संक्राति का महत्व
सुसंस्कृत वेदा गर्भा, रत्नगर्भा भारतीय भूमि धन्य है, जिसमें न केवल इस धरा के मानव सहित जीव व जीवन का उल्लेख है बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति प्रलय के अति दुर्लभ तथ्य मौजूद हैं। सत्य सनातन धर्म जीव व जीवन के रहस्य को समझने और जीवन को सुख, समृद्धि से पूरित करने के लिए तथा अंतिम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त करने हेतु कई दुर्लभ व्रत त्यौहारों को करने का अवसर देता है। व्रत एक ओर जहां तन, मन आत्मा को पवित्र करते हैं वहीं दान कीर्ति व समृद्धि और लोक प्रियता को बढ़ाते हैं। अर्थात् संयम, नियम, व्रत, दान, स्नान, ब्रह्मचर्य आदि व्यक्ति के तन, मन आत्मा को षुद्ध कर उसे निरोग बनाते है, उसका व्यक्तित्व, बुद्धि, कौषल अनायास ही बढ़ने लगता है। इसलिए यहां पूरे साल, महीनों, पक्षांे, दिनों, में कई ऐसे अवसर आते हैं जो प्रत्येक स्नान, दान, व्रत, अनुष्ठान को कई गुना पुण्यकारी बनाते हैं।
किन्तु भक्त प्रेमी जनों को यह भली भांति समझ लेना चाहिए की यह बातें कोई हवा मे नहीं है न ही मनगंढ़त कहानियां हैं। बल्कि सत्य विष्वास और श्रद्धा रूपी बल द्वारा इन्हें समुचित पवित्रता पूर्ण यदि किया जाता है, तो फल निष्चित ही मिलता है।
सूर्य चदं्रादि जिनके भ्रमण यानी स्थिति के कारण पृथ्वी में प्रत्यक्ष रूप से दिन रात का क्रम चलता है यानी एक समय (काल) उत्पन्न होता है, जो ऋतु व समय भेद के कारण बलवान व निर्बल हुआ करता है। ऐसे काल का षोधन भारत के वैदिक ऋषियो ने प्राचीन काल में ही किया अर्थात् काल जो धरती के जीवन सहित आकाष, पाताल, देव, दनुज, नाग, किन्नर, मनुज सभी को मारने जिलाने की ताकत रखता है अर्थात् उससे बलवान कोई भी नहीं है, उसी के अनुकूल और प्रतिकूल होने पर मानव जीवन में कई पर्व व त्यौहार आते हैं।
इसी प्रकार ज्येष्ठ संक्राति का काल यानी समय है जो प्रत्येक स्नान, दान, पुण्य कर्मो के फल को कई गुना बढ़ा देता है। जिसमे स्नान, दान, हवन, पुण्य कर्मो का बहुत महत्व रहेगा। ज्येष्ठ संक्राति कर्क लग्न में प्रवेष करेगी। जिसमे धार्मिक कर्मो का कई गुना फल प्राप्त होता है।