रि आदि के व्रतों की बड़ी सुगम व्यावस्थाएं शास्त्रों मे प्रचलित है। जिसमें मासिक शिव रात्रि भी प्रमुख व्रत है। मास शिवरात्रि का व्रत भी है जो चैत्रादि सभी महीनों की कृष्ण चतुर्दशीको किया जाता है। इस व्रत में त्रयोदशी युक्त (विद्धा) अर्थात् रात्रि तक रहने वाली चतुर्दशी तिथि का बड़ा ही महत्त्व है। अतः त्रयोदशी व चतुदर्षी का योग बहुत शुभ व फलदायी माना जाता है। यादि आप मासिक शिवरात्रि व्रत रखना चाह रहें हैं तो इसका शुभारम्भ दीपावली या मार्गशिर्ष मास से करे तो अच्छा रहता है।
 
मासिक शि रात्रि
महाशिवरात्रि के समान फलदायी मासिक शिव व्रत वेद वेदांगों के अनुसार अन्नत ईष्वर जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को व्याप्त किए हुए इस असीम ब्रह्माण्ड को संचालित करने की षक्ति देता वह त्रिगुणात्मक (रज, सत, तम) षक्ति के गुणों से युक्त है जो जन्म मृत्यु जरा व्याधि से रहित है, जो आदि है, अनादि, है सर्वभूतहर है। ऐसे परम ईष्वर जो सम्पूर्ण विकृतियों से रहित है उसे भारतीय सनातन धर्म के मनीषियों ने अनेक विधि से स्मरण किया और जो भी इस भौतिक जगत में उपस्थित द्रव्य है उनके द्वारा उसकी पूजा अर्चना करने की युगान्तरों से व्यावस्था दी। जिससे मानव जीवन अज्ञानता अंधकार, भय, मृत्यु व 84 लाख योनि द्वारों मे भटकने से सहज ही मुक्ति प्राप्त कर लेता है। भगवान शिव के अतिपुण्य नाम जैसे- आदिनाथ, भोला नाथ, विष्व नाथ, जगतनाथ, काशीपति, गंगाधर आदि है जिनके सतत् स्मरण करने से इस भयंकर कलिकाल में भी मुक्ति व मोक्ष के साधनों को प्राप्त करते है।

ऐसा ही परम कल्याणकारी व्रत मासिक शिव रात्रि का व्रत है। जिसके विधि-पूर्वक करने से व्यक्ति के दुःख, पीड़ाओं का अंत होता है और उसे इच्छित फल पति, पत्नी, पुत्र, धन, सौभाग्य, समृद्धि व आरोग्यता प्राप्त होती है तथा वह जीवन के अंतिम लक्ष्य (मोक्ष) को प्राप्त करने के योग्य बन जाता है। 

इस व्रत के विषय कई जनश्रुतियां तथा पुराणों मंे अनेकों प्रसंग हैं। जिसमे प्रमुख रूप से शिवलिंग के प्रकट होने तथा शिकारी व मृग परिवार का संवाद है। निर्धनता व क्षुधा से व्याकुल जीव हिंसा को अपने गले लगा चुके उस षिकारी को दैवयोग व सौभाग्य वष महाषिवरात्रि के दिन खाने को कुछ नहीं मिला तथा सायंकालीन वेला मे सरोवर के निकट बिल्वपत्र में चढ़ कर अपने आखेट की लालसा से रात्रि के चार पहर अर्थात् सुबह तक विल्वपत्र को तोड़कर अनजाने में नीचे गिराता रहा जो शिलिंग मे चढ़ते गए। जिसके फलस्वरूप उसका हिंसक हृदय पवित्र हुआ और प्रत्येक पहर मे हाथ आए उस मृग परिवार को उनके वायदे के अनुसार छोड़ता रहा। किन्तु किए गए वायदे के अनुसार मृग परिवार उस शिकारी के सामने प्रस्तुत हुआ। परिणाम स्वरूप उसे व मृग परिवार को वांछित फल व मोक्ष प्राप्त हुए।

 मासिक शिव रात्रि के व्रत का पालन करने वाले भक्त श्रद्धालुओं को प्रातःकाल ही नित्यादि स्नानादि क्रियाओं से निवृत होकर भगवान शिव की पूजा, अर्चना विविध प्रकार से करना चाहिए। इस पूजा को किसी एक प्रकार से करना चाहिए। जैसे- पंचोपचार (पांच प्रकार) या फिर षोड़षोपचार (16 प्रकार से) या अष्टादषोपचार (18 प्रकार) से करना चाहिए। भगवान शिव से श्रद्धा व विष्वास पूर्वक "शुद्ध चित्त” से प्रार्थना करनी चाहिए, कि
हे देवों के देव!
हे महादेव!
हे नीलकण्ठ!
हे विष्वनाथ! आपको बारम्बार नमस्कार है। आप मुझे ऐसी कृपा षक्ति दो जिससे मै दिन के चार और रात्रि के चार पहरों मे आपकी अर्चना कर सकूं और मुझे क्षुधा, पिपासा, लोभ, मोह पीड़ित न करें, मेरी बुद्धि निर्मल हो मै जीवन को सद्कर्मों, सन्नमार्ग मे लगाते हुए इस धरा पर चिरस्मृति छोड़ आपकी परम कृपा प्राप्त करूं।
मासिक शिव रात्रि मेें रात्रि जागरण व पूजन का बड़ा ही महत्त्व है इसलिए सांयकालीन स्नानादि से निवृत्त होकर यदि वैभव साथ देता हो तो वैदिक मंत्रों द्वारा प्रत्येक पहर में वैदिक ब्राह्मण समूह की सहायता से पूर्वा या उत्तराभिमुख होकर रूद्राभिषेक करवाना चाहिए। इसके पष्चात् सुगंधित पुष्प, गंध, चंदन, बिल्वपत्र, धतूरा, धूप-दीप, भांग, नैवेद्य आदि द्वारा रात्रि के चारों पहर में पूजा करनी चाहिए। किन्तु जो आर्थिक रूप से शिथिल हैं उन्हें भी श्रद्धा विष्वास पूर्वक किसी शिवालय में या फिर अपने ही घर मे उपरोक्त सामग्री द्वारा पार्थिव पूजन प्रत्येक पहर में करते हुए "ऊँ नमः षिवाय” का जप करना चाहिए। यदि आषक्त (किसी कारण या परेषानी) होने पर सम्पूर्ण रात्रि का पूजन न हो सके तो पहले पहर की पूजा अवष्य ही करनी चाहिए। इस प्रकार अंतिम पहर की पूजा के साथ ही समुचित ढंग व बड़े आदर के साथ प्रार्थना करते हुए सम्पन्न करें। तत्पष्चात् स्नान से निवृत्त होकर व्रत खोलना (पारण) करनी चाहिए।
 
इस व्रत मे त्रयोदशी विद्धा (युक्त) चतुर्दशी तिथि ली जाती है। पुराणांे के अनुसार भगवान शिव इस ब्रह्माण्ड के संहारक व तमोगुण से युक्त हैं जो महाप्रलय की बेला में तांडव नृत्य करते हुए अपने तीसरे नेत्र से ब्रह्माण्ड को भस्म कर देते हैं। अर्थात् जो काल के भी महाकाल हैं जहां पर सभी काल (समय) या मृत्यु ठहर जातें हैं, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की गति वहीं स्थित या समाप्त हो जाती है। अर्थात् ऐसा धाम जहां सभी को विश्राम या षांति प्राप्त होती है, जहां सुख दुख, जन्म-मृत्यु के भय नहीं व्यापते हैं जो औलोकि अनुभूति से पूरित हैं जिसे वेदों ने नेति-नेति कह कर मौन धारण कर लिया है ऐसा परमात्मा है। इसी प्रकार रात्रि की प्रकृति भी तमोगुणी है, जिससे भगवान शिव की मासिक शिवरात्रि और महाशिवरात्रि को रात्रि काल मे पूजन जागरण करके मनाया जाता है। भगवान षंकर का रूप जहां प्रलयकाल मे संहारक है वहीं भक्तों के लिए बड़ा ही भोला,कल्याणकारी व वरदायक भी है जिससे उन्हें भोले नाथ, दयालु व कृपालु भी कहा जाता है। अर्थात् श्रद्धा और विष्वास के साथ अर्पित किया गया एक भी पत्र या पुष्प पापों को नष्ट कर पुण्य कर्मों को बढ़ा भाग्योदय करता है।

मास शिवरात्रि का व्रत भी है जो चैत्रादि सभी महीनों की कृष्ण चतुर्दशी को किया जाता है। इस व्रत में त्रयोदशी युक्त (विद्धा) अर्थात् रात्रि तक रहने वाली चतुर्दशी तिथि का बड़ा ही महत्त्व है। अतः त्रयोदशी व चतुर्दशी का योग बहुत शुभ व फलदायी माना जाता है। यादि आप मासिक शिवरात्रि व्रत रखना चाह रहें हैं तो इसका शुभारम्भ दीपावली या मार्गशीर्ष मास से करे तो अच्छा रहता है।