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पंचम नवरात्रि - माँ स्कन्दमाता | Fifth Navratri on 27 Sep 2025 (Saturday)

या देवी सर्वभू‍तेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

माँ दुर्गा का पंचम स्वरूप स्कन्दमाता का है। भगवान स्कन्द की माता होने के कारण माँ को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। कमल के आसन पर विराजमान होने के कारण माँ को पद्मासना देवी भी कहा जाता है। माँ के इस स्वरूप की पूजा उपासना से सुख शांति और मोक्ष का द्वार स्वयमेव सुलभ हो जाता है।
 
 माँ दुर्गा ने रक्तबीज, महिषासुर और अन्य दैत्यों का संहार कर शक्ति का अद्वितीय स्वरूप प्रकट किया। उनकी जयकार से सम्पूर्ण देवगण और भक्तजन सुरक्षित और कृतार्थ हुए। इसी कल्याणकारी उद्देश्य की स्मृति और आराधना के लिए हर वर्ष नवरात्रों में माँ की पूजा, व्रत, यज्ञ और अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है। माँ की उपासना का सबसे प्रामाणिक ग्रंथ दुर्गा सप्तशती माना गया है, जो उनकी महिमा और कृपा का साक्षात् प्रमाण है।
 
प्रातःकाल शौच और स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ व पवित्र वस्त्र धारण करें। इसके बाद श्रीदुर्गासप्तशती की पुस्तक को ऊँचे एवं सुन्दर आसन पर स्थापित करें। स्वयं भी शुद्ध आसन पर पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर प्रसन्नचित्त व भक्तिभाव से बैठें। माथे पर चन्दन लगाकर पवित्रीकरण, आचमन और करन्यासादि पवित्र मंत्रों के उच्चारण के साथ संपन्न करें। तत्पश्चात श्रीगणेश, अन्य देवताओं, गुरुजनों और ब्राह्मणों को प्रणाम कर पूजा का शुभारम्भ करें।
 
इसके बाद हाथ में कुशा की पवित्री, लालपुष्प, अक्षत, जल, स्वर्ण, चाँदी के सिक्के द्वारा पूजा व व्रत का संकल्प लें। फिर विधि विधान से पूजा करें।
 
नोटः - पाठ गलत या अशुद्ध न करें न ही बहुत धीरे न ही बहुत जल्दी अर्थात् मध्यम गति से सुस्पष्ट उच्चारण करते हुए पाठ करना चाहिए। क्योंकि मंत्रों के गलत उच्चारण से पूजा का फल नहीं प्राप्त होता और अनिष्ट की आशंका बनी रहती है। 
 
 
नवरात्रि व्रत में क्या करें, क्या नहीं करें ?

व्रत में क्रोध, आलस्य, चिंता नहीं करें। प्रसन्न चित्त व उत्साह पूर्वक माँ की पूजा करें। किसी बात में अविश्वास व संदेह पैदा न करें।  ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करें।  
 
हास्य विनोद, अत्याधिक बोलना, जोर से हंसना, गुस्सा करने से बचें और हर थोड़ी देर में खाने से भी बचें। दिन में सोना नहीं चाहिए, बल्कि कार्यो से निवृत्त होने पर जरूरत के अनुसार थोड़ा विश्राम करना चाहिए।
 
जिन माँ भगवती ने छान्दोग्यश्रुति के अनुसार शक्ति से सनत्कुमार (स्कन्द) को उत्पन्न किया और जो स्कन्द नाम से अखिल विश्व में व्याप्त हुई उन परमेश्वरि का नाम स्कन्दमाता है। अर्थात् स्कन्द के नाम से ही इन्हें स्कन्दमाता कहा जाता है। भक्तों को अभय और आरोग्यता देने वाली परम कृपालु हैं। इनकी पूजा से सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं।
 
माँ की इस मूर्ति का रूप इस श्लोक से स्पष्ट हैः-
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।