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पद्मिनी एकादशी on 27 May 2026 (Wednesday)

पद्मिनी एकादशी का महत्व और पूजन विधि 

क्या है पद्मिनी एकादशी

वैसे तो साल में 24 एकादशी मनाई जाती है, पर 3 सालों में एक बार पुरुषोत्तम मास में पड़ने वाली एकादशी को पद्मिनी एकादशी कहा जाता है. पुरुषोत्तम मास भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने के लिए विशेष माना जाता है. जिसकी वजह से पद्मिनी एकादशी का महत्व और भी अधिक हो जाता है

पद्मिनी एकादशी का महत्व

पद्मिनी एकादशी का पर्व अधिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन मनाया जाता है. इसे कमला एकादशी भी कहते हैं. मान्यताओं के अनुसार जो भी व्यक्ति पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ पद्मिनी एकादशी का व्रत करता है भगवान विष्णु उससे प्रसन्न हो जाते हैं और उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं. शास्त्रों में पद्मिनी एकादशी के व्रत को बहुत ही असरकारक माना गया है. पद्मिनी एकादशी का उपवास अधिक मास में किया जाता है, इसीलिए ऐसा माना जाता है कि इस उपवास से मिलने वाला फल भी ज़्यादा होता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु को एकादशी तिथि बहुत प्रिय है, इसलिए ऐसा माना जाता है कि जो मनुष्य भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करना चाहता है उसे पद्मिनी एकादशी के दिन पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ व्रत करना चाहिए

पद्मिनी एकादशी पूजन विधि

पद्मिनी एकादशी का व्रत करने के लिए दशमी तिथि के दिन सूर्यास्त के पश्चात भोजन ग्रहण नहीं करें. पद्मिनी एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत्त होने के पश्चात स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें. अब अपने घर के पूजा कक्ष में पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं. अब अपने सामने एक लकड़ी की चौकी रखें. अब लकड़ी की चौकी पर थोड़ा सा गंगाजल छिड़क कर उसे शुद्ध करें. अब चौकी पर पीले रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाये. अब स्वस्तिक के ऊपर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें. भगवान विष्णु के सामने घी का दीपक जलाकर भगवान को फूलों की माला पहनाएं और तुलसीदल अर्पित करें. इसके पश्चात भगवान विष्णु की चालीसा, स्तुति, स्रोत और मंत्रों से भगवान विष्णु की पूजा करें और पद्मिनी एकादशी की व्रत कथा सुने. अंत में भगवान् विष्णु की आरती करें. पूरा दिन व्रत करने के पश्चात अगले दिन सुबह भगवान की विष्णु की पूजा करके व्रत का पारण करें. एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि के प्रथम प्रहर में अवश्य करें. क्योंकि यदि आपने ऐसा नहीं किया तो आपको व्रत के फल की प्राप्ति नहीं होगी

पद्मिनी एकादशी व्रत के लाभ

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जो भी मनुष्य पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ पद्मिनी एकादशी का व्रत करता है उसे मृत्यु के पश्चात विष्णु लोक की प्राप्ति होती है. पद्मिनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य की सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं और उसे हर प्रकार की तपस्या, यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है. मान्यताओं के अनुसार सबसे पहले श्री कृष्ण ने अर्जुन को पद्मिनी एकादशी की व्रत कथा सुनाई थी. ऐसा माना जाता है की पद्मिनी एकादशी का उपवास करने से मनुष्य को साल भर की सभी एकादशी के व्रत के समान फल प्राप्त होता है.

व्रत कथा

धर्मराज युधिष्ठिर बोले- हे जनार्दन! अधिकमास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है? तथा उसकी विधि क्या है? कृपा करके आप मुझे बताइए।

 

श्री भगवान बोले, हे राजन्- अधिकमास में शुक्ल पक्ष में जो एकादशी आती है वह पद्मिनी (कमला) एकादशी कहलाती है। वैसे तो प्रत्येक वर्ष 24 एकादशियां होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है, तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है।

 

अधिकमास या मलमास को जोड़कर वर्ष में 26 एकादशियां होती हैं। अधिकमास में 2 एकादशियां होती हैं, जो पद्मिनी एकादशी (शुक्ल पक्ष) और परमा एकादशी (कृष्ण पक्ष) के नाम से जानी जाती हैं। ऐसा श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इस व्रत की कथा बताई थी।

 

भगवान कृष् बोले- मलमास में अनेक पुण्यों को देने वाली एकादशी का नाम पद्मिनी है। इसका व्रत करने पर मनुष्य कीर्ति प्राप्त करके बैकुंठ को जाता है, जो मनुष्यों के लिए भी दुर्लभ है।

 

यह एकादशी करने के लिए दशमी के दिन व्रत का आरंभ करके कांसे के पात्र में जौ-चावल आदि का भोजन करें तथा नमक खाएं। भूमि पर सोएं और ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें। एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में शौच आदि से निवृत्त होकर दंतधावन करें और जल के 12 कुल्ले करके शुद्ध हो जाएं।

 

सूर्य उदय होने के पूर्व उत्तम तीर्थ में स्नान करने जाएं। इसमें गोबर, मिट्टी, तिल तथा कुशा आंवले के चूर्ण से विधिपूर्वक स्नान करें। श्वेत वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु के मंदिर जाकर पूजा-अर्चना करें।

 

हे ुनिवर! पूर्वकाल में त्रेयायुग में हैहय नामक राजा के वंश में कृतवीर्य नाम का राजा महिष्मती पुरी में राज्य करता था। उस राजा की 1,000 परम प्रिय स्त्रियां थीं, परंतु उनमें से किसी को भी पुत्र नहीं था, जो कि उनके राज्यभार को संभाल सके। देवता, पितृ, सिद्ध तथा अनेक चिकित्सकों आदि से राजा ने पुत्र प्राप्ति के लिए काफी प्रयत्न किए, लेकिन सब असफल रहे। 

 

तब राजा ने तपस्या करने का निश्चय किया। महाराज के साथ उनकी परम प्रिय रानी, जो इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न हुए राजा हरिश्चंद्र की पद्मिनी नाम वाली कन्या थीं, राजा के साथ वन में जाने को तैयार हो गई। दोनों अपने मंत्री को राज्यभार सौंपकर राजसी वेष त्यागकर गंधमादन पर्वत पर तपस्या करने चले गए। 

 

राजा ने उस पर्वत पर 10 हजार वर्ष तक तप किया, परंतु फिर भी पुत्र प्राप्ति नहीं हुई। तब पतिव्रता रानी कमलनयनी पद्मिनी से अनुसूया ने कहा- 12 मास से अधिक महत्वपूर्ण मलमास होता है, जो 32 मास पश्चात आता है। उसमें द्वादशीयुक्त पद्मिनी शुक्ल पक्ष की एकादशी का जागरण समेत व्रत करने से तुम्हारी सारी मनोकामना पूर्ण होगी। इस व्रत के करने से भगवान तुम पर प्रसन्न होकर तुम्हें शीघ्र ही पुत्र देंगे।

 

रानी पद्मिनी ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से एकादशी का व्रत किया। वह एकादशी को निराहार रहकर रात्रि जागरण करती। इस व्रत से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। इसी के प्रभाव से पद्मिनी के घर कार्तवीर्य उत्पन्न हुए। जो बलवान थे और उनके समान तीनों लोकों में कोई बलवान नहीं था। तीनों लोकों में भगवान के सिवा उनको जीतने का सामर्थ्य किसी में नहीं था।

 

सो हे नारद! जिन मनुष्यों ने मलमास शुक्ल पक्ष एकादशी का व्रत किया है, जो संपूर्ण कथा को पढ़ते या सुनते हैं, वे भी यश के भागी होकर विष्णुलोक को प्राप्त होते हैं।