जानिए क्यों मनाया जाता है पंगुनि उथीराम का पर्व
क्या है पंगुनी उथीराम -
स्कंद पुराण में जिन आठ महा व्रतों के बारे में बताया गया है, उन सभी व्रतों में से पंगुनी उथीराम सबसे कल्याण कारक व्रत माना जाता है. जब सूर्य फाल्गुन मास के तमिल महीने में शुक्ल पक्ष के दौरान उत्तरा नक्षत्रम पर मीन राशि पर चमकता है, तब पंगुनी उथीराम का त्यौहार मनाया जाता है. यह त्यौहार फाल्गुनी महीने की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है.
पंगुनी उथीराम का महत्त्व-
पंगुनी उथीराम का त्यौहार तमिल हिंदुओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. यह त्यौहार पंगुनी मास में मनाया जाता है. जब नक्षत्र उथिराम या उत्तरा फाल्गुनी प्रबल होता है तब यह पर्व मनाया जाता है. पंगुनी तमिल कैलेंडर में बारहवां और आखिरी महीना होता है. दूसरे सौर कैलेंडर में पंगुनी मास को मीना मास के रूप में जाना जाता है. पंगुनी उथीराम के दिन को बहुत ही शुभ माना जाता है. शास्त्रों के अनुसार इसी दिन आदि शक्ति (देवी पार्वती) ने भगवान शिव के साथ विवाह किया था. पंगुनी उथीराम के दिन ही देवसेना और भगवान मुरुगा का भी विवाह हुआ था. यह तिथि नक्षत्रम उथीराम पूर्णिमा के साथ मेल खाती है और मान्यताओं के अनुसार इस दिन सबसे अधिक दिव्य विवाह हुए. माता पार्वती भगवान शिव, देवी दिव्यायन भगवान मुरुगन, देवी सीता भगवान राम का विवाह पंगुनी उथिरम के दिन ही हुआ था.
क्यों और कहाँ मनाया जाता है पंगुनी उथीराम का त्यौहार-
• पंगुनी उथीराम के दिन श्री देवनारायण ने भगवान सुब्रमण्यम के साथ विवाह किया था. इसलिए यह त्यौहार भगवान सुब्रमण्यम भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है.
• इस पर्व के दिन, सभी मुरुगन मंदिरों में भक्त सैकड़ों की संख्या में आते हैं. मान्यताओं के अनुसार इसी दिन गौरी के रूप में देवी पार्वती ने कांचीपुरम में भगवान शिव से विवाह किया था और इस विश्वास के कारण इस दिन को गोवारी कल्याणम दिवस के रूप में भी मनाया जाता है.
• पंगुनी उथीराम के पर्व को महालक्ष्मी जयंती के रूप में भी जाना जाता है. क्योंकि इसी दिन देवी महालक्ष्मी ने मिल्की महासागर के पौराणिक मंथन के दौरान पृथ्वी पर अवतार लिया था.
• मिल्की महासागर के मंथन को क्षीर सागर मंथन के नाम से भी जाना जाता है.
• इस दिन को भगवान अयप्पन जयंती के रूप में भी मनाया जाता है.
• भगवान विष्णु के स्त्री रूप भगवान शिव और मोहिनी के मिलन के कारण भगवान अयप्पन का जन्म हुआ था.
• यह त्यौहार तमिलनाडु के एक मंदिर में लगातार 11 दिन तक धार्मिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है.
• मान्याओं के अनुसार इस उत्सव के अंतिम दिन मंदिर में फल चढ़ाने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है.
पंगुनी उथीराम से जुडी विशेष बातें-
• पंगुनी उथीराम के त्यौहार को एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है.
• पंगुनी उथीराम का पर्व हिंदुओं के लिए, विशेष रूप से तमिलनाडु प्रांत के लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है.
• इस उत्सव को केरल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे भारत के दक्षिणी भारतीय राज्यों में बहुत ही हर्षोल्लास और धूमधाम के साथ मनाया जाता है.
• पंगुनी उथीराम पर्व के 11 दिनों के उत्सव के दौरान, बहुत सारे भक्त भगवान मुरुगन मंदिरो में दर्शन करने के लिए जाते हैं.
• मदुरै, वेदारन्यम, तिरुवरुर, तिननेवेल्ली, पेरूर और कांजीवरम के सभी मुरुगन मंदिरो में इस पर्व को बहुत ही असाधारण तरीके से मनाया जाता है.
• इन सभी मंदिरो के एक बड़े हिस्से में, देवी और देवताओं के दिव्य विवाह का आयोजन पुरे रीति-रिवाजों और पूरी ऊर्जा के साथ किया जाता है.
• पंगुनी उथीराम को , अर्थात फाल्गुन पूर्णिमा को भारत के उत्तरी क्षेत्रो में होली के विशेष पर्व के रूप में ब्रज, वृदावन, मथुरा, बरसाना और कुमाउनी में मनाया जाता है.
मान्यताओं के अनुसार पंगुनी उथीराम-
• वाल्मीकि रामायण में बताया गया है की पंगुनी उथीराम के दिन ही राम और सीता की सभी मनोकामनाएँ पूरी हुईं.
• इसी दिन मुरुगा के साथ देवसेना या देवनाई का विवाह हुआ था और भगवान् शिव और माता पार्वती भी इसी दिन विवाह के पवित्र बंधन में बंध गए थे.
• क्योकि यह त्यौहार विवाह की स्थापना से जुड़ा हुआ है इसीलिए इस पर्व को देवताओं और देवियो के बीच मंदिरो में स्वर्गीय संबंध के रूप में देखा जाता है.
• पंगुनी उथीराम के पर्व को धन और संपन्नता की देवी मानी जाने वाली महा लक्ष्मी इसी दिन समुंद्रमंथन से बाहर आयी थी. इसीलिए बहुत से लोग पंगुनी उथीराम के दिन माँ लक्ष्मी की भी पूजा करते हैं.
• पंगुनी उथीराम के पर्व को भगवान अयप्पा के अवतार लेने के दिन के रूप में भी देखा जाता है.
• इस दिन सभी लोग भगवान् से अलग अलग मनोकामनाएं मांगते हैं.
• सभी लोग इस दिन बड़ी संख्या में मंदिरो में दर्शन करने जाते हैं और उत्स्व में पूरी श्रद्धा के साथ भगवन का नाम लेते हैं.
• केरल में मौजूद सबरीमाला मंदिर में मनाया जाता है, इसके अलावा पंगुनी उथीराम के उत्स्व को विशेष रूप से भगवान् मुरुगा के मंदिरो में बहुत ही श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है.