पोंगल
पोंगल का त्यौहार पूरी तरह से किसानों का पर्व है और यह गोवर्धन पूजा, दिवाली और मकर संक्रांति का एक मिलाजुला सा रुप है। पोंगल एक महत्वपूर्ण त्यौहार है और यह तमिलनाडु में बहुत ही जोर-शोर से मनाया जाता है । नए साल में पोंगल की शुरुआत काफी शुभ माना जाता है और इस दिन पहली बार नए फसल वाले अनाज को पकाया जाता है।
पोंगल का अर्थ व् महत्व
पोंगल का त्यौहार लगभग चार दिनों तक चलता है। "पोंगल का अर्थ है अतिप्रवाह अर्थात जब मानव जाति और प्रकृति दोनों एक दूसरे के प्रति प्रेम दिखाते हैं तो इसी खुशी को व्यक्त करने के लिये यह त्यौहार मानाया जाता है।
कब मनाया जाता है
जिस दिन सूर्य देवता उत्तर दिशा की ओर बढ़ना शुरू करता है, इसे 'मकर सक्रांति' कहा जाता है और इसी दिन पोंगल मनाया जाता है। सूर्य का उत्तर दिशा की और बढने की अवधि को उत्तरायण कहा जाता है और इसे बहुत ही अधिक शुभ माना जाता है।
क्यों मनाया जाता है?
यह त्यौहार प्रकृति से जुड़ा हुआ त्यौहार है क्योंकि प्रकृति एक भरपूर फसल के साथ मानव जाति को आशीर्वाद देती है और यहीं पोंगल के त्यौहार को मनाने का कारण है।
पोंगल के चारो दिन की विधि
पोंगल चार दिनों का त्योहार है और इसे तमिलनाडु में थाई पोंगल के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सुबह उठकर घर की साफ सफाई की जाती है। सूर्य देवता की उपासना कर प्रसाद चढाया जाता है ।
पहला दिन भोगी पोगल होता और इंद्रदेवता की पूजा की जाती है
दूसरे दिन पेरुम पोंगल मनाया जाता जिसमे लोग सूर्यदेव जी की पूजा करते हैं और पोंगल पेमासम सुबह के समय पकाया जाता है।
तीसरे दिन मट्टू पोंगल है, जिसमें मवेशियों की पूजा करते हुयें उन्हें सिंदूर और माला पहनाई जाती है।
अंतिम दिन कन्नुम पोंगल जब पूरा परिवार नदी के किनारे इकट्ठा होकर शानदार भोजन करते है और पारंपरिक नृत्यों का आंनद भी लिया जाता है। इस दिन काली मंदिर में धूमधाम से पूजा करती है।
क्या करें –
इस दिन गरीबों को खाना खिलाना काफी शुभ माना जाता है
इस दिन, लोग अपने घरों की साफ-सफाई करके इसे भली भांति सजाते हैं
इस दिन नए जहाजों को खरीदने की परपंरा भी है
इसके अलावा इस दिन घर पर्यावरण की ओर योगदान भी दिया जाता है
इस दिन गाय माता की पूजा करना भी काफी शुभ माना जाता है
इसके अतिरिक्त पक्षियों और जानवरों को दाना खिलाना भी काफी अच्छा माना जाता है।
क्या ना करें
किसी से भी कटुता से बात ना करें
मवेशियों को प्रताड़ित ना करें
घर या आसपास का वातावरण गंदा ना करें
कथा –
पोंगल की कथा: मदुरै के पति-पत्नी कण्णगी और कोवलन से जुड़ी है। एक बार कण्णगी के कहने पर कोवलन पायल बेचने के लिए सुनार के पास गया। सुनार ने राजा को बताया कि जो पायल कोवलन बेचने आया है वह रानी के चोरी गए पायल से मिलते जुलते हैं।
राजा ने इस अपराध के लिए बिना किसी जांच के कोवलन को फांसी की सजा दे दी। इससे क्रोधित होकर कण्णगी ने शिव जी की भारी तपस्या की और उनसे राजा के साथ-साथ उसके राज्य को नष्ट करने का वरदान मांगा।
जब राज्य की जनता को यह पता चला तो वहां की महिलाओं ने मिलकर किलिल्यार नदी के किनारे काली माता की आराधना की। अपने राजा के जीवन एवं राज्य की रक्षा के लिए कण्णगी में दया जगाने की प्रार्थना की।
माता काली ने महिलाओं के व्रत से प्रसन्न होकर कण्णगी में दया का भाव जाग्रत किया और राजा व राज्य की रक्षा की। तब से काली मंदिर में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इस तरह चार दिनों के पोंगल का समापन होता है।
भगवान शिव की कहानी -
भगवान शिव के वाहन नंदी जो बैल के रूप में सुशोभित हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार भगवान शिव ने अपने वाहन बैल को बसवा नाम से पृथ्वी पर जाने और मनुष्यों से मिलने के लिए कहा। उन्हें यह संदेश व्यक्त करने के लिए कहा गया की मनुष्यों को नित्य दिन तेल मालिश और स्नान करना चाहिए। परन्तु गलती से,नंदी बैल ने गलत तरीके से लोगों को बताया जाता है कि, उन्हें एक महीने में केवल एक बार भोजन करना चाहिए। बसवा के इस गलत व्यव्हार से भगवान शिव बहुत क्रोधित हुए व नतीजतन, भगवान शिव ने क्रोध के आवेश में आकर उन्हें खेतों में हमेशा के लिए जीने और अधिक भोजन बढ़ाने के लिए दंडित किया। जिस कारन से बैल खजेटों में हल जोतते हैं और जोतने के नयी उपज होने में पोंगल पर्व मनाया जाता है।
भगवान इंद्र की कहानी –
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