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निर्जला एकादशी on 13 Jun 2019 (Thursday)

सभी एकादशियो का पुण्य छिपा है निर्जला एकादशी व्रत में
वसुंधरा को श्रेष्ठ व पुण्य कर्मो से सींच मानव सभ्यता के उपवन को नाना विधि से सजाने के नायाब तौर-तरीके धर्म ग्रंथ के पन्नों में भरे पड़े हैं। व्रत, त्यौहार, पूजा, जप, अनुष्ठान, होम, यज्ञ, तपस्या जैसे अनूठे तरीके जो सूर्य की तरह घनघोर काले अंधकार को चीर प्रत्येक सुबह को जन्म देते हैं। जिसकी एक किरण फूटते ही संपूर्ण संसार में भयानक अंधकार (तम) का नाष हो जाता है।

मानव जीवन में काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, ईष्र्या की काली घटाएं घिर उसे दुःख, दारिद्रता, रोग, षोक, की वर्षा से भिगो देती हैं। जिस वर्षा के जल को व्रत व पुण्य कर्म रूपी सूर्य की किरणें भाप बनाकर उड़ा ले जाती हैं। इसी प्रकार एकादषियों का फल है मनुष्य चाहे जैसे पाप कर्म गुरू निंदा, ब्रह्म, गो हत्या, मिथ्या बचनादि के पापों मे भीगा हो, उसे एकादशी का पुण्य प्रताप समूल नष्ट कर देता है। जिसका वर्णन नारद,पद्म, गुरूड़ पुराण व वराह पुराणों मे मिलता है।

व्रत नित्य, नैमित्तिक और काम्य तीन प्रकार के होते हैं। महर्षि व्यास एकादशी की कथा पांडवों सहित ऋषियों को सुनाते हुए कहते हैं यह नित्य व्रत है जिसे न करने से पाप लगता है। महर्षि व्यास से ऐसे वचन सुन कुन्ती नन्दन भीम बोले पितामह वर्ष पर्यन्त एकादषियों पर निराहार रहने की कष्ट-साधना करना मेरे लिए बहुत ही कठिन है। क्योंकि मेरे पेट की वृक नामक अग्नि मुझे ऐसे क्षुधा से व्याकुल कर देती है कि मैं एक समय भी बिना अन्न के नहीं रह सकता हूं। इसलिए मुझे ऐसा व्रत बतलाइए जो सभी एकादषियों का फल व स्वर्ग दे सके। व्यास जी बोले-हे भीमसेन! ज्येष्ठ मास की षुक्ल पक्ष की एकादशी जो मिथुन संक्राति के मध्य में होती है। उसका निर्जल व्रत करने से सम्पूर्ण एकादषियों का फल और स्वर्ग की प्राप्ति निष्चित रूप से होती है। भीम इस व्रत को यत्न पूर्वक करने लगे तभी से इसका नाम भीमसेनी एकादशी पड़ा। इस व्रत में जलपान निषिद्ध है तथा फलाहार के बाद दूध पीने का विधान है तथा दूसरे दिन स्नानादि क्रियाओं से निवृत्त हो श्री हरि का ध्यान करते हुए किसी ब्राह्मण को भोजन करा स्वयं भोजन करना चाहिए।

निर्जला एकादशी के व्रत से समूल पापों का नाष हो जाता है तथा यम यातनाएं नहीं भोगनी पड़ती। इस एकादशी की खासियत यह है कि इसके व्रत से पूरे वर्ष की एकादषियों का फल प्राप्त हो जाता है। इस दिन भगवान विण्णु की पूजा श्रद्धा भक्ति से करनी चाहिए तथा षक्ति के अनुसार जलपूर्ण कलष, वस्त्राभूषण, फल, अन्य मिष्ठान, छाता आदि वस्तुएं दक्षिणा सहित ब्राह्माण को दान देने का विधान है। व्रत की सफलता हेतु हिंसा, अन्याय, क्रोध, अपवित्रता, जलपान, दिन में सोना, मैथुन, सट््टा या जुआ कुसंगति व तामसिक पदार्थो से दूर रहना चाहिए। यथा संभव ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः या ऊँ नमो श्री नारायणाय नमः का जाप करना चाहिए। इस व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या, मद्यपान, चोरी, गुरू द्रोह, झूठ, छल-कपट से उत्पन्न हुए अक्षम्य पापों का नाष हो जाता है।

भीमसेनी (निर्जला) एकादशी को कर प्रत्येक व्यक्ति श्री हरि विष्णु की असीम कृपा प्राप्त कर सकता है। मन, वचन कर्म पर छाए घने अंधेरे को दूर करने के लिए व्रतादि धार्मिक कार्य अचूक साधन हैं। जिन्हें नियम व निष्ठा पूर्वक कर प्रत्येक मानव लौकिक व पारलौकिक जीवन को संवार सकता है। इस तपोभूमि में धर्म, कर्म व दान के द्वारा अनेको लोगों ने काम, क्रोध, मद, लोभ के तूफानों को उखाड़ने में सफलता हासिल की। जिन्हें सदियों से कई सभ्यताओं ने देखा। पतित, पथ भ्रष्ट, काम, क्रोध, लोभ के थेपेड़ो से लहूलुहान विकल जीवन जिसे कहीं कोई राह सूझ नहीं रही हैं जो मानव जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष को भूल इनकी भूल भुलैया में गुम हो गया है। ऐसे प्रत्येक जीवन के लिए पूरे विष्व भर में भारत भूमि प्रेरणा स्रोत बनी हुई है। क्या आप भी इस तपोभूमि में अपनी तपस्या सिद्ध कर इस भूल भुलैंया से बाहर निकल सकेंगे........?